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जनता के विचारEditorial/संपादकीय

जयसिया राम से जय श्रीराम क्यों, चलिए राम जी अकेले ही भले

(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

विरोधियों ने क्या हद्द ही नहीं कर दी, कह रहे हैं, बल्कि भगवा-भाइयों से पूछ रहे हैं और अकेले-दुकेले में नहीं, सारी पब्लिक को सुनाकर पूछ रहे हैं कि सीता जी को क्यों भुला दिया? जय सिया राम में से सिया को बाहर का रास्ता क्यों दिखा दिया? सिया को हटाकर, सिर्फ राम को ही जैकारे के लायक कैसे बना दिया! पहले तो हमेशा जुगल जोड़ी का ही जैकारा होता था, जोड़ी तोडक़र राम जी को अकेला क्यों करा दिया? और यह भी कि अगर सीता को बाहर ही करना था, अकेले-अकेले राम जी को ही याद रखना था, तो भी श्रीराम ही क्यों? मुसीबत में राम को ही पुकारना है, तो गांधी की तरह, हे राम कहकर क्यों नहीं पुकारते!

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जब यूपी वाले पाठक जी और मौर्या जी ने एक ही बात कही है, तो उनका जवाब तो एकदम मुंहतोड़ ही होगा। फिर जवाब देने वाले सिर्फ पाठक जी और मौर्या जी ही थोड़े ही हैं, राम जी की अपनी यूपी के डिप्टी सीएम लोग हैं। और दो डिप्टी मिलकर, एक सीएम के बराबर तो होते ही होंगे! एकदम सही बात है — भगवा भाइयों से यह पूछने वाला राहुल गांधी या दूसरा कोई भी होता ही कौन है कि सीता जी को कहां छोड़ दिया? सीता जी को क्यों भुला दिया? यह राम जी और भगवाई जी के बीच की बात है। बल्कि यह तो भगवाइयों के घर का मामला है। दूसरे होते कौन हैं, उनके घर के मामलों में दखल देने वाले कि किस की जयजयकार कर दी, किसे छोड़ दिया! बल्कि इन दूसरों की हिम्मत कैसे पड़ी भगवाइयों के राम जी का नाम लेने की! मस्जिद गिराएं भगवाई, वहीं मंदिर बनवाएं भगवाई और जैकारे में राम जी के साथ सीता को रखवाने की डिमांड मनवाएंगे विरोधी!? मजाक समझ रखा है क्या? मौर्या जी ने राम से पहले सिया जोडऩे की मांग करने वालों को एकदम सही चलेंज दिया — मथुरा अब भी बाकी है; वहां मस्जिद गिराकर आप मंदिर बनवा लो; फिर आप तय कर लेना कि जैकारा राधेश्याम का लगाना है या अकेले-अकेले बंशीवाले का!

वैसे भी पहले से सियाराम का जैकारा लगता आ रहा था, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि हमेशा सियाराम का ही जैकारा लगेगा! मोदी जी ने तो पहले ही कह दिया था कि अब वह होगा, जो सत्तर साल में नहीं हुआ। पहले श्रीराम का जैकारा नहीं लगा, तो अब लगेगा! पहले श्रीराम का जैकारा युद्घ घोष नहीं, अब बनेगा! वैसे सोचने की बात है कि सियाराम का जैकारा, राम जी के हाथ में धनुष-बाण होने के बाद भी, पहले युद्घ घोष क्यों नहीं बना। सीता जी को साथ लेकर, राम जी युद्घ कर सकते थे क्या? सीता जी युद्घ की मार-काट देख सकती थीं क्या? युद्घ तो बंदा अकेला हो तभी करता है। वर्ना जसोदा बेन का भी पता नये बनने वाले पीएम महल वाला होता।

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रावण ने भी सीता जी को राम जी के साथ रहने दिया होता, तो राम जी युद्घ करते? वैसे भी राम जी ने तो खुद ही बाद में सिया को वनवास देकर अपने से दूर कर दिया था। बेचारे भगवाई, राम जी की इच्छा के खिलाफ कैसे जा सकते हैं; जो सिया जी राम जी के मन नहीं भाईं, उनका नाम जैकारे में राम जी के आगे कैसे लगा सकते हैं? बराबरी के विदेशी आदर्श के चक्कर में जबर्दस्ती दोनों की जोड़ी कैसे बना सकते हैं? वैसे भी अयोध्या वाले तो रामलला हैं, ठुमकि चलत वाले! उनके भक्तों को किसी सीता से क्या काम?

फिर मोदी जी तो वैसे भी सब कुछ एक करने में लगे हैं। एक टैक्स के बाद, एक तस्वीर तक तो मामला पहुंच भी गया है। सो राम जी भी अकेले ही भले। कैमरे के फ्रेम में और किसी को तो मोदी जी भी नहीं आने देते; भगवाइयों के राम जी किसी से कम हैं क्या?

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ये व्यंग्यात्मक लेख लेखक के अपने विचार हैं, मिशन सन्देश के द्वारा लेख को संपादित नहीं किया गया है ।

(व्यंग्यकार प्रतिष्ठित पत्रकार और ’लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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