(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
क्या अब भी इसके लिए किसी और सबूत की ज़रूरत है कि मोदी जी के विरोधी ही टुकड़े-टुकड़े गैंग हैं। बताइए! अब ये मोदी जी के नये संसद भवन के उद्घाटन का भी विरोध कर रहे हैं। कह रहे हैं कि नये संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से करा लो, उपराष्ट्रपति से करा लो, चाहे तो लोकसभा के स्पीकर से करा लो, पर मोदी जी से उद्घाटन मत कराओ! पर क्यों भाई क्यों? मोदी जी से छोड़कर किसी से भी उद्घाटन करा लो; इस मांग का मकसद एक सौ चालीस करोड़ भारतीय अच्छी तरह समझते हैं। बेशक, विरोधी मोदी जी का विरोध करने के लिए, सिर्फ़ उनके ही नई संसद का उद्घाटन करने का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, यह सिर्फ़ मोदी जी का ही विरोध नहीं है। यह मोदी जी के विज़नरी नेतृत्व में तूफानी तेज़ी से बढ़ते राष्ट्रीय एकीकरण का भी विरोध है। आखिर, नेशन को एक करने के लिए ही तो मोदी जी ने एक निशान, एक विधान से आगे, एक भाषा, एक वेशभूषा, एक आहार, एक आस्था वगैरह के रास्ते बढ़ते हुए देश को एक राजा, एक राजदंड, एक कानून, एक टैक्स और एक इलेक्शन के रास्ते पर आगे बढ़ाया है। और उन्होंने अब वन नेशन, वन फोटो के बाद, वन नेशन, वन इनॉगरेशन को लक्ष्य बनाया है।
सिर्फ़ वन इनॉगरेशन का विरोध होता तो मोदी जी पीछे भी हट जाते, पर यह तो वन नेशन का विरोध है। इस टुकड़े-टुकड़े गैंग को तो मोदी जी कभी भी कामयाब नहीं होने देंगे — जब तक भारत के पीएम हैं, मोदी जी इनॉगरेशन करने वाले, एक से दो नहीं होने देंगे। फिर भले ही उन्हें नये संसद भवन तो क्या, एक-एक डलाव घर तक का उद्घाटन करने के लिए, अठारह-अठारह घंटे से भी ज़्यादा क्यों न काम करना पड़े।
माना कि मोदी जी के नये संसद का उद्घाटन करने का विरोध करने वालों की भी अपनी दलीलें हैं। आखिर, बीस पार्टियां बिना दलील के तो विरोध करने के लिए इकट्ठी नहीं हो गई होंगी। अब कागज की लेखी के हिसाब से चलें तो, संसद में सबसे ऊपर तो राष्ट्रपति ही हैं। संसद के दोनों सदनों से भी ऊपर, दोनों सदनों के प्रमुखों से भी ऊपर। बेशक, इस लिहाज़ से नये संसद भवन का उद्घाटन करने का अधिकार तो राष्ट्रपति का ही बनता है। प्रधानमंत्री तो सिर्फ़ एक सदन का नेता है, फिर वह दोनों सदनों से ऊपर, पूरी संसद के भवन का उद्घाटन कैसे कर सकता है? लेकिन, कागज भले ही संविधान का हो, हैं ये सब कागद की लेखी वाली बातें ही। और मोदी जी ठहरे फकीर, कबीर की बानी मानकर, वह आंखिन देखी को ही फॉलो करते हैं। और नये संसद भवन के मामले में आंखिन देखी क्या है?
मोदी जी अगर अड़ नहीं जाते कि कोरोना का कहर हो या मंदी की मार, नया संसद भवन अभी बनकर रहेगा और उनके दूसरे कार्यकाल में ही बनकर रहेगा, तो क्या नया संसद भवन बन पाता! इतना शानदार संसद भवन बनना तो दूर, इन विपक्ष वालों का बस चलता, !तो इन्होंने तो जनपथ का नाम बदलकर कर्तव्यपथ और मुगल गार्डन का नाम, अमृत उद्यान भी नहीं करने दिया होता! ३फिर नई इमारत की ईंटें रखे जाने की बात ही कहां उठती थी? पर अब, जब मोदी जी ने संसद भवन बनवा दिया है, तो आ गए भांजी मारने कि नये संसद भवन का उद्घाटन तो राष्ट्रपति से ही कराया जाए।
यानी भवन बनवाएं मोदी जी और उद्घाटन करे कोई और, मोदी जी ने धर्मादा खोल रखा है क्या? भूल गए कैसे देश की वित्त मंत्री, राशन की दुकान पर सस्ते चावल के बैनर पर, मोदी जी की तस्वीर लगवाने के लिए लड़ गईं थीं। बात भी लाज़मी है, जिसने मकान बनवाया है, उद्घाटन भी वही करेगा। फिर भी, जैसा कि पहले ही बताया, अगर सिर्फ़ नये संसद भवन का उद्घाटन करने की बात होती, तो कर लेतीं राष्ट्रपति ही उद्घाटन। मोदी जी जुबां पर उफ भी नहीं लाते। बल्कि आदिवासी सम्मान की दलील देने वालों के भी मुंह बंद हो जाने की, खुशी ही मनाते। दलित भाई के हाथों शिलान्यास न सही, आदिवासी बहना के हाथों उद्घाटन ही सही। वैसे भी अगर कुल पंद्रह-सत्रह में से एक वंदे भारत भारत एक्सप्रैस मोदी जी के हरी झंडी दिखाए बिना चल सकती है, तो नई संसद उनके उद्घाटन किए बिना क्यों नहीं चल सकती थी। लेकिन तब वन नेशन का क्या होता?
मोदी जी ने दिन-रात अठारह-अठारह घंटे मेहनत कर के, वन नेशन की मजबूती के लिए तो वन इनॉगरेशन की सपोर्ट लगाई है, वह सपोर्ट ही अगर गिर जाती, तो वन नेशन की इमारत कमज़ोर नहीं हो जाती। अब राष्ट्रपति का सम्मान, राष्ट्र की मजबूती से बड़ा तो हो नहीं जाएगा। इसीलिए, मोदी जी ने विरोधियों के ताने सुनना मंज़ूर किया, पर वन इनॉगरेशन के रास्ते से एक इनॉगरेशन पीछे हटना मंज़ूर नहीं किया। शिलान्यास से लेकर उद्घाटन तक सब करने का बोझ खुद ही उठाना तय किया है, नये संसद भवन में भी और भव्य वाले राम मंदिर में भी। मोदी जी ने आत्मनिर्भरता का कॉल कोई यूं ही थोड़े ही किया था-उद्घाटन में आत्मनिर्भरता क्यों रह जाने देंगे!
पर विरोधियों को दिक्कत सिर्फ़ मोदी जी के नये संसद भवन का उद्घाटन करने से ही थोड़े ही है। इन्हें तो, मोदी जी जो भी नई चीज़ करें, उससे ही प्रॉब्लम है। भव्य नई संसद का उद्घाटन दिव्य पूजा पाठ से हो रहा है, इन्हें उससे भी प्रॉब्लम है। नई संसद का उद्घाटन, उन वीर सावरकर जी के जन्म दिन पर हो रहा है, जिन पर पुरानी संसद में बैठने वालों ने मिस्टर गांधी के वध का मुकदमा चलाया था, इन्हें उससे भी प्रॉब्लम है। और तो और मोदी जी ने पचहत्तर साल पहले गुम हो गए सेंगोल उर्फ राजदंड को खोज कर निकलवाया है, तो इन्हें उससे भी प्रॉब्लम है। पर पचहत्तर साल राजदंड की तरफ से मुंह फेर कर राज चला लिया, अब और नहीं। अमृतकाल में और नहीं। न संसद के बाहर, न संसद में, आज़ादी-आज़ादी मांगने वालों को, मुंह खोलने का मौका, अब और नहीं। मोदी जी ने पहले ही कह दिया था, सत्तर साल में जो नहीं हुआ, अब होगा। अब मिनिमम राज और मैक्सिमम दंड चलेगा; नई संसद पर पुराना राजदंड जो फहराया जा रहा है।
अब नई संसद तो दुनिया को वन नेशन, वन इनॉगरेशन का ही संदेश देगी। और हां! पचहत्तर साल पीछे अजायब-घर में छूट गए, राजा-रानियों के धार्मिक राज के वापस लाए जाने का भी। खुशी के इस मौके पर, हरेक खास के लिए शाह जी का न्यौता है। अब जिसे लड्डू खाना है पहुंच जाए और नहीं खाना है तो घर बैठा रहे; डैमोक्रेसी है भाई!
हां ! प्लीज़ इसकी अफवाहों पर कोई ध्यान न दे कि आखिरकार, विधि-विधान से सत्ता का हस्तांतरण करने के लिए राजदंड खोजकर निकलवा ही लिया गया। यह कर्नाटक इफैक्ट है। मोदी जी ने सोच लिया है कि 2024 में जब सत्ता का हस्तांतरण हो, उनके हाथ में किसी को सौंपने के लिए कुछ तो हो। कम से कम अमृतकाल में राजदंड सौंप कर सत्ता का हस्तांतरण करते हुए, पहला फोटो उनका ही हो।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और संपादक हैं।)