(व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा)
यह तो विपक्ष वालों की चित्त भी मेरी और पट्ट भी मेरी वाली जबर्दस्ती हो गई। मोदी जी नहीं बोल रहे हैं तो‚ पीछे पड़े हुए हैं कि बोलते क्यों नहीं हैंॽ पहलवान बेटियों को डराया‚ दबाया‚ रुलाया जा रहा है; मोदी जी बोल क्यों नहीं रहे हैं। मणिपुर जल रहा है‚ महीने भर से ज्यादा से जल रहा है‚ मोदी जी कुछ भी बोल क्यों नहीं रहे हैंॽ महाराष्ट्र से लेकर उत्तराखंड तक‚ कड़ी गर्मी में नफरत का बाजार गरमाया जा रहा है‚ मोदी जी चुप क्यों हैंॽ और मोदी जी बोलने लगे‚ तो कहने लग जाएंगे कि ये बंदा जब भी मुंह खोलता है‚ तो देश हो या विदेश‚ पीएम होकर भी चुनावी भाषण ही बोलता है!
वैसे हम तो कहेंगे कि मणिपुर के जलने पर चुप रहने की शिकायत तो फिर भी गनीमत है। वरना 2002 के गुजरात के मामले में तो भाई लोग अब तक इसका ताना मारते हैं कि जब गुजरात जल रहा था‚ मोदी जी बांसुरी बजा रहे थे; जबकि मजाल है जो बीबीसी वाली प्रतिबंधित डॉक्यूमेंटरी तक में‚ मोदी जी एक बार भी बांसुरी बजाते नजर आए हों !
पीएम बनने के बाद पिछले नौ साल में तो मोदी जी ने इकॉनमी से लेकर डैमोक्रेसी तक को तो डटकर बजाया ही है – खड़ताल बजाया है‚ ढोलक बजाई है‚ ढोल बजाया है‚ मंजीरा बजाया है और तो और उंगलियों से गंगा पर स्पेशल नाव की बॉडी को भी बजाया है; पर बांसुरी नहीं बजाई है। विरोधियों की भी समझ में आ गया लगता है कि मोदी जी के बांसुरी बजाने की बात पब्लिक कभी नहीं मानेगी। इसीलिए‚ मणिपुर जल रहा है तब भी‚ मोदी जी पर सिर्फ चुप रहने का इल्जाम लगा पाए हैं‚ बांसुरी बजाने का नहीं! पोस्टर भी निकले हैं तो मिसिंग होने के‚ बांसुरी की तान छेेड़ने के नहीं!
पर मोदी जी क्यों बोलेंॽ हर चीज पर मोदी जी क्यों बोलेंॽ अकेले ही बोलने वाले हैं, तो क्या हुआ; हर छोटी–मोटी चीज पर मोदी जी क्या बोलें और बोलें भी तो क्योंॽ विश्व की समस्याओं पर‚ यूक्रेन युद्ध के समाधान पर बोल तो रहे हैं। अमृतकाल पर‚ अगले पच्चीस साल में भारत को महान बनाने पर बोल तो रहे हैं। मोदी जी और कितना बोलेंॽ क्या–क्या बोलेंॽ बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)