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लेखक के विचार

भ्रष्टाचार ना कहो इसको: द्वारका एक्सप्रैस वे 250 करोड़ में Km, मृतकों के इलाज पर 7 करोड़ खर्च

(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

भाई ये तो विपक्ष वालों की सरासर नाइंसाफी है। बताइए, लाल किले के प्राचीर पर चढक़र भ्रष्टाचारियों को ललकारा मोदी जी ने, और ये विपक्ष वाले उन्हीं की सरकार पर भ्रष्टाचार का इल्जाम लगाने लगे। यानी मोदी जी का दांव, मोदी जी पर ही। अरे कॉमनसेंस की बात है, जो किले पर चढक़र भ्रष्टाचारियों पर यूं दहाड़ेगा, कौन सा भ्रष्ट उसे अपना कहकर पुकारेगा? यानी अगर किसी ने खाया भी होगा, जॉनी-जॉनी यस पापा की तरह, तो मोदी जी से छुपकर ही शुगर खाया होगा। यानी शुगर खाना – न खाना अपनी जगह, मोदी जी का प्रण तो अपनी जगह ज्यों का त्यों कायम है — न खाऊंगा, न खाने दूंगा! हां! अगर कोई डाइरेक्टली पचा ले, चुनावी बांड की तरह, तो बात दूसरी है। पर वह तो कोर्स से बाहर का सवाल हुआ।

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वैसे भी विपक्ष वाले जिसे भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार कहकर इतना शोर मचा रहे हैं, उसमें भ्रष्टाचार है कहां? माना कि जमाने बाद सीएजी की रिपोर्ट आयी है और सीएजी की रिपोर्ट गड़बडिय़ों की कई कहानियां निकालकर लायी है, मगर सीएजी की रिपोर्ट में होने से ही कहानियां सच्ची कहानियां थोड़े ही हो जाएंगी। सत्तर साल में हुआ होगा तो हुआ होगा, अमृतकाल में तो ऐसा नहीं होगा। सीएजी को खुद ही अपनी रिपोर्ट को सच साबित कर के दिखाना होगा। वर्ना जब तक पक्के तौर पर बेईमान साबित नहीं हो जाए, हर कोई हरिश्चन्द्र का अवतार! पहले वालों की नकल के चक्कर में मोदी जी न्याय के इस बुनियादी सिद्धांत को हाथ से नहीं छूटने देंगे।

फिर सीएजी ने भी तो सिर्फ हिसाब की गड़बड़ी बतायी है, भ्रष्टाचार थोड़े ही कहा है। और गड़बड़ी भी कहां, ये तो विकास है, विकास! यह तो सही है कि जो द्वारका एक्सप्रैस वे 18 करोड़ रुपये में एक किलोमीटर बनना था, ढाई सौ करोड़ से ज्यादा में बन रहा है। पर यह भ्रष्टाचार कैसे है? यह तो विकास है, एक्सप्रैस वे की लागत का विकास। और ऐसा-वैसा नहीं, तूफानी, बल्कि बुलेट ट्रेन की रफ्तार वाला विकास है। सच पूछिए तो भारत माला वाला 15 करोड़ प्रति किलोमीटर से 26 करोड़ प्रति किलोमीटर वाला विकास, तो उसके सामने पैसेंजर गाड़ी की, बल्कि कछुआ रफ्तार वाला विकास है। और अयोध्या में काम कम और पेमेंट ज्यादा, यह भी तो खर्चे का विकास ही है। हां! यह जरा डिफरेंट किस्म का विकास है, एकदम निस्वार्थ विकास। अब साक्षात भगवान राम की नगरी में निस्वार्थ विकास नहीं होगा, तो और कहां होगा? फिर भगवान की ओर से जमीनों की खरीद में भी ऐसी ही निस्वार्थ उदारता दिखाई गयी थी। तब यह कैसे हो सकता था कि भगवान के लिए निर्माण वगैरह में वैसा ही निस्वार्थ विकास नहीं होता? भगवान के घर में भी जमीन और निर्माण में विकास के मामले में भी भेद होने लगा, तब तो आ चुका राम-राज्य!

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और पीएम जन आरोग्य में मृतकों के इलाज पर एक मध्य प्रदेश में ही 7 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च! जरा गहराई से सोचिए, तो चमत्कारी विकास ही है, उपचार सेवा का विकास। हिट फिल्मी गाने का मुखड़ा जरा सा बदल कर गाएं तो — जिंदगी में तो सभी इलाज किया करते हैं, मोदी मरने बाद तक तेरा इलाज कराएगा! यह डबल इंजन की गारंटी है, हालांकि इसमें एक ही इंजन चालू है, दूसरा बस पहियों पर धकेला जाता है। मरने के बाद भी इलाज की गारंटी; और कितना विकास चाहिए इंडिया, सॉरी भारत वालों!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के सम्पादक हैं।)

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