लखनऊ, (एजेंसी)। पुलिस विभाग से अजीबोगरीब मामला सामने आया है जिसे लेकर अधिकारी और कर्मचारी सब हैरात में पड़ गए हैं दरअसल, यूपी पुलिस की पांच महिला सिपाहियों ने डीजी ऑफिस में प्रार्थना पत्र देकर लिंग परिवर्तन की अनुमति मांगी है। ये महिलाएं गोरखपुर गोंडा एवं अन्य जिले में तैनात है । एक महिला सिपाही ने बताया कि डीजी ऑफिस में प्रार्थना पत्र दी हूं। मुझे बुलाकर पूछा भी गया है। मेरा जेंडर डिस्फोरिया है। इसका सर्टिफिकेट भी आवेदन में लगाया है। सिपाही ने बताया कि लखनऊ मुख्यालय से अभी कोई फैसला नही आया है। अगर सकारात्मक निर्णय नहीं लिया गया तो जेंडर चेंज कराने के लिए हाईकोर्ट में भी गुहार लगाऊंगी ।
वहीं महिला सिपाही ने बताया कि यूपीपी में 2019 में उनकी नौकरी लगी। उनकी पहली तैनाती गोरखपुर में ही है। लिंग परिवर्तन के लिए फरवरी 2023 से दौड़-भाग शुरू की। इसके बाद से वह गोरखपुर में एसएसपी, एडीजी फिर मुख्यालय तक जा चुकी हैं। उन्होंने कहा कि पढ़ाई के दौरान ही मेरा हार्मोंस चेंज होने लगा था। अब मैं पुरूष बनना चाहती हूं। महिला सिपाही के मुताबिक इसे लेकर दिल्ली में एक बड़े डॉक्टर से कई चरणों में काउंसलिंग करवाई। इसके बाद डॉक्टर ने पाया कि उन्हें जेंडर डिस्फोरिया है। डॉक्टर की रिपोर्ट को आधार बनाकर उन्होंने लिंग परिवर्तन करने की अनुमति मांगी है। अनुमति मिलते ही वह जेंडर चेंज करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगी। हालांकि अभी तक डीजी ऑफिस की तरफ से इस मामले पर कोई फैसला नहीं आया है ।
गोंडा की महिला सिपाही ने भी लिंग परिवर्तन कराने के लिए हाईकोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया है। उसकी याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि लिंग परिवर्तन कराना संवैधानिक अधिकार है। अगर आध् निक समाज में किसी व्यक्ति को अपनी पहचान बदलने के इस अधि कार से वंचित करते हैं या स्वीकार नहीं करते हैं तो हम सिर्फ लिंग पहचान विकार सिंड्रोम को प्रोत्साहित करेंगे। हाईकोर्ट ने यूपी के डीजीपी को महिला कांस्टेबल के आवेदन को निस्तारित करने का निर्देश दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिंग परिवर्तन को एक संवैधानिक अधि कार बताया है और समाज में किसी व्यक्ति को अपनी पहचान बदलने के निहित अधिकार से वंचित करते हैं या स्वीकार नहीं करते हैं तो हम केवल लिंग पहचान विकार सिंड्रोम को प्रोत्साहित करेंगे।
कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक को एक महिला कांस्टेबल द्वारा लिंग परिवर्तन कराने की मांग के प्रार्थना पत्र को निस्तारित करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही यूपी सरकार से याचिका पर जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने नेहा सिंह की याचिका पर दिया है कोर्ट ने कहा कि कभी-कभी ऐसी समस्या घातक हो सकती है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति विकार, चिंता, अवसाद, नकारात्मक आत्म – छवि और किसी की यौन शारीरिक रचना के प्रति नापसंदगी से पीड़ित हो सकता है. यदि इस तरह के संकट को कम करने के लिए मनोवैज्ञानिक उपाय विफल हो जाते हैं तो सर्जिकल हस्तक्षेप करना चाहिए ।