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धार्मिक और जातिगत संगठन द्वारा देश और समाज को बांटने की चाल, क्यों नहीं होती एकता की बात? सवाल नेताओं से

(आलेख – सईद पठान)

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आज के समय में, जब देश को एकजुटता और प्रगति की ओर बढ़ने की जरूरत है, कुछ राजनीतिक पार्टियां और संगठन समाज को जाति और धर्म के आधार पर बांटने का काम कर रहे हैं। ये संगठन अपनी-अपनी पहचान और वर्गों के नाम पर समाज को विभाजित कर रहे हैं। कोई राजभर समाज की बात करता है, तो कोई निषाद समाज की। कोई आंबेडकरवादी आंदोलन के नाम पर अपनी राजनीति चमकाता है, तो कोई पसमांदा और यादव समाज आदि की बात करता है।

जातिगत राजनीति का उदय और उसका असर

जातिगत राजनीति भारत में नई नहीं है। स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही यह सामाजिक और राजनीतिक विमर्श का हिस्सा रही है। हालांकि, तब इसे सामाजिक न्याय और समानता के लिए एक माध्यम के रूप में देखा गया था। लेकिन आज, जातिगत राजनीति का उद्देश्य केवल एक विशेष वर्ग का समर्थन हासिल करना और सत्ता तक पहुंचना बन गया है।

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  • अलग-अलग जातिगत संगठन: आज हर जाति और समुदाय का अपना संगठन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व है। राजभर, निषाद, यादव, ब्राह्मण, राजपूत जैसे समाजों के नाम पर पार्टियां बन रही हैं।
  • वोट बैंक की राजनीति: राजनीतिक पार्टियां जाति के नाम पर वोट बैंक बनाती हैं। ये वर्गों को उनके अधिकार दिलाने की बात करती हैं, लेकिन समाज को बांटने का काम करती हैं।

धार्मिक आधार पर विभाजन

जातिगत विभाजन के साथ-साथ धार्मिक आधार पर भी समाज को बांटा जा रहा है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी और बौद्ध जैसे धर्मों के नाम पर लोगों को एक-दूसरे से अलग किया जा रहा है।

  • धर्म आधारित राजनीति: पार्टियां धर्म के नाम पर समर्थन मांगती हैं। एक ओर हिंदू संगठनों का उदय हो रहा है, तो दूसरी ओर मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की राजनीति भी बढ़ रही है।
  • धार्मिक एकता की कमी: ये पार्टियां और संगठन धार्मिक एकता की बात करने के बजाय समाज में धार्मिक विभाजन पैदा कर रहे हैं।

एकता की अनदेखी: बड़ा सवाल

इन संगठनों और पार्टियों से सवाल उठता है कि ये समाज को एकजुट करने की बात क्यों नहीं करते?

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  • सांप्रदायिकता और जातिवाद का खेल: यह देखना दुखद है कि एकता की जगह समाज को बांटने पर अधिक जोर दिया जा रहा है। इससे न केवल सामाजिक सद्भाव कमजोर हो रहा है, बल्कि देश की प्रगति भी बाधित हो रही है।
  • आर्थिक और सामाजिक मुद्दों की अनदेखी: जब राजनीति जाति और धर्म के इर्द-गिर्द घूमती है, तो बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी जैसे असली मुद्दे पीछे छूट जाते हैं।

समाधान: एकता और समावेशी राजनीति

समाज को बांटने वाली राजनीति का अंत तभी हो सकता है जब हम एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाएं।

  • सामाजिक एकता पर जोर: जाति और धर्म से परे, हमें एक मजबूत और एकजुट समाज की दिशा में काम करना होगा।
  • शिक्षा और जागरूकता: शिक्षा और सामाजिक जागरूकता से लोगों को यह समझाने की जरूरत है कि जाति और धर्म के नाम पर बंटवारा देश और समाज के लिए हानिकारक है।
  • समावेशी नीतियां: सरकार और राजनीतिक पार्टियों को ऐसे नीतियां बनानी चाहिए, जो हर वर्ग और समुदाय को साथ लेकर चलें।

जाति और धर्म के नाम पर बंटवारा करने वाली राजनीति न केवल देश की एकता को कमजोर करती है, बल्कि हमारे सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचाती है। हमें यह समझना होगा कि जाति, धर्म या समुदाय से परे, हम सभी एक ही देश के नागरिक हैं। अब समय आ गया है कि हम एकता और समावेशिता को प्राथमिकता दें और ऐसे संगठनों और नेताओं से सवाल करें, जो समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। देश तभी प्रगति करेगा जब सभी नागरिक एक साथ, एक विचार और एक उद्देश्य के साथ आगे बढ़ेंगे।

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आलेख किसी जाति धर्म,या इससे जुड़े संगठन को ठेस पहुंचाना नहीं है, सिर्फ विभाजन और एकता पर एक सवाल है

(लेखक मान्यता प्राप्त पत्रकार, आलोचक, टिप्पणीकार एवं मिशन संदेश समाचार पत्र के मुख्य संपादक हैं)

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