अन्यउत्तर प्रदेशजीवन शैली

पत्नी “पंच”पति बन बैठे परमेश्वर, ये है पंचायती राज में महिला सशक्तिकरण की हक़ीक़त

 

*95 फीसदी महिला प्रधान वाले पंचायतों में पति या पुत्र कर रहे प्रधानी*

Advertisement

रिपोर्ट राधेश्याम शास्त्री

सरकार ने पंचायती राज में महिलाओं को आरक्षण देकर उन्हें सशक्त बनाने की पहल की हैं। सरकार को उम्मीद थी कि महिलाएं पंचायती राज में पंच बनकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गांव के विकास में अपनी भागीदारी निभाएंगी। वे गांव की मुखिया बनकर गांव की सरकार चलाएंगी, लेकिन एेसा होता दिखाई नहीं दे रहा हैं। गांव की जनता ने जिस नारी को सरपंच बनाया वह पंच ही रह गई और पति परमेश्वर बन गांव की सत्ता चला रहे हैं।

Advertisement

जी हां गांव की मुखिया बनने के बाद भी 95 फीसदी महिलाएं घर की दहलीज पार कर बाहर नहीं निकल सकीं हैं। ग्राम सभा की बैठक से लेकर गांव की चौपालों में जनता की समस्याएं सुनने की जिम्मेदारी सरपंच पति या पुत्र ही निभा रहे हैं और जनता भी उन्हें ही प्रधान जी के नाम से संबोधित भी कर रहे हैं।
पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं का स्तर सुधारने तीन साल पूर्व सरकार ने पंचायतीराज में हिस्सेदारी तय कर दी। इससे लगा था कि जनप्रतिनिधि बनने से महिलाओं का जीवन स्तर सुधरेगा, लेकिन एेसा हुआ नहीं। महज 5 फीसदी महिलाएं ही एेसी हैं जो बिना पति व परिवार के अपने दम पर गांव व नगर की सरकार चला रही हैं।

*चूल्हा चौका से नहीं छूटा नाता*

Advertisement

जिले की त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था में भागीदारी महिलाओं की है। पंचायत से लेकर जिला पंचायत एवं नगर परिषद से लेकर नगर निगम तक महिला शक्ति का दबदबा है। इसके बाद भी महिलाओं की सामाजिक स्थित नहीं बदली हैं। प्रधान, पंच-सरपंच जैसे पद पाकर भी 80 फीसदी महिलाएं चूल्हा चौका से बाहर नहीं निकल पाईं हैं, यहां तक की ग्रामसभा की बैठक में भी इन महिला जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति दर्ज नही होती हैं। केवल हस्ताक्षर तक ही सिमटी महिला प्रधानों की कहानी पंचायती राज में महिला सशक्तिकारण की जमीनी हकीकत को बयां कर रही है।

*लेटर प्रधान का पति व पुत्र कर रहे हस्ताक्षर*

Advertisement

पंचायती राज में महिला सशक्तिकरण की चौंकाने वाली स्थिति यह है कि सरपंच व अध्यक्ष होने के बाद भी वह अपने कामकाज से अंजान हैं। जिला पंचायत के अध्यक्ष सहित गांवों की पंच तक हर काम उनके पति व पुत्र देखते हैं। बैंठकों से लेकर जिला कार्यालय तक हर जगह पति या पुत्र ही फाइल लेकर जाते हैं। चौंकाने वाली हकीकत तो यह है कि सरकारी दस्तावेजों में जिले की 60 फीसदी महिला प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर भी उनके पति या पुत्र ही करते हैं।

Advertisement

इस पोस्ट से अगर किसी को कोई आपत्ति हो तो कृपया 24 घंटे के अंदर Email-missionsandesh.skn@gmail.com पर अपनी आपत्ति दर्ज कराएं जिससे खबर/पोस्ट/कंटेंट को हटाया या सुधार किया जा सके, इसके बाद संपादक/रिपोर्टर की कोई जिम्मेदारी नहीं होग

Related posts

5 मिनट में पहुँची पीआरवी,दो पक्षों में हो रहे विवाद को कराया शान्त

Sayeed Pathan

कांग्रेस जिला-शहर अध्यक्षों की समीक्षा बैठक संविधान चैपाल कार्यक्रम में की गयी समीक्षा की गई

Sayeed Pathan

अन्तर्राष्ट्रीय उर्दू दिवस के अवसर पर बैठक, अल्लामा इक़बाल को याद करते हुए, उर्दू के विकास पर हुई चर्चा

Sayeed Pathan
error: Content is protected !!