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लोकसभा में नागरिकता विधेयक पास–शरणार्थियों को भारत मे नागरिकता मिलने का रास्ता साफ,

नई दिल्ली । पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंग्लादेश से आने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों के लिए भारत में नागरिकता का रास्ता तैयार होने लगा है। विधेयक पेश किए जाने से लेकर इसे पारित किए जाने तक विपक्ष के घोर विरोध के बीच भाजपा व सहयोगी दलों के साथ साथ कुछ गैर राजग दलों ने भी इसे बड़े बहुमत से पारित करा लिया। संभवत: बुधवार को इसे राज्यसभा से भी पारित कराने की कोशिश होगी।

मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है यह बि‍ल

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लोकसभा में इस विधेयक को पेश करने के साथ ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि इन देशों में अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाइयों को भारत में शरण देना और अधिकार देना भारत का कर्तव्य है। भाजपा ने घोषणापत्र में इसका उल्लेख किया था और जनादेश ने इसपर मुहर लगाई है। हालांकि उन्होंने विपक्ष के इस आरोप को भी खारिज किया कि यह मुस्लिमों के खिलाफ है। उन्होंने चुनौती दी कि अगर विपक्ष यह साबित कर दे कि यह भारत के मुस्लिमों के खिलाफ है तो वह विधेयक वापस ले लेंगे। साथ ही पूर्वोत्तर को आश्वासन दिया कि अधिकतर पूर्वोत्तर राज्यो में यह लागू नहीं होगा।

लोकसभा में हुई गरमागर्म बहस

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घुसपैठिए और शरणार्थियों के बीच भेद को जाहिर करते हुए शाह ने कहा कि शरणार्थियों के पास दस्तावेज हो या नहीं, उन्हें नागरिकता दी जाएगी। लगभग सात घंटे तक चली चर्चा में लोकसभा का माहौल बहुत गर्म था। कभी तीखी झड़प तो कभी तीखे आरोप प्रत्यारोप हुए। चर्चा में कुल 48 सदस्यों ने हिस्सा लिया और विपक्ष की ओर से हर किसी ने इस विधेयक को संविधान और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया। उनका सीधा आरोप था कि इसमें मुस्लिमों को छोड़कर समानता के अधिकार का उल्लंघन किया गया।

कई देशों का उदाहरण दिया

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अमित शाह ने विपक्ष की इस आशंका को भी खारिज कर दिया कि विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है, जिसमें नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करने का प्रावधान है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि किस तरह 1971 में विशेष परिस्थितियों में बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को शरण दी गई थी और बाद में यूगांडा और श्रीलंका संकट के दौरान भी ऐसा ही किया गया था।

विपक्ष के आरोपों को किया खारिज

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उन्होंने कहा कि यदि उस समय अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं हुआ तो अब विपक्ष किस आधार पर आरोप लगा रहा है। शाह ने साफ किया कि तीनों देश मुस्लिम राष्ट्र हैं और इस नाते वह वहां अल्पसंख्यक नहीं हैं इसीलिए उन्हें नागरिकता नहीं दी जा सकती है। बल्कि शाह ने आरोप लगाया कि अगर कांग्रेस धर्म के आधार पर देश का विभाजन स्वीकार नहीं करती तो यह विधेयक लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। शाह ने विस्तार से यह भी बताया कि इन देशों में गैर मुस्लिम अल्पंसख्यकों के साथ बहुत भेदभाव हुआ, उन्हें प्रताड़ित किया गया। ऐसे में उन्हें शरण देना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने कुछ उद्धहरण भी पेश किए।

पूरी चर्चा के दौरान राजनीति भी खूब साधी गई और इसकी झलक तब ज्यादा दिखी जब पश्चिम बंगाल से आने वाले तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के सदस्य आमने सामने हुए। धर्मनिरपेक्षता का आरोप लगा रहे कांग्रेस पर शाह ने भी चुप्पी ली और तंज किया कि कांग्रेस अकेली ऐसी पार्टी है जो केरल में मुस्लिम लीग के साथ है और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ।

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शाह ने उत्तरपूर्व को दिया आश्‍वासन

शाह ने कहा कि अगर वोट बैंक के कारण राजनीतिक दलों की आंख और कान बंद हो गए हों तो उसे खोल ले क्योंकि यह विधेयक न्याय देने के लिए है। इस विधेयक को लेकर उत्तरपूर्व में सबसे ज्यादा आशंका थी। ऐसे में अमित शाह ने भरोसा दिया कि पूर्वोत्तर के राज्यों को इस विधेयक से डरने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में यह लागू नहीं होगा। इसी तरह से इनरलाइन परमिट से सुरक्षित नागालैंड और मिजोरम में इसका कोई प्रभाव नहीं होगा, जबकि मणिपुर में इनरलाइन परमिट को लागू किया जाएगा। यह बिल उसके बाद ही नोटिफाइ किया जाएगा।

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संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल होने के कारण मेघालय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसी तरह त्रिपुरा का भी बड़ा हिस्सा इससे बचा रहेगा। असम के मूल निवासियों की भी रक्षा होगी। शरणार्थियों की आशंकाओं को खारिज करते हुए शाह ने कहा कि कुछ दल भ्रम फैला रहे हैं। नागरिकता का आवेदन करने के बाद उनके खिलाफ अवैध रूप से भारत में आने की कोई जांच नहीं होगी।

नागरिकता देने का भरोसा

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शाह ने भरोसा दिया कि इस विधेयक के तहत इन शरणार्थियों की नागरिकता उसी दिन से मानी जाएगी जिस तारीख से भारत में आए हैं। उन्होंने कहा कि उनके पास राशनकार्ड हो या नहीं, गृहमंत्री होने के नाते उन्हें नागरिकता देने का भरोसा देते हैं। इस आधार पर आवेदन खारिज नहीं होगा कि उसके खिलाफ कार्रवाई चल रही है। 2014 से पहले आए शरणार्थी को 2020 तक नागरिकता मिल जाएगी।

विधेयक के पीछे राजनीतिक एजेंडे के विपक्षी दलों के आरोपों का जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि यह एक लंबी राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सा है। किसी भी दल का घोषणापत्र, सिर्फ राजनीतिक एजेंडा नहीं, बल्कि जनता की आक्षांकाओं का प्रतिनिधित्व होता है। उन्होंने बताया कि भाजपा ने 2014 और 2019 के अपने घोषणापत्र में साफ कर दिया था कि पड़ोसी देशों से आने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता देगी। इस घोषणापत्र के आधार पर ही जनादेश मिला है।

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अमित शाह के जवाब के अहम बिंदु

1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 फीसद थी, जो घटकर 2011 में 3.7 फीसदी हो गई। इसी तरह 1971 में बांग्लादेश 21 फीसदी अल्पसंख्यक थे, जो सात फीसदी से कम रह गए। अफगानिस्तान में 1992 से पहले दो लाख से अधिक हिंदू और सिख थे, जिनकी संख्या 500 से कम बची है।

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पीओके भी हमारा है, उसके नागरिक भी हमारे हैं। आज भी जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 24 सीटें उनके लिए सुरक्षित रखी हैं। समय-समय पर विभिन्न देशों से आए नागरिकों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। श्रीलंका से आए विस्थापितों को नागरिकता दी गई है। किसी से दुर्भावना नहीं है। इस बार विशेष रूप से तीन देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।

अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 में अंतर है। अनुच्छेद 371 को कभी भी नहीं छेड़ेगे। अनुच्छेद 371 अलग झंडा, अलग संविधान का प्रावधान नहीं करता है।

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एनआरसी के लिए कोई बैकग्राउंड की जरूरत नहीं है। यह होकर रहेगा। हमारा घोषणापत्र ही बैकग्राउंड है। हम जल्द ही एनआरसी लेकर आएंगे। इस सदन को आश्वासन देता हूं कि जब हम एनआरसी लेकर आएंगे, तब एक भी घुसपैठिया नहीं बचेगा।

कांग्रेस एक ऐसी गैर सांप्रदायिक पार्टी है, जिसकी केरल में मुस्लिम लीग और महाराष्ट्र में शिवसेना पार्टनर है। हमने ऐसी गैर सांप्रदायिक पार्टी नहीं देखी।

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असदुद्दीन ओवैसी को जवाब- मुसलमानों से हमें कोई नफरत नहीं है। कृपया आप इसे नहीं फैलाये। इस बिल का भारत में रहने वाले मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है। यहां का मुसलमान सम्मान के साथ जी रहा है और रहेगा। इससे उनका कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

एनआरसी और नागरिकता कानून में संशोधन से असम में रहने वाले पंजाबी, ओडि़या, गोरखा, बिहारी, मारवाड़ी बाहर हो जाएंगे यह सत्य नहीं है।

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भारत और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए 1950 में हुआ नेहरू-लियाकत समझौता लागू हुआ होता, तो इस बिल की जरूरत नहीं पड़ती। 2014 की रिपोर्ट 1000 लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन किया गया। जब इतने अत्याचार हो, शरण ने आए तो हम शरण न दे क्योंकि वे हिंदू है, सिख हैं। यह ठीक नहीं है।

बांग्लादेश में शेख मुजीबुर्रहमान के रहते हुए किसी अल्पसंख्यक के साथ भेदभाव नहीं हुआ। उनके लिए कृतज्ञता प्रकट करता हूं। मौजूदा शेख हसीना शासन के दौरान भी भेदभाव नहीं हो रहा है। लेकिन मुजीबुर्रहमान की 1975 में हत्या के बाद अल्पसंख्यकों के साथ बहुत अत्याचार हुए।

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