प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज कुछ घंटे पहले नेपाल पहुंच गए हैं। बतौर PM मोदी की यह पांचवी नेपाल यात्रा है। इस दौरे को दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों के लिहाज काफी अहम माना जा रहा है। इसके अलावा देश की राजनीति से भी इसे जोड़कर देखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा लुंबिनी में मुलाकात की है। इस दौरान वो दोनों देशों के बेहतर संबंध को लेकर चर्चा हुई। एक दूसरे के हितों के मुद्दों पर भी बातचीत हुई है। बहरहाल, सवाल ये है कि मुलाकात के लिए लुंबिनी ही क्यों, काठमांडू या कोई और शहर क्यों नहीं? हम आपको बताते हैं क्यों…..
यहीं हुआ था गौतमबुद्ध का जन्म

एशिया के देशों को एक सूत्र में बांध सकती है बौद्ध कूटनीति

लुंबिनी जाने से भारत-नेपाल के राजनीतिक रिश्ते तो मजबूत होंगे ही, साथ बौद्ध कूटनीति से एशिया को भी एक सूत्र में भी बांधा जा सकता है। दरअसल, दुनिया की बड़ी बौद्ध आबादी चीन, नेपाल भूटान, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों में रहती है। इसीलिए भारत बौद्ध कूटनीति से एशिया को एकता के सूत्र में बांध सकता है।
सियासी इशारे भी
भारत में बौद्ध धर्म के मानने सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में हैं। यहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य में फिलहाल, कांग्रेस-NCP और शिवसेना की सरकार है और भाजपा प्रमुख विपक्षी दल है। प्रधानमंत्री की इस यात्रा का धार्मिक के साथ राजनीतिक महत्व भी माना जा सकता है। यहां से वो महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और देश के बाकी बौद्धों को भाजपा से जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।