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राष्ट्रीयसंपादकीय

संपादकीय::देश के पत्रकार और हॉकर्स की पुकार हमें बचा लो सरकार…

सईद पठान / श्रीगोपाल गुप्ता

विश्वव्यापी महामारी ने पूरे विश्व को हलकान कर दिया है, एक तरफ जहां लाखो जानें असमय काल के गाल में समा रही हैं तो वहीं विश्व की अर्थव्यवस्था भी गर्त में चली गई है! भारत भी इसके कहर से अछूता नहीं है, चारो तरफ इसके कहर से आम हिन्दुस्तानी और उसकी जीवन शैली चरमरा कर ढहने को मजबूर है! देश की अर्थव्यवस्थाओं के महल की तरह ढह रही है और हम इसे देखते हुए रहने के लिए अभिशप्त हैं! आलम यह है कि एक तरफ से सड़क पर किसी तरह दो जून की रोटी मिल होनी चाहिए और अपने घर-आंगन गांव तक पहुंचना चाहिए। और वेतन न मिलने से हैरान-परचेन श्रमजीवी पत्रकार हैं! जी हां संकट अब अन्य औधोगिक सेक्टर की तरह देश-प्रदेश के सैकड़ों छोटे व मझोले अखबारों पर मंडराने लगा है, संकट इतना बड़ा होने रहा है कि इसके गूंज और चपेट में कई बड़े और नामी पत्र भी आने लगे हैं!इस संकट का सबसे बड़ा असर कागज छापने से लेकर इसके वितरण में लगे हजारों हजारों मजदूरों के साथ-साथ जान-जोखिम में डालकर दुनिया लाने वाले साथ श्रमजीवी पत्रकारों पर भी पढ़े जा रहे हैं! हालात इतने भयवाह हो गए हैं कि वित्तीय तंगी के कारण वर्षों से जनता और सरकारों के बीच पुल का काम करने वाले साथ बहुत धीरे-धीरे इस कोरोना की मार के कारण बंद हो गए हैं! वे काम करने वाले इन कर्मचारियों का वेतन और कागज-वसही का पैसा नहीं दे पा रहे हैं कारण स्पष्ट है कि कोरोनासिस से एक तरफ उन्हें सरकारी और गैर सरकारी विज्ञापन नहीं मिल पा रहे हैं वहीं लेखों से वसूली नहीं हो रही है! सबसे! बुरे हालात अपनी जान को जोखिम में डालने वाले श्रमजीवी पत्रकार और कोरोनावायरस के हालात का सामना कर रहे हाकरों के हैं जो बेनागा सुबह-सुबह पाठ तक पेपर पहुँचते हैं, वे भी भुखमरी की जद में आ गए हैं!स्थिति इतनी खट्टी है कि अप्रैल महिने की रिपोर्ट के अनुसार मृप में 300 अखबारों का वर्षों से चला आ रहा प्रकाशन बंद हो गया है! अब तो हालात इतने बेकाबू होते रहे हैं कि बड़े-बड़े नामचीन और विश्व के एक नंबर पाठक वाले भी अपने खिताबों से हाथ धो रहे हैं और बड़े स्तर पर अपने संपादकों, पत्रकारों और कर्मचारियों को संस्थान से निकालने के लिए मजबूर हो गए हैं, एक पत्रों ने देश के कई प्रदेशों में जाकर अपने कई एडिशनों को बंद करने की तैयारी कर ली है!

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इस संकट काल में प्रदेश के कागज और बड़ी संख्या में इसके शिकार हो रहे श्रमजीवी पत्रकारों को बचाने के उपाय के लिए जब प्रदेश के सबसे बड़े पत्रकारों के संगठन मप्र श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष व लंबे समय से काफी अनुभवी श्री शलभ भदौरिया से बातचीत हुई। । तो कई ठोस उपाय बता! श्री भदौरिया ने बताया कि चूकिं प्रदेश की पूर्व कमलनाथ की सरकार ने इन छोटे व मझोले अखबारों को न के बराबर विज्ञापन बनाया! जो थोड़े बहुत पढ़े गए उनमें भी ज्यादातर अखबारों का भुगतान नहीं हुआ! जब शिवराज सिंह चौहान की सरकार चली गई थी और उनके द्वारा जो विज्ञापन दिए गए थे, उनका भुगतान भी कमलनाथ सरकार द्वारा नहीं किया गया था! ऐसे में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को उस पत्र और इससे जुड़े हजारों मजदूरों को बचाने के लिए आगे आयें और तत्काल स्वीकृति देने का भुगतान सुनिश्चित करें!उन्होने यह भी बताया कि वे इसके लिए वे स्वयं मुख्यमंत्री को अपने अधिकारिक ट् पर िल ब्रांडिल पर एक ज्ञापन देकर हाथ बढ़ाने का अनुरोध कर चुके हैं! करते हुए बताया कि इनकी कमर तो कागज छापने के कागजों की बढ़ती कीमतों ने पहले से ही तोड़ रखी है! उन्होने बताया कि अगस्त 2017 से पहले जो पेपरों में 33-34 हजार रुपये टन आता था आज उसकी कीमत 58-62 हजार रुपये टन है, चूकी भारत को लगभग 28 लाख टन कागज आयत की जरूरत है लेकिन उस हिसाब से आयात नहीं हो पा रहे। है। और अब कोरोना के कारण हालात और बेकाबू हो गए हैं! उन्होने भी मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि इस सशर्त स्थिति में उन्हें आगे आना चाहिए और इन अखबारों का रुका हुआ कोड का भुगतान कर नए विज्ञापन भी जारी किए जाने चाहिए!वास्तव में सरकार को विपरीत परिस्थितियों में इन अखबारों और इनसे जुड़े मजदूरों और उनके परिवार की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए और उनके रुके हुए विज्ञापनों का भुगतान सुनिश्चित करना चाहिए! सरकार को भी ध्यान में रखना होगा की अन्य कोरोनावायरस योद्दाओं की तरह लोकतंत्र के इस चोथे खंबें के जांबाज पत्रकारों ने भी कोई कौर-काम नहीं किया इस लाकडाऊन में उठाकर नहीं रखा! कठिन परिस्थिति में भी शासन-प्रशासन की बातें, उसके द्वारा जनता की बेहतरी के लिए किए जा रहे जनहित कार्य व जनता की पुकार को भी उसके तक पहुंचाने का कार्य सफलता से अंजाम दिया है! ऐसे में इन अखबारों को बचाने की गुहार को प्रदेश सरकार ने मानकर हल के लिए आगे आये! कठिन परिस्थिति में भी शासन-प्रशासन की बातें, उसके द्वारा जनता की बेहतरी के लिए किए जा रहे जनहित कार्य व जनता की पुकार को भी उसके तक पहुंचाने का कार्य सफलता से अंजाम दिया है!ऐसे में इन अखबारों को बचाने की गुहार को प्रदेश सरकार ने मानकर हल के लिए आगे आये! कठिन परिस्थिति में भी शासन-प्रशासन की बातें, उसके द्वारा जनता की बेहतरी के लिए किए जा रहे जनहित कार्य व जनता की पुकार को भी उसके तक पहुंचाने का कार्य सफलता से अंजाम दिया है! ऐसे में इन अखबारों को बचाने की गुहार को प्रदेश सरकार ने मानकर हल के लिए आगे आये!

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