जीएसटी से बाहर पेट्रोल-डीजल: जनता के साथ अन्याय (संपादकीय आलेख सईद पठान)



देश आज जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा बन चुकी है। आम जनता का बजट हर दिन की बढ़ती कीमतों से चरमराया हुआ है। खासकर पेट्रोल और डीजल की दरें सीधे-सीधे हर घर की रसोई तक असर डालती हैं। क्योंकि ईंधन महंगा हुआ तो परिवहन महंगा, और परिवहन महंगा तो रोजमर्रा की वस्तुएं भी महंगी। ऐसे में सवाल उठता है कि जब केंद्र सरकार ने अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी दरें घटाकर आम उपभोक्ता को राहत दी है, तो फिर पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में शामिल करने से क्यों परहेज किया जा रहा है? क्या यह जनता के साथ धोखा नहीं माना जाएगा?

दरअसल, पेट्रोल और डीजल ही ऐसे उत्पाद हैं जिन पर केंद्र और राज्य सरकारें भारी-भरकम कर लगाकर अपने खजाने भरती हैं। केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) वसूलती है और राज्य सरकारें वैट (मूल्य वर्धित कर) लगाती हैं। दोनों मिलकर प्रति लीटर कीमत का लगभग आधा हिस्सा टैक्स के रूप में वसूलते हैं। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम घटने पर भी घरेलू उपभोक्ता को उसका पूरा लाभ नहीं मिलता। यदि इन उत्पादों को जीएसटी में लाया जाए, तो अधिकतम कर दर 28 प्रतिशत होगी। इससे उपभोक्ताओं को बड़ी राहत तो मिलेगी, लेकिन राज्यों और केंद्र दोनों के राजस्व पर बड़ा असर पड़ेगा। यही वजह है कि सरकारें इस दिशा में कदम बढ़ाने से कतरा रही हैं।

परंतु सवाल यह भी है कि आखिर यह बोझ कब तक जनता ढोती रहेगी? जब अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर दरें घटाने का साहस केंद्र सरकार ने दिखाया है, तो पेट्रोल-डीजल के मामले में क्यों नहीं? आखिरकार, इन दोनों उत्पादों की कीमतें सीधे महंगाई की दर तय करती हैं। यदि इन्हें जीएसटी के दायरे में लाया जाए, तो न केवल उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी बल्कि परिवहन और उत्पादन लागत घटने से वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता आएगी।

इसके साथ ही यह मुद्दा राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। देश में पंचायत और विधानसभा चुनावों का सिलसिला लगातार जारी है। यदि केंद्र सरकार जनता को महंगाई से राहत देने के लिए पेट्रोल-डीजल पर साहसिक कदम उठाती है और जीएसटी परिषद की बैठक बुलाकर इस पर पुनः विचार करती है, तो निश्चित ही उसका सकारात्मक असर चुनाव परिणामों में दिखेगा। आम मतदाता केवल भाषणों और वादों से नहीं, बल्कि अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में महसूस होने वाली राहत से प्रभावित होता है।

दरअसल, केंद्र सरकार के लिए यह एक अवसर है। आज जनता का गुस्सा महंगाई को लेकर चरम पर है। यदि पेट्रोल-डीजल जीएसटी में आ जाते हैं, तो यह कदम जनता को सीधा संदेश देगा कि सरकार केवल राजस्व हितों के बारे में नहीं, बल्कि आम नागरिक की पीड़ा को भी प्राथमिकता देती है। यह कदम महंगाई पर अंकुश लगाने के साथ-साथ सरकार की साख को भी मजबूत करेगा।

 कहा जा सकता है कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में शामिल करना केवल आर्थिक सुधार का मामला नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक और सामाजिक न्याय का भी सवाल है। जब देश की जनता बढ़ती महंगाई से जूझ रही है, तब सरकार का दायित्व बनता है कि वह अपने राजस्व हितों से ऊपर उठकर जनता के हित में निर्णय ले। जीएसटी परिषद की बैठक बुलाकर इस मुद्दे पर गंभीरता से पुनर्विचार करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यदि सरकार यह साहसिक कदम उठाती है, तो निश्चित ही आने वाले चुनावों में इसका सकारात्मक परिणाम मिलेगा और जनता का भरोसा भी मजबूत होगा।

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