विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण में घोटाले की आशंका: सीबीआई जांच की मांग पर अडिग संघर्ष समिति
👉बिजली कर्मियों ने उठाए पांच गंभीर सवाल, कहा — प्रदेश की संपत्तियों को ‘कौड़ियों के मोल’ बेचने की साजिश
👉दीपावली से पहले बिजली कर्मियों को भी मिले बोनस : संघर्ष समिति की मांग
(रिपोर्ट -मोहम्मद सईद पठान)
संतकबीरनगर। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया को लेकर विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने बड़ा आरोप लगाते हुए कहा है कि इस पूरी प्रक्रिया में “बड़े घोटाले की आशंका” है। समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से निजीकरण के पूरे मामले की सीबीआई जांच कराए जाने और निजीकरण का निर्णय तत्काल निरस्त करने की मांग की है।
संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री द्वारा दीपावली से पहले 15 लाख राज्य कर्मचारियों को बोनस देने की घोषणा का स्वागत किया, साथ ही यह भी कहा कि प्रदेश में दीपावली के समय अभूतपूर्व बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने वाले बिजली कर्मियों को भी बोनस दिया जाना चाहिए।
❖ निजीकरण पर उठे पांच गंभीर सवाल
संघर्ष समिति ने पांच प्रमुख बिंदुओं के आधार पर सरकार से गंभीर सवाल उठाए हैं—
1. डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटी मीट 2024 की भूमिका:
संघर्ष समिति के पदाधिकारी आर्यन कुमार ने बताया कि विगत वर्ष नवंबर में लखनऊ में आयोजित इस मीट में निजी घरानों की बड़ी भागीदारी रही और इसी मीटिंग में पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत निगमों के निजीकरण की पृष्ठभूमि तैयार की गई।
यही नहीं, इसी मीटिंग में उप्र पावर कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष डॉ. आशीष गोयल को ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोसिएशन का जनरल सेक्रेटरी और एनपीसीएल के सीईओ पी.आर. कुमार को ट्रेजरार बनाया गया, जिससे हितों का टकराव साफ झलकता है।
2. ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति में गड़बड़ी:
संघर्ष समिति ने कहा कि ग्रांट थॉर्टन कंपनी की नियुक्ति में हितों के टकराव और झूठे शपथ पत्र देने जैसी गड़बड़ियां हुईं। अमेरिका में पेनल्टी लगने के बावजूद इस कंसल्टेंट को नहीं हटाया गया और इसी से निजीकरण के डॉक्यूमेंट तैयार कराए गए।
3. बिडिंग डॉक्यूमेंट को लेकर अपारदर्शिता:
संघर्ष समिति का आरोप है कि आरएफपी डॉक्यूमेंट के लिए ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट 2025 को आधार बनाया गया, जो आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया। इससे पहले 2020 में जारी ड्राफ्ट डॉक्यूमेंट पर दर्जनों आपत्तियाँ आई थीं जिनका निस्तारण आज तक नहीं हुआ।
4. कॉर्पोरेट घरानों के साथ मिलीभगत:
समिति ने आरोप लगाया कि पूरी प्रक्रिया कॉर्पोरेट घरानों को विश्वास में लेकर की जा रही है। टाटा पावर के सीईओ प्रवीर सिन्हा ने स्वयं कहा कि निजीकरण के आरएफपी डॉक्यूमेंट उनसे चर्चा कर बनाए गए हैं। समिति ने कहा — “यह स्थिति साफ दर्शाती है कि निजीकरण के नाम पर कॉर्पोरेट ‘कार्टेल’ बन चुका है।”
5. सार्वजनिक संपत्तियों को कौड़ियों के मोल बेचने की साजिश:
संघर्ष समिति ने आरोप लगाया कि पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत निगमों को इक्विटी के आधार पर बेचने की कोशिश की जा रही है, जिससे लाखों करोड़ रुपये की परिसंपत्तियां निजी घरानों को कौड़ियों के दाम में मिल जाएंगी।
❖ ‘निजीकरण नहीं, पारदर्शिता चाहिए’
संघर्ष समिति के पदाधिकारी चंद्रकेश मौर्य ने कहा कि निजीकरण के प्रारंभिक चरण में ही ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की अवैध नियुक्ति ने घोटाले की आशंका को बल दिया था। वहीं धीरेन्द्र यादव ने कहा कि “उत्तर प्रदेश में बिजली की करोड़ों की परिसंपत्तियों को लूट से बचाने के लिए मुख्यमंत्री को तुरंत हस्तक्षेप कर सीबीआई जांच करानी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि बिजली कर्मचारी, किसान, उपभोक्ता, सरकारी कर्मचारी और ट्रेड यूनियनें मिलकर इस “भ्रष्टाचार” के खिलाफ आंदोलन जारी रखेंगी।
❖ 321 दिन से जारी विरोध आंदोलन
निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन को 321 दिन पूरे हो गए हैं। इसी क्रम में संतकबीरनगर में भी व्यापक विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसमें सुनील प्रजापति, सूरज प्रजापति, नारायण चंद्र चौरसिया, दिलीप मौर्य, आर्यन कुमार, आशीष कुमार, भास्कर पांडेय, धीरेन्द्र यादव, अशोक कुमार, मनोज यादव, चंद्रकेश मौर्य, प्रद्युम्न कुमार, मनीष मिश्रा, उमेश चौधरी सहित कई बिजली कर्मी शामिल रहे।
ई. मुकेश गुप्ता, जिला संयोजक (संतकबीरनगर) ने कहा कि “यह आंदोलन केवल कर्मचारियों का नहीं, बल्कि प्रदेश की जनता की आवाज़ है। जब तक निजीकरण का फैसला वापस नहीं लिया जाएगा, यह संघर्ष जारी रहेगा।”
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