दिल्ली में बुनकर मजदूर विकास समिति की बैठक, अंसारी समाज को एकजुट होने पर जोर – लेकिन क्या एक समाज तक सीमित रहना उचित?



(रिपोर्ट मोहम्मद सईद)

मुस्तफाबाद (दिल्ली)। बुनकर मजदूर विकास समिति के बैनर तले 18 सितम्बर 2025 को एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। यह बैठक समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (युवा प्रकोष्ठ) ताजुद्दीन अंसारी के निवास स्थान पर हुई। बैठक का संचालन समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मंत्री जनाब शहाबुद्दीन अंसारी के निर्देशन में किया गया, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. मोहम्मद नाजिम उपस्थित रहे।

सभा में वक्ताओं ने विशेषकर अंसारी समाज को एकजुट होकर अपने हक और अधिकार की लड़ाई लड़ने तथा समिति को और मजबूत करने पर जोर दिया। बैठक में मौजूद कार्यकर्ताओं ने नारों के साथ अपने जोश और समर्थन का इज़हार किया—
“बुनकर मजदूर विकास समिति ज़िंदाबाद, बुनकर मजदूर एकता ज़िंदाबाद, राष्ट्रीय अध्यक्ष शहाबुद्दीन अंसारी ज़िंदाबाद।”

भावात्मक दृष्टिकोण

सभा में जोश और जज़्बा साफ झलक रहा था। वक्ताओं ने यह संदेश देने की कोशिश की कि जब तक अंसारी समाज एकजुट होकर आगे नहीं आएगा, तब तक उसके अधिकारों की लड़ाई अधूरी रहेगी। बुनकर मजदूरों के जीवन में आ रही कठिनाइयों, आर्थिक चुनौतियों और सामाजिक उपेक्षा का दर्द भी वक्ताओं की बातों से बार-बार सामने आया।

विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण

हालांकि, इस बैठक से एक गंभीर सवाल भी उभरता है—क्या किसी संगठन द्वारा सिर्फ एक ही समाज को केंद्र में रखकर आवाज़ उठाना, आज के बहु-आयामी और सामूहिक संघर्ष के दौर में सही रणनीति है?
भारत जैसे विविधता वाले देश में जब समाज के हर वर्ग को साथ लेकर संघर्ष करने की आवश्यकता है, तब केवल अंसारी समाज पर ध्यान केंद्रित करना मुस्लिम समाज के भीतर ही एक प्रकार की फूट डालने जैसा प्रतीत हो सकता है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि संगठन व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर बुनकर मजदूरों के साथ-साथ अन्य पिछड़े वर्गों और मेहनतकश तबकों को भी अपने संघर्ष में शामिल करे तो इसका प्रभाव कहीं अधिक सकारात्मक और मजबूत होगा। केवल जातीय या वर्गीय दायरे में सिमटने से संगठन की ताक़त सीमित हो सकती है और बड़े मंच पर उसकी प्रासंगिकता कम हो सकती है।

निष्कर्ष

बुनकर मजदूर विकास समिति का यह प्रयास निश्चित रूप से समाज के एक हिस्से के लिए प्रेरणादायी है और इससे उस वर्ग की आवाज बुलंद होगी। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या इस तरह की रणनीति मुस्लिम समाज के भीतर अलगाव की स्थिति को जन्म नहीं देगी?
आज के समय में संगठनों से अपेक्षा की जाती है कि वे सिर्फ एक समाज तक सीमित न रहकर सभी वंचित और उत्पीड़ित वर्गों को साथ लेकर आगे बढ़ें। तभी असली सामाजिक न्याय और एकता की दिशा में सार्थक कदम उठाया जा सकता है।


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