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कवि गोष्ठी के आयोजन में नौसिखिया कवियों ने लिया हिस्सा

संतकबीरनगर । तप्पा उजियार संतकबीर नगर के विकास खण्ड सेमरियावाँ स्थित जाफरिया बुक डिपो पर एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिस में विभिन्न युवा कवियों ने भाग लिया। उपस्थित नौसिखिया कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करके श्रोतागण से खूब वाहवाही लूटी।

मुहम्मद अरशद की अध्यक्षता और ज़ुहैब हस्सान की अगुवाई में आयोजित होने वाली इस गोष्ठी का संचालन मुहम्मद सलमान आरिफ नदवी ने किया।

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कारी मुहम्मद हफीज की तिलावते कलाम पाक से बैठक प्रारम्भ हुई। फिर मुहम्मद सलमान आरिफ नदवी ने उर्दू भाषा के इतिहास का विवरण पेश करते हुए उर्दू पद्य पर भी संक्षिप्त रौशनी डाली। साथ ही साथ बैठक के उद्देश्यों को भी उजागर किया।

मुहम्मद सलमान आरिफ नदवी ने कहा कि उर्दू भाषा में बड़ी मिठास और सरलता है। उर्दू प्रेम व स्नेह का स्रोत है। स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू भाषा ने जो सेवाएं व संघर्ष किया है उसे भुलाया नहीं जा सकता। उर्दू भाषा की उत्पत्ति के बारे में चार धारणाएं पाई जाती हैं। कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि अरब सौदागरों का आवागमन मालाबार व आसपास में होता रहता था। भारतीयों से संबन्ध व वार्तालाप के नतीजे में दकन में धीरे धीरे एक ऐसी भाषा तय्यार हुई जिसने आगे चलकर उर्दू भाषा का रूप धारण किया। अल्लामा सय्यद सुलैमान नदवी रह• की राय है कि सिंध में जब मुस्लिम शासकों का आगमन हुआ, और उन्होंने अपनी सत्ता स्थापित की, तो उन्हें किसी ऐसी भाषा की आवश्यकता का आभास हुआ जो प्रजा व सत्ता के बीच माध्यम बन सके। यहीं एक भाषा की बीज पड़ा, जो धीरे धीरे विशालकाय वृक्ष बनता गया। जिसे उर्दू भाषा का नाम दिया गया। जब कि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कि उर्दू का जन्म स्थान पंजाब है। शहाबुद्दीन गौरी द्वारा जब भारत में फारसी भाषियों का शासन स्थापित हुआ, तो उन्हें भी शासन प्रणाली को सुचारू ढंग से चलाने के लिए किसी भाषा की आवश्यकता पड़ी, यहीं से उर्दू भाषा की नींव पड़ी। चौथी राय उन इतिहास कारों की है जो यह मानते हैं कि जब दिल्ली में मुगल काल आरम्भ हुआ, उस के बाद उर्दू भाषा का जन्म हुआ। इन सब थ्योरीज का विश्लेषण करने पर यह बात सामने आती है कि अरब व भारत के मध्य सम्बन्धों के फलस्वरूप दकन में एक भाषा ने जन्म लिया। जिस ने सिंध प्रांत में अपने बाल व पर खोले। पंजाब में फली फूली। और दिल्ली आकर उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा। शुरू में उर्दू को हिन्दवी, हिन्दुस्तानी, रेख़्ता कहा गया, आगे चलकर क़िलाए मुअल्ला और उर्दूए मुअल्ला के नाम से पुकारा गया, जो धीरे धीरे मात्र उर्दू रह गया।

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उर्दू शाएरी पर बात करते हुए मुहम्मद सलमान आरिफ नदवी ने कहा कि उर्दू शाएरी का पहला कवि अमीर खुसरो को माना जाता है। हालांकि उन से पहले एक उर्दू शाएर मस्ऊद सअ्द लाहौरी का नाम मिलता है, पर उन का कोई कलाम अब मौजूद नहीं रहा। उर्दू शाएरी का पहला साहबे दीवान शाएर कुली कुतुब शाह है। लेकिन जिसने उर्दू ग़ज़ल को विकसित किया, परवान चढ़ाया, वह वली दक्नी है। आगे चल कर अनगिनत कवियों जैसे मज़हर जाने जानाँ, मुल्ला वजही, मिर्ज़ा मुहम्मद रफीअ् सौदा, मीर तक़ी मीर, ख़्वाजा मीर दर्द, बहादुर शाह ज़फ़र, दया शंकर कंवल नसीम, नासिख़, मिर्ज़ा ग़ालिब, हैदर अली आतिश, रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी, इब्राहीम ज़ौक़, अल्ताफ हुसैन हाली, ब्रिज नारायण चकबस्त, अकबर इलाहाबादी, तिलोक चंद महरूम, जोश मलेहाबादी, राम प्रसाद बिस्मिल, नज़ीर अक्बराबादी, जिगर मुरादाबादी, पण्डित हरी चन्द अख़्तर, मजनूं गोरखपूरी, परवीन शाकिर, शिब्ली नोमानी, सलामत अली दबीर, जगन नाथ आज़ाद, कलीम आजिज़, राहत इन्दौरी, मुजीब बस्तवी, मुनव्वर राना, मस्ऊद हस्सास आदि ने उर्दू शाएरी को आगे बढ़ाया।

उसके बाद अदबी बैठक की शुरुआत हुई। नाते पाक शुऐब शैख़ ने पेश की, फिर कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। चन्द पंक्तियां जिन्हें बेहद पसन्द किया गया, निम्नलिखित हैं।
मोती हूँ समन्दर का मुझे साहिल पर क्यों लाए।
बैठ कर मैं यहाँ देखूं सुराग अच्छा नहीं लगता।
(हाशिम आदमज़ाद)
हमारी क़ौम के बच्चों को इंग्लिश से मुहब्बत है।
हमें यह ग़म है कि मुस्तक़बिल में उर्दू कौन बोलेगा।
(मक़सूद अहमद)
जो लोग नाज़ुक हालात से डर जाते हैं।
वह जीते जी ही दुनिया में मर जाते हैं।
(मुहम्मद अरमान)
हर मुरझाए चेहरे पर मुस्कान लाएंगे हम।
ऐसी छोटी बड़ी महफिल सजाएंगे हम।
भूल रहे हैं जब यहां सभी उर्दू ज़बाँ।
प्यारी ज़बाँ उर्दू को हर जगह फैलाएंगे हम।
(ज़ुहैब हस्सान)

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इन के अलावा मुहम्मद तलहा, अब्दुल वदूद, मुहम्मद अरक़म आदि ने भी अपने कलाम सुनाए। अन्तिम में आयोजक मुहम्मद अलकमा हुसैन प्रोपराइटर जाफरिया बुक डिपो ने कवियों व अतिथियों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर अबू तलहा, महताब अहमद, मुहम्मद ज़ैद, मुहम्मद शाहिद, मुहम्मद सईद, शमशीर अहमद आदि उपस्थित थे।

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