वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल शिवसेना की तरफ से पेश हुए और उन्होंने रविवार के दिन न्यायाधीशों को हुई परेशानी के लिए माफी मांगने के साथ बहस शुरू की। कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि चुनाव पूर्व गठबंधन टूट गया, तीनों दलों की चुनाव के बाद गठबंधन की कोशिशें चल रही है।
सिब्बल ने मंत्रिमंडल की बैठक के बिना राष्ट्रपति शासन हटाए जाने को अजीब है। उन्होंने कहा कि देवेंद्र फडणवीस, अजित पवार ने अजीब तरीके से शपथ ली, राज्यपाल दिल्ली से मिल रहे सीधे निर्देशों पर काम कर रहे थे। राष्ट्रपति शासन को रद्द करने की सिफारिश करने वाले राज्यपाल के फैसले से पक्षपात की ”बू आती” है। शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस ने उच्चतम न्यायालय से आज ही (रविवार) सदन में शक्ति परीक्षण कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया।
सिब्बल ने कहा कि यदि फडणवीस के पास संख्या बल है, तो उन्हें सदन के पटल पर यह साबित करने दें, अन्यथा महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए हमारे पास संख्या बल है। वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी कुछ भाजपा और निर्दलीय विधायकों की ओर से न्यायालय में पेश हुए। उन्होंने कहा कि यह याचिका बंबई उच्च न्यायालय में दायर होनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इसमें दोराय नहीं है कि शक्ति परीक्षण बहुमत साबित करने का सबसे अच्छा तरीका है। केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस के पास सरकार बनाने का मौलिक अधिकार नहीं है और उनकी याचिका को मंजूरी नहीं दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने याचिका पर सुनवायी की। इस याचिका में शिवसेना, NCP और कांग्रेस ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए उन्हें आमंत्रित करने का राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को निर्देश देने का भी अनुरोध किया। यह भी कहा गया है कि उनके पास 144 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि राज्यपाल ने ”भेदभावपूर्ण व्यवहार” किया और ”भाजपा द्वारा सत्ता पर कब्जा किए जाने में उन्होंने खुद को मोहरा बनने दिया”।
साभार ABC