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जानिए: ज्ञानवापी- श्रृंगार गौरी मंदिर मामले में, हिन्दू-मुस्लिम पक्षों के पांच बड़े दावे

Varansi । ज्ञानवापी- श्रृंगार गौरी मंदिर मामले में जिला कोर्ट में सुनवाई के दौरान हिन्दू और मुस्लिम पक्षो ने पांच पांच बड़े दावे पेश किए लेकिन कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के की याचिका खारिज़ करते हुए कहा कि हिन्दू पक्ष की याचिका सुनवाई योग्य है,और अब अगली सुनवाई 24 सितंबर को होनी है । आइये जानते हैं मुस्लिम और हिन्दू पक्ष के पाँच बड़े दावे क्या हैं ।

मुस्लिम पक्ष के 5 बड़े दावे

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  1. ज्ञानवापी परिसर में प्लॉट नंबर-9130 पर लगभग 600 वर्ष से ज्यादा समय से मस्जिद कायम है। वहां वाराणसी और आस-पास के मुस्लिम 5 वक्त की नमाज अदा करते हैं।
  2. संसद ने दी प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजन) एक्ट 1991 बनाया। इसमें प्रावधान है कि जो धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 को जिस हालत में थे, वह उसी हालत में बने रहेंगे।
  3. ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। इससे संबंधित अधिकार यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ लखनऊ को है। ऐसे में इस अदालत को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है।
  4. मौलिक अधिकार के तहत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी चाहिए। मुकदमा कानूनन निरस्त किए जाने लायक है।
  5. वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रीकाशी विश्वनाथ अधिनियम 1983 बनाया गया। इससे संपूर्ण काशी विश्वनाथ परिसर की देखरेख के लिए बोर्ड ऑफ ट्रस्टी बनाने का प्रॉविजन है।

हिंदू पक्ष के 5 बड़े दावे

  1. मुकदमा सिर्फ मां श्रृंगार गौरी के दर्शन-पूजन के लिए दाखिल किया गया है। दर्शन-पूजन सिविल अधिकार है और इसे रोका नहीं जाना चाहिए।
  2. मां श्रृंगार गौरी का मंदिर विवादित ज्ञानवापी परिसर के पीछे है। वहां अवैध निर्माण कर मस्जिद बनाई गई है।
  3. वक्फ बोर्ड ये तय नहीं करेगा कि महादेव की पूजा कहां होगी। देश की आजादी के दिन से लेकर वर्ष 1993 तक मां श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा होती थी।
  4. श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट में आराजी नंबर-9130 देवता की जगह मानी गई है। सिविल प्रक्रिया संहिता में संपत्ति का मालिकाना हक खसरा या चौहद्दी से होता है।
  5. हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिला है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि वह शिवलिंग नहीं बल्कि पुराना खराब पड़ा फव्वारा है।

अब पढ़िए कि मुस्लिम पक्ष ने कैसे अपनी दलीलों को सही साबित करने का प्रयास किया

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मसाजिद कमेटी ने ज्ञानवापी को शाही मस्जिद आलमगीर बताया

22 अगस्त से लगातार जारी जवाबी बहस में मसाजिद कमेटी की तरफ से कहा गया कि वर्ष 1936 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था। वर्ष 1944 के गजट में यह बात सामने आई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद का नाम शाही मस्जिद आलमगीर है। संपत्ति शहंशाह आलमगीर यानी बादशाह औरंगजेब की थी। वक्फ करने वाले के तौर पर भी बादशाह आलमगीर का नाम दर्ज था। इस तरह से बादशाह औरंगजेब द्वारा 1400 साल पुराने शरई कानून के तहत वक्फ की गई (दान दी गई) संपत्ति पर वर्ष 1669 में मस्जिद बनी और तब से लेकर आज तक वहां नमाज पढ़ी जा रही है।

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इसके अलावा, 1883-84 में अंग्रेजों के शासनकाल में जब बंदोबस्त लागू हुआ तो सर्वे हुआ और आराजी नंबर बनाया गया। आराजी नंबर 9130 में है ।

 

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