अरशद अली की रिपोर्ट।
संतकबीरनगर।
जहां एक ओर आधुनिक अध्यापक अपने मेहनत की मजदूरी के लिए लगभग इकतालीस माह से सरकार से आस लगाए बैठा है।
वहीं जनपद सन्त कबीर के अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी और लिपिक नबी हुसैन जी ऊंट के मुंह में जीरा समान आई साढ़े बाइस दिन के मानदेय का बिल बनाने में इतनी देरी कर रहे हैं
मानो वेतन बिल बनाना हिमालय चोटी पर पहले चढ़ना है, फिर उतरना है,तब वेतन बिल बनकर मुकम्मल होती होगी।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ,हर बार यही तमाशा अल्पसंख्यक कल्याण विभाग करता है,आधुनिकीकरण अध्यापकों का कोई भी बिल राज्यांश या मानदेय बिना एक माह का समय बिताए नहीं बना सकता है, जो समझ से परे है कि इन अधिकारियों और कर्मचारियों की क्या मन्शा है।
जिन मदरसों के प्रपत्र नहीं जमा होते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे हैं, ये लोग आखिर क्यों?
और जिनके प्रपत्र एक महीने से जमा पड़े हैं, उनके मानदेय की रकम को भी दबाए बैठे हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिला स्तरीय संगठन के नेताओं के ज़बान पर ताला क्यों लग जाता है। उनमें इस घोर अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत क्यों नहीं होती है।
शायद कि इन भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी के करीबी और चाटुकारिता बाधा डालती है। धिक्कार है ऐसे प्रतिनिधित्व कर्ताओं का ,जिनकी ज़बान ऐसे अवसर पर खुल नहीं सकती है।
मेरी समझ से जिला प्रशासन/सरकार को ऐसे व्यर्थ अधिकारी और कर्मचारी को डिमोट करना बहुत आवश्यक है।
ये रिपोर्ट/विचार लेखक के अपने विचार हैं, न्यूज़ पोर्टल संपादक जिम्मेदार नहीं