मुम्बई ।
कई लोगों को आज जानकार अचरज हो रहा है कि शिवसेना कांग्रेस के बाहरी समर्थन से महाराष्ट्र में सरकार बनाने जा रही है। जिस शिवसेना को भाजपा का साथ देने वाली बच्चा पार्टी माना जाता रहा है वह सियासत के नए खेल में धुर विरोधी कांग्रेस से समर्थन लेेकर सरकार बना रही है।
मगर इतिहास इस कौतूहल के पक्ष में नहीं है। थोड़ा पीछे जाएं तो पता चलता है कि शिवसेना और कांग्रेस में अच्छे रिश्ते भी हुआ करते थे। इसकी मिसाल यह है कि सन 1974 में तत्कालीन बंबई में हुए म्यूनिसिपल चुनाव में शिवसेना और कांग्रेस का आधिकारिक गठबंधन भी हुआ था।
लेखक थामस ब्लोम हांसेन की किताब वेजस ऑफ वायलेंस:नेमिंग एडं आइडेंडिटी इन पोस्टकॉलोनियल बॉम्बे में इसका तफसील से ब्यौरा दिया गया है। इसमें बताया गया है कि 1969 तक शिवसेना और कांग्रेस के संबंध दोस्ताना ही थे। चाहे वह बंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन हो या फिर विधानसभा।
किताब में आम लोगों में फैली इस चर्चा का भी जिक्र है कि ठाकरे परिवार के दोस्त पूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वसंतदादा पाटिल ने शिवसेना के गठन और उसके विकास में योगदान दिया। इसकी यह थी कि कांग्रेस के ये नेता मजदूरों पर कम्युनिस्टों के असर को खत्म करना चाहते थे और शिवसेना उनके इस मंसूबे को पूरा कर सकती थी।
इस बात की पुष्टि तो नहीं हो सकी पर इससे बल इस बात से मिलता है कि कांग्रेस सरकारों ने हमेशा शिवसेना को लेकर नरम रवैया ही रखा। अपने हिंसक रवैये के बावजूद बाल ठाकरे को 1969 के अलावा कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया। यहां तक कि 1993 के दंगो को लेकर भी इस पार्टी पर कभी कांग्रेस ने कोई कार्रवाई नहीं की।
इस किताब में दावा कहा गया है जो लोग शिवसेना को वोट करते हैं उनका सामाजिक प्रोफाइल कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं से बहुत ज्यादा भिन्न नहीं है। यही वजह है कि शिवसेना को छोड़कर जाने वाले नेताओं की शरणस्थली लंबे समय तक कांग्रेस ही रही थी।