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नागरिकता संशोधन कानून की धारा 3 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, जन्म के आधार पर नागरिकता देता है यह सेक्शन

सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटो

दिल्ली । नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 60 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। अब एक याचिका में पहले से लागू नागरिकता कानून, 1955 की धारा 3 को चुनौती दी गई है। धारा में जन्म के आधार पर भारत की नागरिकता मिलने का प्रावधान है।

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एक गैरसरकारी संगठन एपीसीआर के रफीक अहमद ने याचिका में कहा है कि नागरिकता कानून, 1955 की धारा 3 असंवैधानिक है क्योंकि इसमें भारत में नागरिकता देने का आधार जन्मतिथि को बनाया गया है जो मनमानी हैं क्योंकि धारा 3 (1) ए में कहा गया है कि 26 जनवरी 1950 से एक जुलाई 1987 तक भारत में जन्मे बच्चों को नागरिकता दी जाएगी। उप प्रावधान बी में है कि एक जुलाई 1987 से तीन दिसंबर 2004 तक भारत में जन्मे वे बच्चे नागरिकता के हकदार होंगे जिनके माता या पिता भारतीय नागरिक होंगे।

उपप्रावधान सी में कहा गया है तीन दिसंबर 2004 के बाद पैदा हुए वही बच्चे नागरिकता के हकदार होंगे जिनके माता या पिता भारतीय होंगे और उनमें से एक अवैध प्रवासी नहीं होगा। धारा 3(1) ए में 1950 से लेकर 1987 तक जन्मे बच्चों के नागरिकता लेने के बारे में कोई शर्त नहीं है पर धारा 3(1) बी और सी राज्यहीन बच्चों का एक वर्ग बना दिया गया है।

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इस प्रकार जो बच्चे तीन दिसंबर 2004 या उसके बाद पैदा हुए हैं और जिसके माता-पिता अवैध प्रवासी हैं उन्हें भी नागरिकता से वंचित रखा गया है। कानून के दायरे से वे बाहर हैं क्योंकि यह कानून मुस्लिम को छोड़कर पाक बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए छह समुदायों हिन्दू, सिख, पारसी, इसाई, जैन और बौद्ध के लिए ही है।

लोग राज्यविहिन हो जाएंगे
याचिकाकर्ता ने कहा है कि नागरिकता कानून का प्रावधान 3 संविधान के अनुच्छेद 50 सी और 37 का उल्लंघन है। कानून का यह प्रावधान पहले से ही लागू है इसलिए यदि एनआरसी बनाया गया तो बिना दस्तावेजों के अनेक लोग राज्यविहिन हो जाएंगे।

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साभार amarujala

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