Edit-by मो.सईद पठान/अरशद अली
वैश्विक आपदा कोविड-19 के भयंकर संक्रमण ने जिस प्रकार पूरे विश्व में तबाही मचाई है,वह किसी से छिपी नहीं है। देश के सभी छोटे-बड़े कारोबार पूर्णतया ठप हो जाने से कामगार मजदूरों के सामने संकट के पहाड़ खड़े हो गए हैं। भारत में कोरोना महामारी से बचने के लिए पूरे देश में लाकडाउन घोषित कर दिया गया है। इस उद्देश्य से कि संक्रमण की चैन टूट जाए।
प्रथम चरण का लाक डाउन बीते 24 मार्च से 14अप्रैल तक 21दिनों के लिए दूसरे चरण का 15अप्रैल से 3 मई तक , तीसरे चरण का 4 मई से 17 मई और 18 मई से आगे तक चौथे चरण के लाक डाउन की कवायद भी शुरू कर दी गई है। ऐसे में रोज़ कमाकर खाने वाला मजबूर बेबस मजदूर दर दर की ठोकरें खाने पर विवश हो गया। सरकारों ने तो खूब सब्ज बाग दिखाए लेकिन मजदूरों के घाव पर मरहम कितना लगा वह मजबूर मजदूर ही बता पाएगा ।
सरकारों ने तो बड़े बड़े दावे इस विपत्ति काल में लोगों के हित के लिए किए हैं,करोड़ों के पैकेज की घोषणा की गई है।
लेकिन सवाल यह कि जब सरकारें जनता के हित के लिए हर व्यवस्था मुहैया कर रही हैं तो मजदूर अपने घरों की ओर पलायन के लिए क्यों मजबूर हुआ है? सच्चाई यह है कि जिस पेट के लिए ये अपने घर परिवार को छोड़कर गये थे,वही पेट आज इन्हें अपने घर वापस करने के लिए भी मजबूर कर दिया है, क्योंकि कोरोना काल में सभी छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ जाने के कारण सभी छोटे-बड़े कारोबारी लोग भी अपने यहां काम करने वाले इन मजदूरों के भोजन पानी की व्यवस्था करने से अपने हाथ खड़े कर लिए हैं।
बेचारा मजदूर कब-तक अपने पेट की भूख को बर्दाश्त करता ?
अन्तत: उसे अपने घर वापसी का ही फैसला करना पड़ा।
लेकिन सैकड़ों किमी दूर सफर को तय करने के लिए गरीब मजदूर के पास न तो रूपये ही थे न ही साधन।
सरकार ने मीडिया के द्वारा यह जरूर बता दिया है कि सैकड़ों बसों और ट्रेनों का प्रवासी मजदूरों के घर वापसी के लिए व्यवस्था की गई है,
आज जितनी मौतें कोरोना से नहीं हो रही हैं उससे कहीं ज्यादा मौतें सैकड़ों किमी पैदल चलकर घर पहुंचने की उम्मीद लिये हुए मजदूरों का जब रास्ते में ही भूख से,ट्रेन और दूसरी गाड़ियों से हादसे में, हो जा रहीं है।
जो इन मजबूर मजदूरों की विवशता से पर्दा उठाया है, इस प्रकार की रोज़ सड़कों पर हृदय विदारक तस्वीरें देखने को मिलती हैं।
मजदूरों का एक लम्बा काफिला भूखे प्यासे अपने छोटे छोटे बच्चों को तपती धूप में ले जाते हुए देखकर हर कोई भांप सकता है कि सरकारें इनके प्रति कितनी उदार हैं।
बीते कुछ दिनों पूर्व 16 मजदूरों को मालगाड़ी ने जिस प्रकार रौंदकर मौत की नींद सुलाया,वह किसी आत्महत्या की घटना नहीं थीं, पटरी पर बिखरी रोटियों से पूंछे कोई कि इन मजदूरों की हसरतें क्या थीं, कितनी मुसीबतों का सामना करते हुए अपने घर परिवार में पहुंचना चाहते थे बेचारे मजदूर ? कहीं न कहीं सरकार की अव्यवस्थाएं जरूर इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार रही होंगी।
भुखमरी के कारण पलायन कर रहे मजदूरों के साथ बुधवार को तीन प्रदेशों में बड़े हादसे हुए हैं. मध्य प्रदेश के गुना में बुधवार देर रात 60 से अधिक मजदूरों की बस का एक्सीडेंट हो गया. इस हादसे में 8 मजदूरों की मौत हो गई है. वहीं, उत्तर प्रदेश में बस ने मजदूरों को कुचल दिया, जिसमें 6 की मौत हो गई है. बिहार में भी दो मजदूरों की मौत हुई है, ऐसी अनेकों घटनाएं देश के कोने-कोने में पैदल घर जा रहे मजदूरों के साथ घटित हो रही हैं। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है, हुकमतें सब्जबाग दिखाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करने की कोशिश कर रही हैं।
कोरोना से बढ़कर भुखमरी का संकट इन मजदूरों के सामने गहरा गया है,,जहां एक तरफ सरकार सोशल डिस्टेंसिंग का नारा देकर उसके पालन पर जोर देते हुए मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा सभी पूजा स्थल बन्द कर कोरोना को एक लड़ाई मानकर हराने का प्रयास कर रही है। वहीं दूसरी ओर शराब की दुकानों को खोलकर, मदिरा प्रेमियों, मदिरा पान करने वालों की भारी भरकम भीड़ इकट्ठा करके देश की आर्थिक स्थिति के लिए हितकारी भी मान रही है।
केंद्र और राज्यों की सरकारें प्रवासी मजदूरों के घर वापिसी के लिए समय रहते यदि ध्यान दी होती तो आज जो हादसे सड़कों और रेल की पटरियों पर हो रहे हैं,व शायद देखने को नहीं मिलते, सरकार को चाहिए कि दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त लोगों के परिजनों को तत्काल सहायता राशि प्रदान करते हुए अन्य मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
जिस प्रकार इन मजदूरों के लिए सुविधाएं देने की बात कही जा रही हैं,,ज़मीनी हकीकत इसके विपरीत ही दिखाई देती है।
देखना यह है कि सरकार अपने वायदे के मुताबिक इन प्रवासी मजदूरों के रोज़गार के लिए क्या क्या व्यवस्था करेगी आने वाला समय ही बताएगा।