Advertisement
अन्य

अन्तर्राष्ट्रीय उर्दू दिवस के अवसर पर बैठक, अल्लामा इक़बाल को याद करते हुए, उर्दू के विकास पर हुई चर्चा

सेमरियावां संतकबीरनगर । अन्तर्राष्ट्रीय उर्दू दिवस के अवसर पर विकास खंड सेमरियावाँ संतकबीर नगर अंतर्गत अलहिरा ग्लोबल एकेडमी मजीदाबाद में एक बैठक का आयोजन किया गया। जिस की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि मौलाना मुजीब बस्तवी साहब ने की। और संचालन मुहम्मद सलमान आरिफ नदवी ने किया। क़ारी मुहम्मद शफीक की तिलावते कलाम पाक से गोष्ठी प्रारंभ हुई। जबकि नाते पाक मुजीब बस्तवी साहब ने पढ़ी। मौलाना फुज़ैल अहमद नदवी प्रबन्धक अलहिरा ग्लोबल एकेडमी ने अल्लामा इक़बाल रह• की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अल्लामा मुहम्मद इक़बाल का जन्म 9 नवम्बर सन 1877 ईस्वी में सियालकोट में हुआ। आप की शिक्षा सियालकोट में हुई। फिर उच्च शिक्षा के लिए लंदन व जर्मनी भी गए। और म्युनिख विश्व विद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इक़बाल युवावस्था से ही कविताएं कहने लगे। आप की प्रथम कविता यतीम की फरियाद है। आप की कविताओं पर आधारित विभिन्न पुस्तकें प्रकाशित हुईं। देश के बदलते हालात पर आप की गहरी निगाह थी। 12 अप्रैल सन 1938 ईस्वी में इस महान कवि का देहान्त हो गया।
ज़फीर अली कर्ख़ी ने कहा कि हमें उर्दू भाषा की उन्नति व उत्थान के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। उर्दू समाचार पत्र ख़रीद कर पढ़ना चाहिए। और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। जफीर अली ने विशेष तौर पर मुजीब बस्तवी साहब को उन की उर्दू भाषा हेतु की गई सेवाओं पर बधाई देते हुए हर स्तर से सहयोग का आश्वासन दिया। साथ ही मुहम्मद सलमान आरिफ नदवी की उर्दू भाषा के लिए किए गए प्रयासों की चर्चा करते हुए निरन्तर आगे बढ़ने की सलाह दी।
बुज़ुर्ग कवि मुजीब बस्तवी साहब ने कहा कि आज हम उर्दू दिवस मनाने और अल्लामा इक़बाल को याद करने के लिए एकत्रित हुए हैं। लेकिन बात इसी पर खत्म नहीं हो जाती, बल्कि हमें अल्लामा इक़बाल की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारना होगा। उर्दू जबान को बढ़ावा देने के लिए काम करना होगा। हमें इस बात की भी फिक्र करनी होगी कि हमारी नई पीढ़ी उर्दू सीखे पढ़े। मुजीब बस्तवी ने अल्लामा इक़बाल की जीवनी के कुछ उज्जवल बिन्दुओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने इस अवसर पर अपनी एक कविता भी सुनाई। कुछ पंक्तियां प्रस्तुत की जाती हैं।
मुश्किल से हमें तनवीरे आज़ादी मिली।
क्या हुआ हमको नहीं कश्मी की वादी मिली।
मुस्कुराहट क़हक़हे शादाबियाँ हैं हर तरफ।
फिर भी मुल्क में बेताबियाँ हैं हर तरफ।
मादरे हिन्दुस्तान की माँग में सिन्दूर है।
दिल से गमहाए गुलामी आज कोसों दूर है।
गेसुए उर्दू अभी मन्नत पज़ीरे शाना है।
शमए महफिल गरमिए सोज़े दिले परवाना है।
मुहम्मद सलमान आरिफ नदवी ने उर्दू भाषा के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि उर्दू भाषा कब पैदा हुई? क्योंकर अस्तित्व में आई? कहाँ पली बढ़ी? जन्मस्थान कहाँ है? उन सब प्रश्नों के बारे में इतिहासकारों की विभिन्न राय पायी जाती हैं। कुछ भाषाविद का कहना है कि अरब व्यापारियों का आवागमन मालाबार और दक्षिण में होता रहता था। भारतीयों से व्यापारिक सम्बन्धों और आपसी संवाद के नतीजे में धीरे धीरे एक नई भाषा का उदय होने लगा। यही नई भाषा विकसित हुए एक ऐसे स्टेज पर पहुंची, जहाँ उसे उर्दू का नाम दिया गया। अल्लामा सय्यद सुलैमान नदवी रह• का मानना है कि सिंध प्रांत पर जब मुस्लिमों का राज स्थापित हुआ। तो उन्हें शासन प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए किसी एक भाषा की आवश्यकता पड़ी, यहीं पर एक नई भाषा का जन्म होता है जो विभिन्न चरणों से गुजर कर उर्दू का नाम पाती है। जब कि कुछ विशेषज्ञों की राय है कि उर्दू भाषा का जन्म स्थान पंजाब है। महमूद गजनवी और शहाबुद्दीन ग़ौरी ने जब भारत के कुछ भाग पर अपना शासन स्थापित किया, तो उन्हें भी प्रजा के साथ वार्तालाप करने व सरकारी कामकाज के लिए किसी ऐसी जबान की जरूरत पड़ी जो दोनों के बीच माध्यम बन सके। यूं एक भाषा अस्तित्व में आई, जिसे आगे चलकर उर्दू कहा गया। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि जब दिल्ली में मुगल काल आरम्भ हुआ, तो मुगलों को प्रशासनिक कार्यों को ठीक ढंग से चलाने के लिए उन्हें भी एक ऐसी ज़बान की आवश्यकता का आभास हुआ जो इस जरूरत को पूरा कर सके। इस तरह एक नई भाषा का जन्म हुआ जिसे आगे चलकर उर्दू कहा गया। लेकिन जब हम इन सभी नज़रियों का बारीकी से विश्लेषण करते हैं, तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि अरब व भारत के बीच व्यापारिक सम्बन्धों के नतीजे में दक्षिण भारत में एक भाषा ने जन्म लिया, जिसने सिंध प्रांत में अपने बाल व पर खोले, पंजाब में पली बढ़ी, दिल्ली में आकर जवान हुई, और लखनऊ में पहुंच कर तहजीब का गहना पहना। विदित हो कि उर्दू भाषा को शुरू में हिंदवी, हिंदुस्तानी, रेख़्ता कहा गया। आगे चलकर इसे क़िलए मोअल्ला और उर्दुए मोअल्ला के नाम से पुकारा गया। जो धीरे-धीरे मुख़्तसर होकर मात्र उर्दू रह गया। विभिन्न भाषाओं की तरह उर्दू साहित्य भी दो भागों में विभाजित है, गद्य, पद्य।
गद्य की शुरूआत पहले ही हो जाती है। बन्दा नवाज़ गेसू दराज़ की किताब मेराजुल आशिक़ीन, मीराँ जी की किताब मुगूबुल क़ुलूब शुरूआती दौर की गद्य पुस्तकें मानी जाती हैं। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि उर्दू गद्य की पहली किताबें मुल्ला वजही की सब रस और फज़ली की कर्बल कथा हैं। आगे चल कर अनगिनत लेखकों ने उर्दू गद्य को आगे बढ़ाया। इस सिलसिले में मीर मुहम्मद हुसैन, महर चन्द खत्री, शाह आलम सानी, शाह हुसैन हक़ीकत, हैदर बख़्श हैदरी, मुन्शी प्रेम चन्द, सआदत हसन मिंटू, कुर्रतुल ऐन हैदर, कृष्ण चन्द्र, इसमत चुगताई, मीर अम्मन, निहाल चन्द लाहौरी, मौलाना मुहम्मद हुसैन आज़ाद बेनी नारायण जहाँ, हसन निज़ामी, सरसय्यद अहमद ख़ान, पण्डित रूप चन्द्र जोशी, बेगम अख्तर रियाज़ुद्दीन, नसीम हिजाज़ी, अहमद नदीम क़ासिमी, सादिक़ हुसैन सरधनवी, नज़ीर अहमद, एनायतुल्लाह अल्तमश, राशिदुल ख़ैरी, अब्दुल हलीम शरर, रतन नाथ सरशार, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलवी अब्दुल हक, क़ाजी अब्दुस्सत्तार, रशीद अहमद सिद्दीकी, अल्लामा शिबली नोमानी, नियाज़ फतेहपुरी, अल्लामा सय्यद सुलैमान नदवी, मुहम्मद वली राज़ी, सादिक़ अली बस्तवी क़ासिमी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। रही बात उर्दू पद्य की, तो उर्दू पद्य का पहला कवि अमीर खुसरो को मान जाता है। हालांकि उन से पहले एक उर्दू शाएर मस्ऊद सअ्द लाहौरी का नाम मिलता है, पर उन का कोई कलाम अब मौजूद नहीं रहा। उर्दू शाएरी का पहला साहबे दीवान शाएर कुली कुतुब शाह है। लेकिन जिसने उर्दू ग़ज़ल को विकसित किया, परवान चढ़ाया, वह वली दक्नी है। आगे चल कर अनगिनत कवियों जैसे मज़हर जाने जानाँ, मुल्ला वजही, मिर्ज़ा मुहम्मद रफीअ् सौदा, मीर तक़ी मीर, ख़्वाजा मीर दर्द, बहादुर शाह ज़फ़र, दया शंकर कंवल नसीम, नासिख़, मिर्ज़ा ग़ालिब, हैदर अली आतिश, रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी, इब्राहीम ज़ौक़, अल्ताफ हुसैन हाली, ब्रिज नारायण चकबस्त, अकबर इलाहाबादी, तिलोक चंद महरूम, जोश मलेहाबादी, राम प्रसाद बिस्मिल, नज़ीर अक्बराबादी, जिगर मुरादाबादी, पण्डित हरी चन्द अख़्तर, मजनूं गोरखपूरी, परवीन शाकिर, शिब्ली नोमानी, सलामत अली दबीर, जगन नाथ आज़ाद, कलीम आजिज़, राहत इन्दौरी, मुजीब बस्तवी, मुनव्वर राना, मस्ऊद हस्सास आदि ने उर्दू शाएरी को आगे बढ़ाया।
इस अवसर पर नौशाद अहमद नदवी, मुहम्मद हारून, महफूज़ुर्रहमान, मुहम्मद आसिफ आदि उपस्थित थे।

Advertisement

Related posts

गंदगी फैलाने वाले “बखिरा के चार लोगों को” जिला मलेरिया टीम ने दी नोटिस

Sayeed Pathan

जानिए 7 देशों के खतरनाक कानून::भारत में पति को रेप का अधिकार, और अमेरिका में मर्दों को रेप कर लड़कियों को मां बनाने का अधिकार

Sayeed Pathan

कई खुबियों से परिपूर्ण है अश्वगंधा, 12 बड़े रोगों की रामबाड़ औषधि है, जानिए इसके इस्तेमाल का तरीका

Sayeed Pathan

एक टिप्पणी छोड़ दो

error: Content is protected !!