उच्चतम न्यायालय में सोमवार को 1975 में लागू किए गए आपातकाल की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई है। न्यायालय ने कहा कि वह इस पहलू पर भी विचार करेगा कि क्या 45 साल बाद आपात काल लागू करने की वैधता का परीक्षण व्यावहारिक है। इस याचिका को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को नोटिस जारी किया है। बता दें कि आपातकाल को 45 साल बीत चुके हैं।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 94 वर्षीय महिला की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि वह इस पहलू पर भी विचार करेगी कि क्या 45 साल बाद आपातकाल लागू करने की वैधानिकता पर विचार करना व्यावहारिक या आवश्यक है। यही वजह है कि उच्चतम न्यायालय ने 1975 में देश में लागू किए गए आपातकाल को पूरी तरह असंवैधानिक घोषित करने के लिए दायर इस याचिका पर सोमवार को नोटिस जारी किया है।
इस दौरान पीठ ने कहा कि हमारे सामने परेशानी है। आपातकाल कुछ ऐसा है, जो नहीं होना चाहिए था। वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने वयोवृद्ध वीरा सरीन की ओर से बहस करते हुए कहा कि आपातकाल ‘छल’ था और यह संविधान पर ‘सबसे बड़ा हमला’ था क्योंकि महीनों तक मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे।
क्या था आपातकाल
देश में 25 जून, 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। यह आपातकाल 1977 में खत्म हुआ था। वीरा सरीन ने याचिका में इस असंवैधानिक कृत्य में सक्रिय भूमिका निभाने वालों से 25 करोड़ रुपये का मुआवजा दिलाने का भी अनुरोध किया है।
याचिकाकर्ता वीरा सरीन ने अपनी याचिका में दावा किया है कि वह और उनके पति आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार के प्राधिकारियों और अन्य की ज्यादतियों के शिकार हैं, जो 25 जून, 1975 को आधी रात से चंद मिनट पहले लागू किया गया था।