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पर्सनल लॉ को खतरा ? तलाक के लिए एक कानून की मांग पर सुप्रीम कोर्ट भी सतर्क, कहा- मुश्किल हो जाएगी

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सभी धर्मों के लिए तलाक और गुजारा भत्ते का एक समान आधार लागू करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। इसके तहत कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया और कहा कि इस तरह की मांग का पर्सनल लॉ पर असर होगा।

भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर दो अलग-अलग जनहित याचिकाओं में कहा गया है कि सभी धर्मों की महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए और अगर कुछ धार्मिक प्रथाओं ने उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया है, तो ऐसी प्रथाओं को खत्म किया जाना चाहिए।

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कोर्ट ने कहा कि  हमें इस मामले पर सावधानी से सोचना होगा। बेंच ने कहा, ”आप हमें उस दिशा में ले जा रहे हैं जो पर्सनल लॉ में अतिक्रमण करेगा और पर्सनल लॉ जिस उद्देश्य के लिए हैं उन्हें ध्वस्त करेगा।” सभी धर्मों के लिए तलाक के समान आधार और सभी धर्मों के लिए गुजारे भत्ते के समान नियम लागू करने की मांग वाली ये याचिकाएं वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की हैं। इन याचिकाओं पर सीनियर एडवोकेट पिंकी आनंद व मीनाक्षी अरोड़ा ने बहस की।

सुनवाई के दौरान पिंकी आनंद और मीनाक्षी अरोड़ा ने दलील दी कि तलाक और गुजारा भत्ता मामले में अलग-अलग धर्म में विभेद है और इस भेदभाव को खत्म किया जाना चाहिए। जब पीठ ने पूछा, “क्या हम व्यक्तिगत कानूनों में प्रवेश किए बिना इन भेदभावपूर्ण तलाक आधारों को हटा सकते हैं?”इस पर वकीलों ने शायरा बानो के फैसले का हवाला दिया जहां SC ने ट्रिपल तालक को असंवैधानिक करार दिया था।

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सीजेआई एस ए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यन की बेंच ने कहा, “हम सर्तक नोटिस जारी कर रहे हैं।” क्योंकि इस तरह की मांग का पर्सनल लॉ पर असर होगा।

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