किसान संगठनों के साथ 10वें दौर की बैठक में सरकार ने आखिरी समय में अपने अंतिम विकल्प का इस्तेमाल किया। बैठक के पहले हिस्से में सरकार अपने पुराने रुख पर कायम थी लेकिन अचानक लंच के बाद हुई बैठक में सरकार ने तीनों कृषि कानूनों पर एक से डेढ़ साल तक अस्थायी रोक लगाने और साझा कमेटी के गठन का प्रस्ताव दिया। जानकारों का मानना है कि ऐसा किसानों के ट्रैक्टर रैली पर सुप्रीम कोर्ट के रुख और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पंजाब, हरियाणा के इतर दूसरे राज्यों में बहस शुरू होने के कारण हुआ।
सरकार को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट गणतंत्र दिवस पर किसान संगठनों की ट्रैक्टर रैली के संदर्भ में कोई फैसला करेगा। जबकि शीर्ष कोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए मामले पर फैसला लेने की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस पर डाल दी। सरकार नहीं चाहती थी कि कृषि कानूनों के सवाल पर देश की राजधानी में गणतंत्र दिवस के दिन किसानों और प्रशासन के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो। टकराव की स्थिति में सरकार को इस आंदोलन के व्यापक होने की आशंका थी।
किसान संगठन प्रस्ताव के लिए तैयार नहीं थे
भोजनावकाश के बाद अचानक ही कृषि मंत्री की ओर से आए कानूनों पर अस्थायी रोक और सभी पक्षों के प्रतिनिधित्व वाली कमेटी के गठन के प्रस्ताव के लिए किसान संगठन तैयार नहीं थे। खाने से पहले पहले सरकार और किसान संगठनों के बीच किसान नेताओं को एनआईए का नोटिस पर तीखी बहस हुई। कृषि मंत्री ने दो टूक कहा, सरकार न तो कानून वापस लेगी और न ही एमएसपी पर कानूनी गारंटी देगी। गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली मामले में भी तनातनी रही। तोमर ने प्रस्तावित रैली को वापस लेने की मांग की और इस घोषणा को भी गलत बताया।
क्योंकि कमजोर नहीं पड़ा आंदोलन
सरकार मान रही थी कि किसान आंदोलन धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाएगा। इसलिए सरकार ने बीते महीने इसी तरह के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि आंदोलन न सिर्फ कायम रहा, बल्कि किसान संगठनों के तेवर और तल्ख होते गए। इस बीच आंदोलन के दौरान किसानों की आत्महत्या, दुर्घटना समेत कई अन्य कारणों से लगातार किसान मरते रहे और सरकार की चिंता बढ़ती रही।
आंदोलन में अब तक 70 से अधिक किसानों की मौत हुई है। इसके अलावा सरकार को मिले फीडबैक में बताया गया कि भले ही आंदोलन का दायरा करीब दो महीने बाद भी हरियाणा, पंजाब और पश्चिम यूपी तक सीमित है, मगर आंदोलन और खासतौर से एमएसपी की देश के दूसरे राज्यों के किसानों में भी चर्चा हो रही है। ऐसे में सरकार को भविष्य में आंदोलन का दायरा और व्यापक होने की आशंका थी।
ट्रैक्टर रैली ने उड़ाई सरकार की नींद
सरकार की चिंता का एक बड़ा कारण किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली थी। रैली यूं तो 26 जनवरी को निकलनी थी लेकिन इसने सरकार की नींद काफी पहले उड़ा दी। फीडबैक लेने में लगाए गए एक केंद्रीय मंत्री के मुताबिक इस मुद्दे पर दो स्थितियां सामने आनी थी। इजाजत नहीं मिलने पर गणतंत्र दिवस के दिन किसानों और पुलिस में टकराव होता। इजाजत मिलने पर हजारों ट्रैक्टर के साथ किसान राजधानी की सड़कों पर जम जाते। इससे एक अराजक स्थिति पैदा हो सकती थी। उक्त मंत्री के मुताबिक नए प्रस्ताव में सरकार और किसान दोनों के लिए बीच का रास्ता है। सरकार जहां कह सकेगी कि उसने कानून वापस नहीं लिया है। वहीं किसान कह सकेंगे कि सरकार दबाव में कानूनों पर अस्थाई रोक लगाने पर बाध्य हुई है।