Advertisement
लेखक के विचार

पर्दे में रहने दो! संसदीय कार्यमंत्री‚ प्रह्लाद जोशी जी ने सोनिया गांधी की चिट्ठी का एकदम माकूल जवाब

संसदीय कार्यमंत्री‚ प्रह्लाद जोशी जी ने सोनिया गांधी की चिट्ठी का एकदम माकूल जवाब दिया है। आखिर‚ ये विपक्ष वाले होते कौन हैं सरकार से यह पूछने वाले कि संसद का विशेष सत्र तो बुला लिया‚ पर उसमें करेंगे क्याॽ खो–खो खेलेंगे‚ हवन–पूजा करेंगे‚ तुम्हारी बला से। मोदी जी को पब्लिक ने पांच साल का पट्टा दिया है‚ उसको रिन्यू कराने के टैम में भी अभी तो छह–सात महीने बाकी हैं। फिर अभी से ये क्या‚ क्यों‚ कैसे की टर्र–टर्र क्यों; वह भी चिट्ठियां लिख–लिखकर। वह तो गनीमत है कि मोदी जी विपक्ष वालों की चिट्ठियों का खुद जवाब देना अपनी तौहीन समझते हैं और अपने किसी-न-किसी जूनियर से जवाब दिलवाते हैं‚ वर्ना विपक्ष वालों ने बेचारे की एंटायर पॉलिटिकल साइंस की एमए की पढ़ाई तो‚ ऐसी चिट्ठियों के जवाब लिखने में ही खर्च करा दी होती।

वैसे भी विपक्ष वाले पहले से यह जानकर ही कि संसद के विशेष सत्र में क्या होगा‚ कौन सा कद्दू में तीर मार लेंगेॽ मोदी जी ने पिछले सत्र में अविश्वास प्रस्ताव के बिना मणिपुर पर चर्चा नहीं होने दी‚ तो विपक्ष वालों ने क्या बिगाड़ दिया। विशेष सत्र में मोदी जी हिंडनबर्ग–2 पर मानो चर्चा करा भी दें‚ तब भी विपक्ष वाले अडानी जी का क्या उखाड़ लेंगे! फिर ये चिट्ठियां लिख–लिखकर टैम क्यों खराब कर रहे हैं‚ अपना भी और मोदी जी का भी। और इतना तो विपक्ष वाले भी मानेंगे कि पर्दे के पीछे छुपाने से चीजों का आकर्षण बढ़ता है। सेंगोल का ही किस्सा ले लो। पचहत्तर साल पर्दे के पीछे रहा‚ तभी तो जब अचानक निकल कर आया‚ तो सेंगोल नए संसद भवन के उद्घाटन पर छा गया।

Advertisement

विशेष सत्र में भी मोदी जी जरूर कुछ और जादू के पिटारे में से निकालकर लाएंगे और भक्तों से वाह–वाह करवाएंगेे‚ पर विपक्ष वाले तब तक पर्दा रहने तो दें। सरकार को विशेष सत्र बुलाने का अधिकार है‚ सो बुला रही है। सरकार को किसी को बिना बताए कि क्यों बुला रही है‚ विशेष सत्र बुलाने का अधिकार है‚ सो बिना बताए बुला रही है। फिर विपक्ष वाले कोर्स से बाहर की ये दलील क्यों दे रहे हैं कि बताने में हर्ज ही क्या है कि क्यों बुला रहे हैंॽ हर्ज – पहले से राज बता दें‚ तो फिल्म का सारा मजा किरकिरा नहीं हो जाएगा!

(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

Advertisement

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

Advertisement

Related posts

आर्थिक असमानता : क्या भारत सरकार पिकेटी के ‘कराधान’ प्रस्ताव को मानेगी? पढ़िए (With Original English Article)

Sayeed Pathan

द्रोपदी का डर, और डर की द्रोपदी (आलेख : राकेश अचल)

Sayeed Pathan

मुंहबली बाबा और 400 पार का शोर:: (आलेख : बादल सरोज)

Sayeed Pathan

एक टिप्पणी छोड़ दो

error: Content is protected !!