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“मैं भी कबाड़ी हूँ” को क्यों नहीं दिखा कलेक्ट्रेट परिसर में गंदगी का साम्राज्य

श्रीगोपाल गुप्ता की रिपोर्ट

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट “स्वच्छ इंडिया” को लगभग पांच वर्ष पूरे हो जाने के बावजूद और मध्यप्रदेश के चंबल संभाग की आयुक्ता श्रीमती रेणु तिवारी के महत्वाकांक्षी साफ-स्वच्छ “मैं भी कबाड़ी हूं ” को लगभग 25-30 दिन की समाप्ती के बाद भी मुरैना साफ क्यों नहीं हुआ ।

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दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से 15 अगस्त 2014 में जनगण और शासकिय सेवा में मौजूद लोगों से भारत को स्वच्छ बनाने का आव्हान किया था! इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने 2 अक्टूबर 2014 में खुद ही तसला और झाड़ू लेकर सफाई अभियान शुरु किया था! देश के अनेक जनगण और अधिकायियों कर्मचारियों ने प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत के आव्हान सफाई की मूल मंत्र माना और जुट गये सफाई अभियान से! इसका असर देश के साथ-साथ मध्यप्रदेश में भी दिखाई दिया परिणाम सामने है प्रदेश का महानगर और गंदा रहने वाला इंदौर आज साफ-सफाई में बिगत तीन-चार वर्षों नंबर एक है! दुखद यह है कि इंदौर पर गर्व पूरा प्रदेश कर रहा है मगर इंदौर बनने का प्रयास कोई शहर कर रहा है अथवा नहीं, कहना मुश्किल है! लेकिन मुरैना में पसरी गंदगी को देखकर कहा जा सकता है कि मुरैना शहर का प्रशासन और नगर निगम बिलकुल नहीं कर रहा है! ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री जी को सपने को पूरा करने के लिए केन्द्रीय कमेटी ने मुरैना को भी स्वच्छ और साफ रखने के लिए नगर-निगम को अटूट धन नहीं दिया हो और केन्द्रीय अधिकारियों की टीम ने दौरे पर दौरे नहीं किये हों? मगर धन और स्वच्छता अभियान नकारे अधिकारियों की भेंट चढ़ गया और मुरैना गंदा का गंदा ही रह गया! जिसका महत्ती सबूत है ये चित्र जो शहर के किसी बाहरी, अपेक्षित,पिछड़े क्षेत्र या फिर किसी दलित बस्ती का नहीं है बल्कि जिले के भाल (माथा) जिला क्लेक्ट्रेट मुरैना के बाहर पसरी गंदगी का है! शहर का सबसे व्यस्त मुरैना-सबलगढ़ मार्ग यहीं से शुरु होता है जहां रोजाना हजारों वाहन और लोग आवा-जाही करते हैं!

इतना ही नहीं क्लेक्ट्रेट की इस जगह पर प्रथम मंजिल पर क्लेक्टर कार्यालय का एक शानदार और भव्य सभागार बना हुआ ,जहां अधिकारियों की लगातार बड़ी-बड़ी बैठक और प्रेस कान्फ्रेंस आयोजित की जाती है!  मगर इस गंदगी पर हजारों लोगों द्वारा खुलेआम पेशाब करने से उठने वाली भंयकर बदबू के सैलाव को भृत्यगण बैठकों के समय क्लेक्टर के आने से पहले खुश्बूदार सेंटो को छिड़ककर सभागार को महकाने का प्रयास अकसर करते रहते हैं! लेकिन सभागार के नीचे स्थित जिला निर्वाचन मंडल का कार्यालय की दीवार इस पेशाब की बदबू और शील के कारण असहनीय और बदहाली की स्थिति में है! मजे की बात तो यह है कि जिस नगर निगम पर इस जगह और शहर को स्वच्छ बनाये रखने का जिम्मा है, उसी के नकारा अधिकारियों ने इसी गंदी और बदबूदार जगह पर एक बस स्टैंड और ई-रिक्सा स्टैंड बना दिया है तो क्लेक्ट्रेट के ही अधिकारी ने वाहनों के लिए शुल्क के साथ पार्किंग बना दी है! अभी गत महिने चंबल संभाग की आयुक्ता श्रीमती रेणु तिवारी ने शहर को स्वच्छ रखने के लिए बड़ी ही ईमानदारी के साथ “मैं भी कबाड़ी हूं ” की मुहिम छेड़ी थी! जिसमें अल सुबह वे, क्लेक्टर महोदया, अत्तिरिक्त क्लेक्टर व नगर-निगम आयुक्त सहित समाजसेवी, उधौगपति सड़कों पर आते थे और अपनों हाथों से सफाई करते!निश्चित श्रीमती तिवारी के प्रयासों से निगम के नाकारा अधिकारियों के कारण वर्षों से जमे कई टन कचरे को उठाकर उसकी जगह पर पहुंचाया! मगर अफसोस वे अपने अभियान के तीसरे दिन इस रोड पर आने के बाद भी इस गंदगी के साम्राज्य को देख न सकीं! जहां सैकड़ों छोटे-छोटे बच्चे बस स्टैंड पर अपने स्कूल की बस पकड़ने और हजारों लोग यहां ई-रिक्सा स्टैंड पर अपने-अपने गंतव्य जगहों जाने के लिए रिक्सा पकड़ने आते हैं! वहां वे अक्सर यहां गंदगी और पेशाब के बदबूदार सैलाव में आकर बीमारी भी साथ ले जाते हैं! आखिर ये कैसा स्वच्छ भारत है और कैसा स्वच्छ मुरैना है? जहा क्लेक्टर की नाक के नीचे गंदगी का साम्राज्य स्थापित है!

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