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उत्तर प्रदेशबाराबंकी जनपद

तेरे नयनों से जो अश्रु गिरे, तो मेरा भी अंतस रोता है,,अब जाग भी जाओ ऐ मानवन, न तुम ऐसे बेमौत मरो,,

कविता

  • ऐ मानव,
  • मैं प्रकृति हूँ , मैं प्रकृति हूँ ।
  • न तुम मुझसे खिलवाड़ करो ।
  • मर्यादा में रहना सीखो ,
  • न मर्यादा को पार करो ।
  • मैं तो तेरी जननी हूँ रे ,
  • मुझसे ही तो तेरा जीवन है।
  • ये कैसी तेरी नासमझी ,
  • तूने छीना मेरा नवयौवन है ।
  • तेरी ऐसी हालत देखकर ,
  • मेरा हृदय भी कंपित होता है ।
  • तेरे नयनों से जो अश्रु गिरे ,
  • तो मेरा भी अंतस रोता है ।
  • अब जाग भी जाओ , ऐ मानव
  • न तुम ऐसे बेमौत मरो ।
  • मैं प्रकृति हूँ , मैं प्रकृति हूँ ,
  • न तुम मुझसे खिलवाड़ करो ।
  • मार्यादा में रहना सीखो ,
  • न मर्यादा को पार करो ।
  • हर दिशा में है एक सन्नटा ,
  • हर ओर अंधेरा छाया है ।
  • तेरे ही कर्मो का फल है ये ,
  • न ईश्वर की ये माया है ।
  • काम , क्रोध , मद , लोभ में तुम ,
  • इतने अंधे हो जाओगे ।
  • अपनी ही बसाई दुनिया में ,
  • यूँ उलझकर तुम रह जाओगे।
  • अब सुधर भी जा रे , ये मानव ,
  • बुरे कृत्यों से कुछ तो डरो ।
  • मैं प्रकृति हूँ , मैं प्रकृति हूँ ,
  • न तुम मुझसे खिलवाड़ करो ।
  • मार्यादा में रहना सीखो ,
  • न मर्यादा को पार करो ।
  • कितनी बेरहमी से तुमने ,
  • इन बेज़ुबानों को मारा है ।
  • बस अपनी तलब मिटाने को ,
  • इन्हें मौत के घाट उतारा है ।
  • जब वक्त तुम्हारा आया है ,
  • तो ये कैसी घबराहट है ।
  • इतने सहमे हो तुम क्यो अब ,
  • ये डर की कैसी आहट है ।
  • जो करनी की है तुमने ,
  • उस करनी को अब तुम ही भरो ।
  • मैं प्रकृति हूँ , मैं प्रकृति हूँ ,
  • न तुम मुझसे खिलवाड़ करो ।
  • मार्यादा में रहना सीखो ,
  • न मर्यादा को पार करो ।

( आरती साहू स0 अ0) प्रा0 वि0 उमरा पुर तालुक, विकास खण्ड-बनीकोडर, बाराबंकी(उत्तर प्रदेश )

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