नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (सुप्रीम कोर्ट) ने देश भर में मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति के लिए दायर याचिका पर केंद्र को जवाब दाखिल करने का बुधवार को निर्देश दिया। इस याचिका में कहा गया है कि महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी “असंवैधानिक” है और इसके समता के अधिकार और लैंगिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन होता है।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय की पीठ ने वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से इस मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र के साथ ही अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, राष्ट्रीय महिला आयोग और अल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को नोटिस जारी किया। किया। किए।
पीठ मुस्लिम महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश नहीं करने संबंधी संबंधित फतवा निरस्त करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति हो गई है।
यह याचिका पुणे में रहने वाले मुस्लिम दंपति ने दायर की है जिसमें कहा गया है कि धर्म, जाति, वर्ण, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं होना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी भी राजनीतिक दल या राज्य के मुख्यमंत्री ने मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा आगे नहीं बढ़ाया है जबकि इन मस्जिदों को जनता के कर से ही आर्थिक मदद मिलती है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि विधायिका महिलाओं, विशेषकर मुस्लिम महिलाओं की गरिमा और उनके समता के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए जा रही है। याचिका में कहा गया है कि देश में ‘समान नागरिक संहिता’ का लक्ष्य प्राप्त करने के बारे में शीर्ष अदालत की टिप्पणियों के बावजूद इस सांस्कृति संबंधी लक्ष्य को अभी तक हासिल नहीं किया जा सका है।
याचिका में कहा गया है कि महिलाओं को महिला पुरुषों के समागम के बीच ‘मुसल्ला’ में ही नमाज पढ़ने की अनुमति देने का निर्देश दिया जाता है। याचिका में मुस्लिम महिलाओं का मस्जिद में प्रवेश वर्जित करने की परंपरा को गैरकानूनी, असंवैधानिक और सामाजिक बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया गया।