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प्रवासी मज़दूरों पर बयान देकर क्या घिर गए हैं सीएम योगी आदित्यनाथ ?

  • उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक बयान को लेकर यूपी से महाराष्ट्र तक हंगामा मचा हुआ है।

दरअसल 24 मई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक वेबिनार में हिस्सा ले रहे थे।

वहाँ लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के अंदर भी मैनपावर हमारी है, इन सबकी स्किल मैपिंग के साथ-साथ कमिशन का गठन करके व्यापक स्तर पर रोज़गार उत्तर प्रदेश के अंदर उपलब्ध उपलब्ध कराने की कार्रवाई सरकार कर रही है। अब अगर किसी सरकार को मैनपावर चाहिए, तो इस मैनपावर को सोशल सिक्युरिटी की यकीन राज्य सरकार करेगी, उनका बीमा कराएगी, उन्हें हर तरह से सुरक्षा मिलेगी। लेकिन साथ-साथ राज्य सरकार बिना हमारे परमिशन के हमारे लोगों को लेकर नहीं होगी, क्योंकि कुछ राज्यों में जो लोगों की दुर्गति हुई है, जिस प्रकार का व्यवहार हुआ है उसको देखते हुए हम इनकी सोशल सिक्युरिटी की सुनिश्चित अपने हाथों में लेने जा रहे हैं। । इसके लिए मैंने आज एक कमिशन बनाने की व्यवस्था की है।

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इस पूरे बयान में से ”  राज्य  सरकार बिना हमारे परमिशन के हमारे लोगों को लेकर नहीं होगी  ” भाग को लेकर विवाद मुक्त हो गया है।

राहुल गांधी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने क्लास प्रेस कॉन्फ्रेंस में योगी सरकार के इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है

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महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के इस बयान के तुरंत बाद अपनी ओर से यह एक बयान जारी किया।

अपने बयान में उन्होंने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश सरकार से परमिशन लेने की जरूरत पड़ती है, तो जो मज़ूर महाराष्ट्र में काम के लिए एंट्री लेना चाहते हैं तो उन्हें भी महाराष्ट्र सरकार से मंज़ूरी लेनी पड़ेगी।

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राज ठाकरे ने ये भी जोड़ा कि महाराष्ट्र सरकार को इस बयान को गंभीरता से लेना चाहिए। जब भी प्रवासी मज़दूर महाराष्ट्र में आते हैं तो उनका पंजीकरण करवाना चाहिए, आईडी प्रूव और पूरा देशरा लेना चाहिए और लोकल पुलिस स्टेशन पर इसका रिकॉर्ड रखना चाहिए। महाराष्ट्र सरकार को प्रवासी मज़ूरों के लिए इन सभी नियमों का सख़्ती से पालन करना चाहिए।

राज ठाकरे

राज ठाकरे की पार्टी हमेशा से इस विचारधारा को मानती आई है कि महाराष्ट्र में रोज़गार पर पहला हक़ मराठियों का है। उत्तर भारतीयों का विरोध की उनकी राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है।

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हालाँकि इस पूरे मसले पर ना तो शिवसेना ने ना ही एनसीपी ने अभी तक कोई जवाब दिया है। लेकिन उत्तर प्रदेश के प्रवासी मज़दूरों पर महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री ने बीबीसी मराठी सेवा के मयंक भागवत से इन ज़रूर कहा, “इतने सालों तक वे सत्ता में थे, लेकिन मज़दूर लोगों के लिए कुछ नहीं किया, अपने यहाँ लोगों को रोज़गार नहीं दे पाया। महाराष्ट्र ने उन्हें रोज़गार दिया। ये तो ऐसी है माँ ने नहीं संभाला, लेकिन मौसी ने संभाला। हमने मज़ूरों को दो महीने तक खाना दिया। अब वो घर जाना चाहती हैं। हम उन्हें आगे भी संभाल लेंगे। योगी आदित्यनाथ इस राज्य में देखना चाहिए। । हम खुद को संभाल लेंग।)

बयान पर कहासुनी

सोशल मीडिया पर भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बयान की काफ़ी चर्चा हो रही है। बीबीसी ने अपने फ़ेसबुक पेज पर इसी विषय पर कहासुनी की थी। बड़ी संख्या में लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी।

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कहासुनी

बिश्वेश्वर चौधरी ने लिखा, “कोई भी भारतीय वो किसी भी राज्य का हो, वो बिना सरकार की अनुमति के किसी भी राज्य में काम कर सकता हो। अगर ये बयान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की तरफ़ से आया है तो ये संविधान विरोधी है।” नहीं जानता कि कोई भी मुख्यमंत्री इस तरह का बयान दे सकता है। “

वहीं, संतोष कदम लिखते हैं, “ये बहुत अच्छा बयान है, एक ताक़तवर नेता का। हमें हर राज्य में उन जैसे नेताओं की ज़रूरत है।”

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बालकृष्ण यादव ने इसे अच्छा फेसला बताया है। उन्होंने लिखा, “प्रवासी मज़दूरों के साथ महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हमें उन मज़दूरों की मदद करनी चाहिए, ताकि उन्हें नौकरी के लिए बाहर न जाना पड़े।”

देवेंद्र सिंह लिखते हैं, “वैसे तो ये फ़ैसला कॉन्स्ट के अनुसार नहीं है, लेकिन जिस तरह से अलग-अलग राज्यों में मज़दूरों के साथ बुरे वक्त में बुरा सलूक हुआ, उसमें ये फ़ैसला सही है।”

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कोरोनाइरस

मज़दूर  कहाँ  मज़बूत करते हैं  , ये अधिकार किसका है?

भारत में कोई भी नागरिक किसी राज्य में जा कर काम कर सकता है इस पर कोई रोक नहीं है। हालाँकि सरकारी नौकरियों में कुछ नियम और संस्थाएँ ज़रूर हैं।

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प्रवासी मज़ूरों पर कोरोना के दौर पर काम करने वाले, राजेंद्रन राघवन से बीबीसी ने बात की।

उन्होंने कहा, “मैंने योगी आदित्यनाथ का बयान नहीं सुना है, लेकिन प्रवासी मज़दूरों की सोशल सिक्युरिटी काफ़ी ज़रूरी है। चाहे वे राज्य सरकार लें या फिर केंद्र सरकार देंखे। इस पर बहुत पहले अर्जुन सेनगुप्ता कमेटेट ने अपनी एक रिपोर्ट भी दी है। लेकिन आज तक उस पर कोई अमल नहीं हुआ है। “

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अर्जुन सेनगुप्ता कमेटी 2007 में असंगठित्रेत्र में काम करने वाले कामगारों की दशा और दिशा पर सुझाव देने के लिए बनी थी।

राजेंद्रन के मुताबिक़ ये सही वक़्त है कि मज़दूरों के समाजिक सुरक्षा के बारे में सोचा जाए। हमें इसे एक राज्य या दूसरे राज्य के रूप में नहीं देखना चाहिए और ना ही इस पर कोई झूठा होना चाहिए, कि ये मेरा काम है या तुम्हारा है।

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वे आगे कहते हैं, “जब भी एक प्रवासी मज़दूर ग़रीरी राज्य से दूसरे अमीर राज्य में जाता है तो अमीर राज्यों का भी एक दायित्व होता है, पवित्र होता है कि ग़रीब प्रांतों से आए प्रवासी मज़दूरों की देखभाल करें। इस पूरे विभाजन 19 के दौर में। ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ है। “

प्रवासी मजदूर

मुख्यमंत्री का बयान कितना सही है?

बीबीसी ने उत्तर प्रदेश सरकार से इस पर उनका पक्ष जानना चाहा।

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उत्तर प्रदेश में देश के अलग-अलग राज्यों से अब तक 26 लाख प्रवासी मज़दूर वापस आ चुके हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार के मीडिया एडवाइजर मृत्युंजय कुमार ने बीबीसी को बताया कि मुख्यमंत्री ने ऐसा बिल्कुल नहीं कहा है।

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उन्होंने कहा, “आप उनके बयान को पूरा सुनते हैं। अभी तक रेल मंत्री ने महाराष्ट्र सरकार से प्रवासी मज़दूरों की लिस्ट माँगी। लेकिन महाराष्ट्र सरकार वो लिस्ट नहीं दे पा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। हमारी सरकार को अब तक ये पता नहीं चल रहा पा रहा है कि हमारे प्रदेश के कैसे लोग कहां-कहां फंसे हुए हैं। इसलिए कोई मज़दूर कहीं भी जाता है तो आयोग को चिह्नित कर दे कि हम इस राज्य में इस काम के लिए जा रहे हैं। इसमें हमारे पास एक है। डेटा रहेगा। कल को कोई अप्रिय घटना उनके साथ घटित होती है तो हमारे पास उसकी जानकारी होनी चाहिए। वास्तव में यह पूरी प्रक्रिया मैपिंग की है, ना कि अनुमति देने की है। “

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक दूसरी परेशानी भी है। राज्य में 26 लाख प्रवासी मज़दूर देश के अलग-अलग राज्यों से आए हैं।

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उनमें से ज्यादातर कोरोना पॉज़िटिव हैं। मुख्यमंत्री ने ख़ुद ने कहा, “मुंबई से आने वाले जो भी कामगार हैं उनमें से 75 फ़ीसदी ऐसे हैं जिनमें संक्रमण है। दिल्ली से आने वाले कामगारों में 50 फ़ीसदी ऐसे हैं जिनमें संक्रमण है। अन्य राज्यों से आने वालों में 20 से 30 सेसदी लोग व्यापक हैं। संक्रमण की चपेट में हैं। हमारे लिए एक चुनौती बनी हुई है लेकिन मज़बूती के साथ हमारी टीमें पूरी तरह जुटी हुई हैं। “

ऐसे में ये प्रवासी मज़दूर राज्य के हर हिस्से में संक्रमण का ख़तरा और बढ़ा सकते हैं। एक बात जो उन्होंने नहीं कही, वो ये कि इससे राज्य में बेरोज़गारी के आँकड़े भी बढ़ सकते हैं।

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हालांकि राज्य सरकार का दावा कर रही है कि 14 लाख प्रवासी मज़दूरों के लिए पहले राउंड की स्किल मैपिंग सरकार कर चुकी हैं। मज़दूरों को उनकी क्षमता के आधार पर नौकरी देने की व्यव्सथा की जा रही है, जिसके लिए पलायन कमिशन भी आने वाले दिनों में काम करेगा। इस संबंध में मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर ख़ुद जानकारी दी।

महाराष्ट्र सरकार की मजबूरी

योगी सरकार के इस बयान की सोशल मीडिया पर जितनी चर्चा उतनी चर्चा में है महाराष्ट्र सरकार ने नहीं की है।

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महाराष्ट्र की राजनीति पर क़रीब से नज़र रखने वाले इसे राजनीति से जोड़ कर देख रहे हैं।

हेमंत देसाई ऐसे ही वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनके मुताबिक, “पिछले दिनों पालघर में साधुओं की हत्या पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धृतव ठाकरे को फोन किया था। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में महाराष्ट्र के एक भवन की बात उद्धृतव ठाकरे के लिए है। उद्धव ठाकरे मौजूदा हैं। परिप्रेक्ष्य में कोई विरोध दर्ज नहीं किया गया।

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हेमंत देसाई के मुताबिक- इस वक़्त राज्य सरकार ने कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रही है। उनके मुताबिक़ एक ओर भारत में सबसे ज़्यादा कोरोना के मरीज़ महाराष्ट्र में हैं। सरकार उसे ठीक से संभालने में जुटी है।

वहीं दूसरी ओर एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने राज्यपाल बी कोशियारी से सोमवार को मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात के बाद ही अटकलों का बाज़ार गर्म है कि महाराष्ट्र में राज्य सरकार अस्थिर है।

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सामग्री उपलब्ध नहीं है

तीसरा मोर्चा केंद्र की तरफ से रेल मंत्री पीयूष गोयल ने खोला रखा है, जो रात दिन सोनी पर महाराष्ट्र सरकार से मज़दूरों की सूची और ट्रेन की नंबर मांगते हैं।

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ऐसे में महाराष्ट्र सरकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ चौथा एम। ओपनना नहीं चाहती। लेकिन ये भी सच है कि वह ठीक नहीं बोलेंगे, तो उनके दूसरे मंत्री और सहयोगी दल इस पर आवश्यक प्रतिक्रिया करेंगे। ये पूरा मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति से जुड़ा हुआ है ।

 

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Source bbc हिंदी

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