नई दिल्ली । CAA और NRC के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विरोध का अधिकार असीमित नहीं है। विरोध प्रकट के अधिकार के मामले में कोई सार्वभौमिक नीति नहीं हो सकती है। परिस्थितियों के अनुरूप संतुलन बनाए रखने के लिये सड़कें बाधित करने जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने जैसी संतुलित कार्रवाई जरूरी है।
कोर्ट ने यह टिप्पणी प्रदर्शन के खिलाफ दाखिल की गई याचिका की सुनवाई के दौरान की। दरअसल, ऐसी याचिकाओं में शाहीन बाग के प्रदर्शन के कारण राजधानी में यात्रियों को आने जाने में होने वाली दिक्कतों और बड़े पैमाने पर ट्रैफिक जाम की असुविधा का जिक्र किया गया था।
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा- विरोध करने का अधिकार पूर्ण नहीं था। आगे जस्टिस कौल बोले- विरोध करने का पूर्ण अधिकार नहीं है, पर एक अधिकार होता है…संसदीय लोकतंत्र में, हमेशा बहस का एक हिस्सा होता है। विरोध शांतिपूर्ण ढंग से किया जा सकता है ।
कोरोना के संदर्भ में बेंच ने यह भी कहा, ‘‘कुछ आकस्मिक परिस्थितियों ने इसमें अहम भूमिका निभाई और यह किसी के हाथ में नहीं था। ईश्वर ने खुद ही इसमें हस्तक्षेप किया।’’ कोर्ट ने कहा- लोकतंत्र में लोगों के विरोध का अधिकार अबाध्य है। पर प्रदर्शनों के लिए किसी इलाके को बंद नहीं किया जा सकता है।
शशांक देव सुधि सहित विभिन्न अधिवक्ताओं की दलीलों का संज्ञान लेते हुए बेंच बोली, ‘‘हमें विरोध प्रदर्शन के अधिकार और सड़कें अवरूद्ध करने में संतुलन बनाना होगा। हमें इस मुद्दे पर विचार करना होगा। इसके लिये कोई सार्वभौमिक नीति नहीं हो सकती क्योंकि मामले दर मामले स्थिति अलग-अलग हो सकती है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘संसदीय लोकतंत्र में संसद और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो सकता है लेकिन सड़कों पर इसे शांतिपूर्ण रखना होगा।’’
इस समस्या को लेकर याचिका दायर करने वाले वकीलों में से एक अमित साहनी ने कहा कि व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुये इस तरह के विरोध प्रदर्शनों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘इसे 100 दिन से भी ज्यादा चलने दिया गया और लोगों को इससे बहुत तकलीफें हुयीं। इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिए। हरियाणा में कल चक्का जाम था। उन्हांने 24-25 सितंबर को भारत बंद का भी आह्वाहन किया है।’’
इस मामले में हस्तक्षेप करने वाले एक व्यक्ति की ओर से अधिवक्ता महमूद प्राचा ने कहा कि शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रकट करने का अधिकार है और ‘‘एक राजनीतिक दल के कुछ लोग वहां गये और उन्होंने दंगा किया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें विरोध करने का अधिकार है। राज्य सरकार की मशीनरी पाक साफ नहीं है। एक राजनीतिक दल के सदस्य पुलिस के साथ वहां पहुंचे और उन्होंने स्थिति बिगाड़ दी।’’ हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका पर कहा कि इस मामले में फैसला बाद में सुनाया जाएगा।
क्या है मामला?:
शाहीन बाग विरोध प्रदर्शनों को क्षेत्र में प्रमुख सड़कों को अवरुद्ध करने के लिए दोषी ठहराया गया था। सीएए/एनआरसी विरोधी प्रदर्शनकारियों को तब से दिल्ली में दंगे भड़काने के लिए दोषी ठहराया गया है। साथ ही कई को कथित अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया है। कोरोना महामारी के पहले करीब 100 दिनों से अधिक समय तक विरोध प्रदर्शन जारी रहा था, पर संक्रमण के फैलाव के साथ प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर होना पड़ गया था। (पीटीआई-भाषा इनपुट्स के साथ)