Advertisement
टॉप न्यूज़राष्ट्रीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीर के कुछ नेताओं के साथ, कल होगी हाई-प्रोफ़ाइल बैठक

गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कश्मीर के कुछ नेताओं के साथ एक हाई-प्रोफ़ाइल बैठक होने वाली है. इस बैठक में लंबे समय तक अलग-थलग रहे कश्मीरी नेताओं के शामिल होने को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं.

बताया गया है कि गुपकार गठबंधन ने इस बैठक में शामिल होने का फ़ैसला लिया है. इस गठबंधन में नेशनल कॉन्फ़्रेंस के डॉक्टर फ़ारूक़ अब्दुल्ला और पीडीपी की महबूबा मुफ़्ती शामिल हैं. इन नेताओं को केंद्रीय गृह सचिव के माध्यम से बैठक का आमंत्रण भेजा गया था.

Advertisement

ऐसे दौर में, जब प्रधानमंत्री मोदी का कश्मीर को लेकर रुख़ अलग रहा है और 5 अगस्त 2019 के बाद से दिल्ली और श्रीनगर के बीच नये तरह के संबंध स्थापित हुए हैं, तब बिना किसी स्पष्ट एजेंडा के इस बैठक का आयोजन कई तरह की अटकलें पैदा कर रहा है.

लेकिन फ़िलहाल चार प्रमुख परिदृश्य हैं जिनपर सबसे ज़्यादा बात हो रही है.

Advertisement

1 – नई शुरुआत का आह्वान

कई लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार की बैठक में कश्मीरी नेताओं से एक नई शुरुआत की गुज़ारिश कर सकते हैं.

Advertisement

वे अतीत को पीछे छोड़ देने पर ज़ोर दे सकते हैं और कह सकते हैं कि वो जम्मू-कश्मीर को समृद्ध और शांतिपूर्ण बनाने की केंद्र की योजना में सहयोग करें.

वैसे भी इस बैठक में पीएम मोदी लगभग सभी उन नेताओं से मिलने वाले हैं, जिन्हें भारत समर्थक समझा जाता है.

Advertisement

उम्मीद की जा रही है कि इसके लिए पीएम मोदी को कश्मीरी नेताओं से जम्मू-कश्मीर के पूर्ण-राज्य का दर्जा जल्द ही बहाल करने का वादा करना होगा और जल्द ही प्रदेश में चुनाव कराने की बात कहनी होगी.

कश्मीरी पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस तरह के क़दम से अगस्त 2019 के बाद बिगड़ी परिस्थितियों को सामान्य किया जा सकता है.

Advertisement

2 – कुछ अहम वादे

दूसरा परिदृश्य ये है कि कश्मीरी नेताओं को मोदी से यह वादा मिल सकता है कि विशेष राज्य का दर्जा हटने के बाद भी नौकरियों और भूमि के मालिकों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने दिया जायेगा.

Advertisement

इसके लिए मोदी मौखिक आश्वासन की जगह, आगामी सत्र में इससे संबंधित क़ानून बनाकर इसकी संवैधानिक गारंटी देने की पेशकश कर सकते हैं.

माना जाता है कि इससे भारत समर्थक कश्मीरी नेताओं और दिल्ली (केंद्र सरकार) के बीच पैदा हुई कड़वाहट कम हो सकती है.

Advertisement

3 – कश्मीर नीति में बदलाव

पर्यवेक्षकों के एक वर्ग का मानना है कि मोदी को यह समझ आ गया है कि उनकी कश्मीर नीति एकतरफ़ा नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे एक पैकेज के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए जिसमें दक्षिण एशियाई पड़ोसियों में भारत के रणनीतिक हित शामिल हैं.

Advertisement

इसे देखते हुए, मोदी अपनी वैचारिक और राजनीतिक स्थिति पर दृढ़ रहते हुए भी जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय राजनेताओं को कुछ रियायतें दे सकते हैं.

4 – मोदी का ‘स्मार्ट मूव’

Advertisement

दिल्ली में मोदी के कुछ आलोचक उनके इस क़दम को ‘एक समझौते’ के रूप में देख सकते हैं. लेकिन कश्मीर बीजेपी से जुड़े कुछ कश्मीरी नेता इसे ‘स्मार्ट मूव’ यानी होशियारी भरा क़दम बता रहे हैं.

उनका तर्क है कि मोदी कश्मीर में राजनीतिक-विमर्श को सामान्य बनाने के लिए बेहतर स्थिति में हैं क्योंकि अलगाववादी राजनीति पहले ही अलग-थलग पड़ चुकी है और पारंपरिक रूप से भारत समर्थक राजनेताओं से निपटना उनके लिए कहीं अधिक आसान होगा.

Advertisement

वो फ़ारूक़ अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती और उनके जैसे अन्य नेताओं को “कम बुरा” मानते हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि जिन नेताओं से पीएम मोदी मिलने वाले हैं, उनके बारे में उनकी पार्टी या उन्होंने हाल के समय में भला-बुरा नहीं कहा.

गृह मंत्री अमित शाह गुपकार गठबंधन में शामिल नेताओं को ‘गुपकार गैंग’ कह चुके हैं. वहीं पीएम मोदी ने भी कहा था वे कश्मीर को ‘वंशवादी तानाशाहों’ से मुक्त करायेंगे, जहाँ उनका इशारा सीधे तौर पर अब्दुल्ला परिवार पर था.

Advertisement

मगर ऐसे समय में, जब अमेरिका भारत-पाकिस्तान के संबंधों को बेहतर बनाने की उम्मीद के साथ, अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना वापस बुला रहा है, तब भारतीय प्रधानमंत्री भी कश्मीर के भारत-समर्थक नेताओं की ओर हाथ बढ़ाकर एक प्रतीकात्मक संकेत दे सकते हैं और पाकिस्तान को कुछ रियायतें देते हुए दिख सकते हैं.

क्या गुज़रा हुआ समय वापस आयेगा?

इन चार परिस्थितियों पर होती चर्चाओं के बीच, कश्मीर में लोगों को इस बैठक से किसी बड़ी सफलता की उम्मीद कम ही है और इस संदेह की वजह एक लंबा इतिहास है जिसमें दिल्ली (केंद्र सरकार) ने बार-बार अपना रुख़ बदला है.

Advertisement

फ़ारूक़ अब्दुल्ला के पिता शेख़ अब्दुल्ला 1947 के बाद स्वायत्त जम्मू-कश्मीर के पहले प्रधानमंत्री थे. उन्हें भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए 1953 में उनके पद से हटा दिया गया था और बीस साल के लिए जेल में डाल दिया गया था.

जेल से उन्होंने एक आंदोलन चलाया था जिसका लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनिवार्य रूप से जनमतसंग्रह करवाना था.

Advertisement

1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से शेख़ अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति बहाल करने का अनुरोध किया था, जिसे 1960 में उनके जेल में रहने के दौरान हटा दिया गया था. इस पर इंदिरा ने उन्हें करारा जवाब दिया था कि “घड़ी की सुइयों को पीछे नहीं घुमाया जा सकता.”

अब 24 जून की बैठक में चाहे जो भी निर्णय हो, कश्मीर के लोगों को यह उम्मीद नहीं है कि घड़ी की सुइयां पीछे हट पाएँगी.

Advertisement

SourceBbc

Related posts

मौसम विभाग की चेतावनी- इन जिलों में आफत बनेगी सीतलहर और बारिश

Sayeed Pathan

बिहार में पूरी क्षमता के साथ खुलेंगे स्‍कूल, कॉलेज, धार्मिक स्‍थल और रेस्‍टोरेंट मॉल, यूपी के नाइट कर्फ़्यू के समय में बदलाव

Sayeed Pathan

दिल्ली के लाल किले से टाउन हॉल तक लोकतंत्र बचाओ मशाल शांति मार्च, हिरासत में लिए गए हरीश रावत समेत कई कॉंग्रेसी नेता

Sayeed Pathan

एक टिप्पणी छोड़ दो

error: Content is protected !!