नई दिल्ली । ट्राइब्यूनल में नियुक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। CJI एनवी रमना ने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट का सम्मान नहीं कर रही है। ट्राइब्यूनल सुधार कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार का यह रवैया न्यायिक संस्थाओं को दुर्बल बना रहा है। इस मामले में कार्रवाी करने के लिए कोर्ट ने केंद्र को एक हफ्ते का समय दिया है।
CJI एन वी रमना जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल नागेश्वर राव की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि वह केंद्र सरकार के साथ किसी तरह का टकराव नहीं चाहती। लेकिन वह चाहती है कि बड़ी संख्या में रिक्तियों का सामना कर रहे ट्राइब्यूनल में केंद्र कुछ नियुक्तियां करे।
कई अहम ट्राइब्यूनल और राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी), दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील अधिकरण (टीडीएसएटी) जैसे अपीलीय ट्राइब्यूनल में करीब 250 पद खाली हैं। पीठ ने कहा, ‘‘नियुक्तियां नहीं करके आप ट्राइब्यूनल को कमजोर कर रहे हैं।’’
न्यायालय ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की बात पर गौर किया और ट्राइब्यूनलों में रिक्तियों और उनसे संबंधित नए कानून संबंधी सुनवाई को 13 सितंबर के लिए स्थगित कर दी। पीठ ने कहा, ‘‘हम आशा करते हैं कि तब तक नियुक्तियां कर दी जाएंगी।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यह तो साफ है कि आप इस अदालत के फैसलों का सम्मान नहीं करना चाहते। अब हमारे पास न्यायाधिकरण सुधार कानून पर रोक लगाने या ट्राइब्यूनलों को बंद करने का विकल्प है या फिर हम स्वयं ही उनमें लोगों की नियुक्ति करें या अगला विकल्प है अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दे।’’
कोर्ट ने कहा, ‘‘हम सरकार के साथ टकराव नहीं चाहते हैं और उच्चतम न्यायालय में जिस तरह से नौ न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है, हम उससे खुश हैं। पूरी कानूनी बिरादरी ने इसकी सराहना की है। ये न्यायाधिकरण सदस्यों या अध्यक्ष के अभाव में समाप्त हो रहे हैं। आप हमें अपनी वैकल्पिक योजनाओं के बारे में सूचित करें।’’
मेहता ने कहा कि सरकार भी किसी तरह का टकराव नहीं चाहती है। उन्होंने इस आधार पर कुछ और समय मांगा कि अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल जो इन मामलों में पीठ की मदद कर रहे हैं वह कुछ निजी परेशानियों से जूझ रहे हैं।
कोर्ट ने ट्राइब्यूनल सुधार अधिनियम, 2021 के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिका समेत कई नई याचिकाओं पर नोटिस जारी किए। यह कानून संसद के मानसून सत्र के दौरान पारित हुआ था और इसे राष्ट्रपति ने 13 अगस्त को मंजूरी दी थी। पीठ ने कहा कि इन ट्राइब्यूनलों में पीठासीन अधिकारी या अध्यक्ष के 19 पद रिक्त हैं। इसके अलावा न्यायिक और तकनीकी अधिकारियों के क्रमश: 110 और 111 पद भी खाली पड़े हैं।
(भाषा से इनपुट्स के साथ)