~ढोल, गवार, शूद्र, पशु, नारी.!~
आज तक गलत प्रचारित किया गया है,
सही शब्द हैं, ढोल,गवार,क्षुब्ध
पशु,रारी”
श्रीरामचरितमानस मे, शूद्रों और नारी का अपमान कहीं भी नहीं किया गया है!
भारत के राजनैतिक शूद्रों को पिछले 450 वर्षों में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ ‘श्रीरामचरितमानस’ की कुल 10902 चौपाईयों में से आज तक मात्र 1 ही चौपाई पढ़ने में आ पाई है, और वह है भगवान श्री राम का मार्ग रोकने वाले समुद्र द्वारा भय वश किया गया अनुनय का अंश है जो कि सुंदर कांड में 58 वें दोहे की छठी चौपाई है ..
“ढोल, गँवार, शूद्र, पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी!”
इस सन्दर्भ में चित्रकूट में मौजूद तुलसीदास धाम के पीठाधीश्वर और विकलांग विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री राम भद्राचार्य जी जो नेत्रहीन होने के बावजूद संस्कृत, व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदांत, में 5 से अधिक GOLD Medal जीत चुकें हैं।
“महाराज का कहना है कि बाजार में प्रचलित रामचरितमानस में 3 हजार से भी अधिक स्थानों पर अशुद्धियां हैं” और..
इस चौपाई को भी अशुद्ध तरीके से प्रचारित किया जा रहा है!
उनका कथन है कि तुलसी दास जी महाराज खलनायक नहीं थे,
आप स्वयं विचार करें यदि तुलसीदास जी की मंशा सच में शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ही होती तो क्या रामचरित्र मानस की 10902 चौपाईयों में से वो मात्र 1 चौपाई में ही शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ऐसी बात क्यों करते ?
यदि ऐसा ही होता तो..
भील शबरी के जूठे बेर को भगवान द्वारा खाये जाने का वह चाहते तो लेखन न करते! यदि ऐसा होता तो केवट को गले लगाने का लेखन न करते!
स्वामी जी के अनुसार ये चौपाई सही रूप में –
ढोल,गवार, शूद्र,पशु,
नारी नहीं है
बल्कि यह
“ढोल,गवार,क्षुब्ध
पशु,रारी” है।
ढोल = बेसुरा ढोलक
गवार = गवांर व्यक्ति
क्षुब्ध पशु = आवारा पशु जो लोगो को कष्ट देते हैं
रार = कलह करने वाले लोग
चौपाई का सही अर्थ है कि जिस तरह बेसुरा ढोलक, अनावश्यक ऊल जलूल बोलने वाला गवांर व्यक्ति, आवारा घूम कर लोगों की हानि पहुँचाने वाले
(अर्थात क्षुब्ध) दुखी करने वाले पशु और (अर्थात रार) कलह करने वाले लोग जिस तरह दण्ड के अधिकारी हैं!
उसी तरह मैं भी तीन दिन से आपका मार्ग अवरुद्ध करने के कारण दण्ड दिये जाने योग्य हूँ!
स्वामी राम भद्राचार्य जी के अनुसार श्रीरामचरितमानस की मूल चौपाई इस तरह है और इसमें *‘क्षुब्ध’* के स्थान पर *’शूद्र’* कर दिया और *’रारी’* के स्थान पर *’नारी’* कर दिया गया है!
भ्रमवश या भारतीय समाज को तोड़ने के लिये जानबूझ कर गलत तरह से प्रकाशित किया जा रहा है! इसी उद्देश्य के लिये उन्होंने अपने स्वयं के द्वारा शुद्ध की गई अलग रामचरित मानस प्रकाशित कर दी है! रामभद्राचार्य कहते हैं धार्मिक ग्रंथो को आधार बनाकर गलत व्याख्या करके जो लोग हिन्दू समाज को तोड़ने का काम कर रहे है उन्हें सफल नहीं होने दिया जायेगा!
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और तुलसीदास जी की चौपाई का सही अर्थ लोगो तक पहुंचायें समाज को टूटने से बचाएं! “विश्व का कल्याण हो”
प्रदीप सिसोदिया
समाजसेवी
संत कबीर नगर