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सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दिया मंदिर-मस्जिद का भविष्य

नई दिल्ली ।

देश की सर्वोच्च अदालत ने अयोध्या की विवादित जमीन रामलला विराजमान को सौंपने और मुसलमानों को मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अलग देने का फैसला सुनाया है. इसके साथ ही अयोध्या का सदियों पुराना विवाद लंबी सुनवाई और कानूनी जिरह के बाद शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साथ निपट गया.

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अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि वह किसी तरह के किंतु-परंतू की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहता था. लिहाजा देश की सर्वोच्च अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए आदेश दिया कि अयोध्या की विवादित जमीन रामलला विराजमान को दी जा रही है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर-मस्जिद दोनों का भविष्य तय कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने खुशी जताई और कहा कि वो इसके खिलाफ अपील नहीं करना चाहते हैं. अब सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को राम लला विराजमान को सौंपने के लिए ट्रस्ट बनाने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश केंद्र सरकार को किस कानून के तहत दिया?

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सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट से 5 एकड़ जमीन दूसरी जगह देने की अपील नहीं की थी. इसके अलावा ट्रस्ट बनाने की भी मांग नहीं की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उपेंद्र मिश्र ने बताया कि शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अगल से 5 एकड़ जमीन अलॉट करने का आदेश दिया है. अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को किसी मामले में न्याय करने और फैसले को पूरा करने के लिए ऐसे आदेश देने की शक्ति मिली हुई है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक केंद्र सरकार को तीन महीने में एक ट्रस्ट बनाना होगा. राम मंदिर बनाने का फैसला ये ट्रस्ट ही लेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि अयोध्या में राम जन्मस्थान के दावे पर विवाद नहीं है. कोर्ट ने 2003 की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट स्वीकार की और माना कि खाली जमीन पर मस्जिद नहीं बनी थी. मस्जिद के नीचे मिला ढांचा इस्लामिक नहीं था.

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सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में किसी को केस में खर्च किए गए हर्जे खर्चे को भी नहीं दिलाया. आमतौर पर कोर्ट उस पक्ष को मुआवजा दिलाता है, जिसके पक्ष में फैसला आता है.

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