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जब रोम जल रहा था,तब नीरो बाँसुरी बजा रहा था,वैसा ही है आज का माहौल-:श्रीगोपाल गुप्ता

जब रोम जल रहा था तब रोम का सम्राट नीरो बाग में खड़ा होकर बांसुरी बजा रहा था. पुराने समय की यह हकीकत और कहावत जो इतिहास में दर्ज है अचानक आज हिन्दुस्तान के पूर्वोत्तर क्षेत्र सहित कई हिस्सों में नागरिकता कानून को लेकर जो आग लगी है, इसको देखकर ताजा हो गई है. पहली शताब्दी के दरमियान रोम में सम्राट नीरो का शासन था और उसके अनाप-शनाप फैसलों और ऊल-जलूल कर के बोझ तले जनता भारी परेशानी और जिल्लत का सामना कर रही थी. इसी बीच किसी कारण बस या कहा यह भी जाता है कि उसने खुद ही रोम शहर के आधे हिस्से में आग लग गई या लगा दी गई, हालांकि उसने आग लगाई इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है! बहरहाल जब आग से आधा रोम जल रहा था तब नीरो एक शाही बगीचे में चैन के साथ बांसुरी (सारंगी) बजा रहा था. आज कुछ-कुछ बैसा ही हिंद की सरजमीं पर हो रहा है पूर्वोत्तर से लेकर देश के 14 राज्यों के पचास से भी अधिक काॅलेजों के छात्र हाल ही में सरकार द्वारा पारित “भारतीय नागरिकता कानून, दिल्ली के जामिया, एएमयू में पुलिस की बर्बरता के विरुद्ध सड़कों पर उतर आये हैं. रेलवे स्टेशन, थाना, वाहनों व शासकिय संपतियों को आग हवाले किया जा रहा है वहीं अद्भुत भारतीय लोकतंत्र की वर्तमान देन हुक्मरान फरमा रहे हैं कि ये आग कोन लगा रहे हैंं?ये इनके कपड़ों को देखकर समझा जा सकता है.तो वहीं मोटा भाई के छोटा भाई कह रहे हैं कि आसमान को छूता हुआ अयोध्या में भव्य राम मंदिर चार महीने में बनकर तैयार हो जायेगा. अजीब कशमकश है देश जल रहा है और हुजूर जलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही कर सींखचों के अन्दर करने के वजाये कपड़ों को ताक रहे हैं और छोटा भाई देश की जलती हुई दशा पर चिंता और रोकने के वजाय मंदिर को आसमान से मिलाने का भरोसा दे रहे हैं. गोया जैसे देश की जनता को ही देश के जलने से कोई सरोकार न होकर राम मंदिर से ही मतलब है. इस जलते हिन्द को लेकर भी हुकुमरानों की केवल इतनी सी चिंता है कि ये सब कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां करवा रही हैं जबकि उनकी प्राथमिकता और जरुरत सिर्फ राम मंदिर और कपड़ों की पहचान तक ही सीमित है!

मगर नीरो को पुनः जिंदा करने व उसका अनुसरण करने की कसम खा लेने वालों को समझ लेना चाहिए कि नागरिकता कानून की आग में सबसे ज्यादा जल रहे पूर्वोतर और विशेषकर असम में कोई राजनीतिक दल भरे कर्फ्यू में केवल 100 लोगों को भी कर्फ्यू तोड़ने के लिए सड़कों पर खड़ा नहीं कर सकते और जबकि सेना की मौजूदगी में हजारों-हजारों असमी नागरिक कर्फ्यू को तोड़कर सड़कों पर उतर रहे हैं और उनमें कपड़ों से पहचान लिये जाने वाले लोग अकेले नहीं हैं इनमें हिंदूओं की संख्या ज्यादा है, तो सीधा सा मतलब है कि जनता व छात्रों ने शासन के प्रति विद्रोह कर दिया है. इस नागरिकता कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरी असम की जनता का कहना और मांग कुछ हद तक जायज भी है. एनआरसी की शुरुआत माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर अभी केवल असम में ही हो रही है, एनआरसी के तहत ताजा आंकड़ों के अनुसार करीबन साढ़े उन्नीस लाख लोग घुसपेठिये हैं. जिनमें करीबन 13 लाख हिंदू और बाकी के कपड़ों से पहचानने वाले सम्प्रदाय के लोग हैं. असमियों का कहना है कि हम बाहरी 13 लाख हिन्दूओं को भी क्यों झेलें? जबकि सन् 1984 में भारत सरकार के साथ हुये इस समझौते में स्पष्ट उल्लेख है कि घुसपेठिये कोई भी हों देश से खदेड़े जायेंगे. फिर इस कानून का औचित्य क्या है? सरकार पहले ये बताये और कानून को वापिस ले. दरअसल सरकार ने जो नागरिक संसोधन विधेयक दोनों सदनों में स्पष्ट बहुमत से पारित कराकर कानून बना दिया है. इस कानून के तहत सिर्फ हिन्दू, सिख, ईसाई, पादरी आदि जो सन् 2014 से पहले धार्मिक उत्पीड़न के बाद पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत में आये हैं उन्हें सरकार नागरिकता देगी. इसमें से केवल मुस्लमानों को छोड़ दिया गया है, उन्हें वही सन् 1971 की गाईड लाईन का पालन करना पड़ेगा जिसमें वे सन् 1974 से पहले आये हों तभी नागरिकता दी जायेगी. मगर कानून बनाकर अपने ही दांव में फंसी सरकार अब यह नहीं बता रही है कि जब कानून सही है तो मुस्लमानों के साथ-साथ बड़ी संख्या में हिन्दू भी इसका इतना कड़ा विरोध क्यों कर रहे हैं? और जिस सहयोगी राजनीतिक दलों जदयू और शिवसेना ने इस कानून को पारित कराने में सरकार का सहयोग किया वे ही अब इसका विरोध क्योकर कर रहे हैं? देश के हुकुमरानों को चाहिए कि इस सुलगते हुये मुद्दे और जलते हुये देश पर धेर्य के साथ चिंतन कर इस समस्या को बड़ी सफाई के साथ सुलझायेंं और विश्व में हो रही इस कानून और देश की बदनामी के कलंक से मुक्ति दिलायें.

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