भारतीय राजनीति में बदले की राजनीति एक नए मुकाम पर पहुंच गई है। राजनीति से आगे बढ़ कर यह प्रशासन का हिस्सा बन गई है। राज्यों की नई सरकारें पिछली सरकारों की योजनाओं को रोक रही हैं या उन्हें बदल रही हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने भले चुनावों से पहले कांग्रेस सरकार की योजनाओं का विरोध किया था पर सरकार में आने के बाद हर योजना को जस का तस लागू किया।
आधार, जीएसटी, मनरेगा आदि सारी योजनाओं का भाजपा और नरेंद्र मोदी विरोध करते रहे थे पर आज उनकी सरकार में ये सारी योजनाएं चल रही हैं। हां, उन्होंने कुछ योजनाओं और संस्थानों के नाम जरूर बदले पर उनका कामकाज नहीं रोका।
पर महाराष्ट्र की शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस की साझा सरकार और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस सरकार ने पिछली सरकार की योजनाओं में अड़ंगे डाल दिए हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने अमरावती में राज्य की नई राजधानी बनाने की महत्वाकांक्षी योजना को रोका है। विदेशी कंपनियों को मिली कई परियोजनाओं का काम रोक दिया गया है। यहां तक की राजधानी दूसरी जगह ले जाने की बात भी हो रही है। इससे एक गलत परंपरा शुरू हो रही है। इसे रोका नहीं गया तो कंपनियां काम लेने और करने में हिचकेंगी।
यहीं काम उद्धव ठाकरे की सरकार महाराष्ट्र में कर रही है। वे पिछली सरकार की शुरू की गई योजनाओं को रोक रहे हैं। इस तरह से समय का चक्र उलटा घूमाना किसी के हित में नहीं है। मेट्रो की परियोजना या बुलेट ट्रेन की परियोजना को रोकना कोई समझदारी का काम नहीं है। परमाणु संयंत्र की परियोजना भी महाराष्ट्र में लंबित है। राजनीतिक मामलों में पिछली सरकार के फैसलों को पलटना या रोकना अलग बात है पर प्रशासन और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में इस तरह के कदम आत्मघाती हो सकते हैं।
Represent by Balram G