इस समय कोटा शहर का नाम चर्चा में है | अख़बार हो या टी वी शहर का नाम ख़बरों में छाया रहता है |चर्चा का कारण है कोटा के जे.के. लोन मातृ एवं शिशु चिकित्सालय एवं न्यू मेडिकल कॉलेज में बच्चों की लगातार बढ़ती मौत का आंकड़ा | मामला तूल पकड़ने के बाद सरकार हरकत में आई है और अस्पताल के सुपरिटेंडेंट को हटा दिया है साथ भी हाई लेवल जांच के आदेश दे दिए गए हैं| बात अगर संख्या की हो तो पिछले 5 दिनों को मिलाकर अब तक 100 और हर साल में 1000 बच्चे काल के ग्रास में समा रहे हैं| एक ऐसे समय में जब भारत को विश्व गुरु बनाने की बातें अपने चरम पर हो. बहस का मुद्दा इंडिया का न्यू इंडिया बनना हो | सवाल है कि बच्चों की मौत के बाद आखिर क्यों सरकार की कान पर जूं तक न रेंगी? क्यों इन मौतों की अनदेखी हुई? मासूम बच्चों की मौत को एक गंभीर मामला मानते हुए इसपर कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए? कहीं ऐसा तो नहीं कि यूपी , बिहार से लेकर राजस्थान तक इस देश की अलग अलग सरकारें इस बात को पहले ही मान चुकी हैं कि ये गरीब के बच्चे हैं| इन बच्चों का मर जाना ही बेहतर है!
मामला मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा में है| जिस राज्य की घटना हो उस राज्य के मुखिया की आलोचना होना स्वाभाविक है| मामले प्रकाश में आने के बाद खुद को घिरता देखा सीएम अशोक गहलोत ये कहते नजर आ रहे हैं कि मामले पर विपक्ष राजनीति कर रहा है |अशोक गहलोत के अनुसार पिछले छह सालों में इस तरह से जान जाने के मामलों में कमी आई है| ध्यान रहे कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल किसी से छुपी नहीं है| प्रश्न ये है कि आखिर मुख्यमंत्री क्यों नहीं इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि देश में प्राथमिक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बहुत कमज़ोर है और यही बच्चों की अकाल मौत का कारण है | कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके इतना भर स्वीकार कर देने से तमाम अलग अलग दावों की पोल खुल जाएगी ? जनता को उनकी असलियत का पता चल जाएगा. बात इलाज के आभाव में मासूम बच्चों की मौत से जुड़ी है |
बात एकदम सीधी और स्पष्ट है. ख़राब स्वास्थ्य सेवाओं के चलते चाहे देश में एक बच्चा मरे या फिर एक सौ- एक हजार बच्चे. तंत्र को पहली ही मौत से सचेत हो जाना चाहिए और ऐसे प्रबंध करने चाहिए जिससे उस एक जान को बचाया जा सके. सरकार भले ही ये कहकर अपनी पीठ थपथपा ले कि बच्चों की मौतों की संख्या में कमी आई है मगर उसे जरूर उस परिवार से मिलना चाहिए जिसने उस एक मौत के रूप में अपना सब कुछ खो दिया|अंत में बस इतना ही कहेंगे कि बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देश में रहने वालों का बुनियादी हक है और मुद्दा ये नहीं है कि पिछली सरकारों ने क्या किया? सवाल उससे पूछा जाएगा जो अभी गद्दी पर बैठा है और चूंकि अभी राजस्थान की गद्दी पर अशोक गहलोत हैं तो वो बताएं कि आखिर वो दिन कब आएगा जब इन मौतों पर अंकुश लगेगा ? यदि गहलोत इस सवाल का जवाब देने में असमर्थ हैं तो न तो उन्हें गद्दी पर बैठने का हक हैं न ही उन्हें ये अधिकार है कि वो विकास की बातें करें उसपर खोखली और झूठी दलीलें दें |
अशोक भाटिया, A /0 0 1 वेंचर अपार्टमेंट ,वसंत नगरी
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