देश भर के तमाम विश्वविद्यालयों में फाइनल इयर एग्जाम होने बाकी हैं. यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) ने पहले कहा था कि अगर लॉकडाउन की अवधि आगे बढ़ी तो परीक्षाएं कैंसिल कराई जा सकती हैं. लेकिन बाद में संशोधित गाइडलाइन जारी करके कहा कि परीक्षाएं सितंबर माह में होंगी. यूजीसी के इस फैसले के खिलाफ 31 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी लेकिन यूजीसी का इस पर रुख बदलने का नाम नहीं ले रहा. अब 14 अगस्त को एक बार फिर से कोर्ट में सुनवाई है. aajtak.in ने याचिकाकर्ताओं की बात और देश भर की विभिन्न यूनिवर्सिटीज के फाइनल इयर छात्रों से बात की. आइए जानते हैं क्या सोच रहे हैं छात्र.
कलकत्ता विश्वविद्यालय की छात्रा अनन्या पहाड़ी ने aajtak.in से बातचीत में कहा कि कोर्ट में हमारी याचिका पर यूजीसी ने जो हलफनामा दिया है, उसमें कुल्हाड़ कमेटी का जिक्र है. आयोग कह रहा है कि इसमें कई प्रोफेसर हैं, लेकिन ऐसे समय में जब कोरोना संक्रमण से देश में लाखों लोग शिकार हो चुके हैं, किसी कमेटी में भी हेल्थ एक्सपर्ट या पैनडेमिक एक्सपर्ट होने चाहिए थे. हम लोग बहुत तनाव में हैं. यूजीसी हमें जीवन और करियर में किसी एक को चुनने पर मजबूर कर रहा है.
अनन्या ने कहा कि शुरुआती दौर में कहा गया था कि फाइनल इयर के स्टूडेंट्स को भी बिना परीक्षा के प्रमोट किया जाएगा, लेकिन अचानक फाइनल इयर एग्जाम को लेकर संशोधित गाइडलाइंस आ गईं और फाइनल इयर के स्टूडेंट्स के एग्जाम पर बात होने लगी. छात्रों के सामने इंटरनेट कनेक्टिविटी से लेकर सिलेबस पूरा न होने जैसी तमाम समस्याएं सामने खड़ी हैं.
मुंबई विश्ववद्यालय के छात्र मुदाप्पला प्रणव नायर ने कहा कि देशभर के कॉलेज होली की छुट्टियों के समय ही बंद हो गए थे. उसके बाद देशभर में लॉकडाउन होने से छात्रों को घर जाना पड़ा. अब जब छात्रों की किताबें हॉस्टल के कमरों में बंद हैं, बीस से तीस प्रतिशत पाठ्यक्रम भी पूरा नहीं हुआ है. ऐसे में 20 % सिलेबस पढ़कर हम परीक्षा कैसे दे सकते हैं. छात्र इस वजह से बहुत ज्यादा मानसिक तनाव में हैं. हर रोज छात्रों के सुसाइड की खबरें आ रही हैं, जिस समय हमें हमारी सरकार से सहायता की उम्मीद थी, उस समय सरकार हमे मौत के मुह में धकेल रही है.
प्रणव नायर ने कहा कि एक तरफ सरकार ऑनलाइन एजुकेशन की बात करती है लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि सभी कोर्स के स्टडी मैटेरियल ऑनलाइन उपलब्ध नहीं हैं. कंप्यूटर साइंस जैसे कोर्स के ऑनलाइन लेक्चर हैं लेकिन बाकी कोर्स जैसे B.A, B.com, B.sc जैसे पारंपरिक कोर्स का कोई स्टडी मैटेरियल ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है.
ऑनलाइन परीक्षा भी है मुश्किल
आज भी देश के बड़े हिस्से में इंटरनेट कनेक्शन और बिजली एक समस्या है. जहां इंटरनेट उपलब्ध है, वहां कनेक्शन मजबूत नहीं है. साथ ही, भारत में केवल कुछ प्रतिशत छात्रों के पास लैपटॉप है, NSO इंडिया का सर्वे है कि 5-24 वर्ष की उम्र के बीच के केवल 8% लोगों के पास इंटरनेट और लैपटॉप दोनों चीजे उपलब्ध हैं. डॉ एपीजे टेक्नीकल यूनिवर्सिटी के छात्र तनुज शर्मा कहते हैं कि हम लोग फोन के माध्यम से इंटरनेट चलाते हैं, वो भी कोई बहुत अच्छे हाईटेक फोन नहीं हैं और जिसके कारण अधिकांश छात्रऑनलाइन परीक्षा आसानी से नहीं दे सकते. ग्रामीण इलाकों में लड़कियों के पास फ़ोन तक नहीं होते हैं तो वह ऑनलाइन परीक्षा कैसे देंगी.
ऑफ़लाइन परीक्षाओं पर नॉर्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी की छात्रा भासवती चौधरी कहती हैं कि अगर हम ऑफलाइन परीक्षा देते हैं, तो खुद और अन्य छात्रों और अभिभावकों, शिक्षकों और कर्मचारियों को संक्रमण का खतरा होगा जो कि हमारे लिए जानलेवा हो सकता है. वो कहती हैं कि UP बीएड के एग्जाम में हम सबने देखा है कि कितनी भीड़ थी और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों को ताक पर रखकर ये परीक्षा आयोजित कराई गई.
भासवती कहती हैं कि अगर हम परीक्षाएं देने के लिए हॉस्टल में रुकते हैं तो यहां सोशल डिस्टेंसिंग संभव नहीं है. स्टूडेंट एक ही कमरा- बाथरूम और मेस साझा करते हैं. मकान मालिक हमे किराये पर कमरा देने के लिए तैयार नहीं हैं. इसके अलावा, कई छात्रावास क्ववारनटीन सेंटर बनाए गए हैं. सबसे अहम बात कि परीक्षाएं देने के लिए हमें एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रेवल करना पड़ेगा. ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करना बहुत मुश्किल काम है.
यात्रा के दौरान अगर कोई छात्र संक्रमित हो जाता है तो उसे तुरंत लक्षण नही आते हैं. थर्मल स्कैनर किसी भी लक्षण का पता नहीं लगा पायेगा फिर दो चार दिन बाद पता चलेगा कि इस से परीक्षा केंद्र पर कोई कोरोना संक्रमित छात्र आया था तो आप कल्पना कीजिए कि उस सेंटर पे जितने छात्रों ने पेपर दिया होगा उनकी क्या हालात होगी.
लगातार हो रही देरी, करियर पर खतरा
प्रणव कहते हैं कि एग्जाम में पहले से ही बहुत देर हो चुकी है, हमारे पास हमारी डिग्री नहीं है. हमें नहीं पता कि क्या होगा. हममें से कुछ छात्रों का कॉलेजों से प्लेसमेंट हुआ था लेकिन ज्वाइनिंग अभी डिग्री न मिलने की वजह से बाकी है. कुछ छात्रों को आगे पढ़ाई के लिए एडमिशन लेने हैं, विदेश की यूनिवर्सिटी एडमिशन बंद करने जा रही हैं और हम अप्लाई नहीं कर सकते क्योंक अभी तक हमारे हाथ में डिग्री नहीं है. हमने पहले ही सरकारी नौकरी में आवेदन करने के अवसरों को खो दिया है जिन पर आवेदन करने की अंतिम तिथि 31-जुलाई-2020 थी.
क्या चाहते हैं छात्र
Dr. Abdul Kalam technical university LUCKNOW के छात्र तनुज शर्मा ने कहा कि हम छात्र चाहते हैं कि पूरे देश में UGC की सभी 955 यूनिवर्सिटी में फाइनल ईयर के एग्जाम कैंसिल हो. कुछ राज्य सरकार अपने स्तर पर एग्जाम कैंसिल करने की मांग कर रहे हैं. अगर ऐसा होता है तो कुछ राज्य एग्जाम करवाएंगे और कुछ कैंसिल कर देंगे , इसके लिए क्या मापदंड निर्धारित किए जायेंगे कि किस हालात में एग्जाम कराने चाहिए और किस में नहीं.
कुछ राज्यों के छात्रों के साथ अन्याय हो जाएगा, हमारा मूलभूत समानता का अधिकार राजनीति में पिस जाएगा.
देखा देखी में सभी राज्य सरकारों के ऊपर दबाव रहेगा कि एग्जाम कराए जाएं इस प्रकार हमारा सुप्रीम कोर्ट तक आने का मकसद खत्म हो जाएगा और अधिकतर राज्यों में बिना तैयारियों के एग्जाम कराए जाएंगे.
एक उदहारण हम देते हैं कि मान लीजिए एक महाराष्ट्र का छात्र उत्तर प्रदेश की किसी यूनिवर्सिटी में पढ़ता है. अब महाराष्ट्र में कोरोना के खराब हालात के चलते राज्य सरकार द्वारा एग्जाम कैंसिल कर दिए जाते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार एग्जाम कराने का निर्णय लेती है तो उस छात्र को महाराष्ट्र से निकलकर उत्तर प्रदेश आना पड़ेगा. तो क्या उस छात्र को कोरोना का डर नहीं होगा जबकि वहां की सरकार कोरोना की वजह से एग्जाम नहीं करा रही है .
ये केवल एक परेशानी है, अगर सारे देश मे एक समान निर्णय लागू नहीं होता तो जमीनी स्तर पर इस तरह की न जाने कितनी दिक्कतें हमारे सामने आएंगी.
इसीलिए हम चाहते हैं कि UGC अपनी गाइडलाइन्स में संशोधन करे और अंतिम वर्ष के छात्रों को पिछले वर्षों में प्रदर्शन के आधार पर एक ही गणितीय फॉर्मूले से गणना करके मार्क्स देकर प्रमोट करने का नियम बनाए. फिर ये गाइडलाइन्स देश के हर एक राज्य की हर एक UGC एफिलिएटेड यूनिवर्सिटी में लागू हो.
छात्रों का कहना है कि हमने पिछले साल के सेमेस्टर में हमारे पाठ्यक्रम का 85% से ज्यादा सिलेबस कम्पलीट कर किया है, और हमने पिछले सेमेस्टर में इंटर्नल / सेशन / मिड टर्म दिया है. सरकार उपरोक्त पर मूल्यांकन करने पर विचार करे और हमें जल्द से जल्द डिग्री प्रदान करे ताकि हम जल्दी से जल्दी अपनी आगे की पढ़ाई और जॉब्स कर सकें.
आईआईटी, एनएलयू, एनआईटी (सभी सेमेस्टर) और अन्य कॉलेजों / विश्वविद्यालयों के लिए इंटरमीडिएट सेमेस्टर ने पिछले वर्षों के आधार पर नंबर देकर छात्रों को प्रमोट कर दिया है. इसी तरह यूजीसी भी अपना फैसला ले सकती है.।
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Source aajtak