दशकों से पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसने वाले आदिवासियों ने आत्मनिर्भर होने की एक ऐसी मिसाल पेश की है, जिसे देख कर शासन-प्रशासन भी एक बार सिर झुका लेगा। मासूम बच्चों ने अपने माता-पिता के साथ मिलकर एक ऐसे बांध का निर्माण किया है, जिसमें ठहरा पानी से क्षेत्र के हजारों आदिवासियों और लाखों जंगली जानवरों की न सिर्फ प्यास बुझेगा, बल्कि रबी की फसल की पूरी खेती भी इस पानी से हो सकेगी। वर्षों से क्षेत्र में पानी की समस्या कुछ ऐसी थी कि पूरा गांव पलायन कर जाता था। प्रशासन से इसे लेकर कई बार गुहार लगाया लेकिन कभी काम नहीं हुआ।
पानी की किल्लत से परेशान रहते थे आदिवासी
छोटे-छोटे हाथों से पत्थर उठाते ये बच्चे उस आदिवासी गांव के रहने वाले हैं, जहां साल के 8 महीने पानी की एक बूंद का मिलना सपने से कम नहीं होता है। सतना के चित्रकूट स्थित बटोही गांव कहने को तो नगर पंचायत का वार्ड नंबर 13 है, लेकिन आजादी के 73 साल बाद भी पानी के लिए यहां के निवासी बाट जोह रहे हैं। हजारों की आबादी वाले इस गांव में पानी की समस्या ऐसी की ग्रामीण यहां से पलायन कर जाते हैं। दूसरे शहरों में यहां के लोग मजदूरी कर अपना पेट पालते हैं।