नई दिल्ली: अगर कृषि क़ानूनों को वापस लिया गया तो अगले पचास सालों तक कोई भी सरकार कृषि क़ानूनों को छूने की हिम्मत नहीं कर पाएगी और किसान मरता रहेगा. सुप्रीम कोर्ट द्वारा कृषि क़ानूनों पर गठित कमेटी के सदस्य अनिल घनवत ने ये बड़ा बयान दिया है. 19 जनवरी को हुई कमेटी की पहली बैठक में 21 जनवरी से किसानों से बातचीत शुरू करने का फ़ैसला किया गया.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की मंगलवार को पहली बैठक हुई. चार सदस्यीय कमेटी में से एक सदस्य ने अपना नाम वापस ले लिया था, लिहाज़ा बाक़ी बचे तीनों सदस्य बैठक में शरीक हुए. कमेटी के सदस्य और किसान नेता अनिल घनवत ने बैठक के बाद एक बड़ा बयान दिया. घनवत ने कहा कि पिछले 70 सालों से किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं आया है ये सभी मानते हैं और इसलिए क़ानून में बदलाव की ज़रूरत है. धनवत ने कहा कि वो भी क़ानूनों को पूरा ठीक नहीं मानते हैं, लेकिन किसानों को अपनी शिकायतें कमेटी के सामने रखनी चाहिए.
अनिल घनवत ने कहा, “ये तो तय है कि अभी तक किसानों को लेकर जो नीतियां और क़ानून रहे हैं, वो नाकाफ़ी हैं क्योंकि अगर ऐसा होता तो 4.5 लाख किसान आत्महत्या नहीं करते. कुछ बदलाव की ज़रूरत तो है. अगर ये क़ानून वापस होते हैं, तो अगले 50 सालों तक कोई भी सरकार या पार्टी ऐसा करने की हिम्मत और धैर्य नहीं दिखा पाएगी और किसान मरता रहेगा.”
19 जनवरी की बैठक में कमेटी के तीनों सदस्य, अशोक गुलाटी, प्रमोद जोशी और अनिल घनवत मौजूद थे. बैठक में फ़ैसला लिया गया कि 21 जनवरी से कमेटी किसानों से बातचीत शुरू कर देगी. किसानों के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों समेत सभी स्टेकहोल्डर्स से बात की जाएगी. कमेटी एक पोर्टल बना रही है, जिसपर कोई भी किसान व्यक्तिगत तौर पर भी अपनी राय दे सकेगा. कमेटी दिल्ली से बाहर भी क्षेत्रवार दौरा करेगी, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचा जा सके.
कमेटी ने साफ़ किया कि दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों को भी बातचीत का न्योता दिया जाएगा. सदस्यों ने किसानों से अपील की है कि वो बातचीत के लिए ज़रूर आएं.
आंदोलन कर रहे किसान प्रतिनिधियों ने कमेटी का विरोध करते हुए इसकी बैठकों में नहीं जाने का एलान किया है. ऐसे में सूत्रों का कहना है कि अगर विरोध कर रहे किसान बातचीत के लिए कमेटी के सामने नहीं आते हैं, तो कमिटी के सदस्य सिंघु बॉर्डर जाने पर विचार कर सकते हैं. हालांकि इसपर बाद में फ़ैसला लिया जाएगा.
आपको बता दें कि किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच 20 जनवरी यानी आज 10वीं दौर की बैठक होनी है. इससे पहले नौ बार किसान प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच कृषि कानूनों पर चल रहे गतिरोध को खत्म करने को लेकर बैठकें हुईं, लेकिन सभी बेनतीजा रहीं. किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग पर कायम हैं.