प्रयागराज । स्कूलों के संबंध में किस प्रकार गलत सूचनाएं अपलोड की गई हैं उसका सबसे बेहतरीन उदाहरण सरदार वल्लभ भाई पटेल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय धनुहा नैनी का है। यहां मुश्किल से 5 या 6 कमरे ही हैं और स्कूल बंद पड़ा हुआ है। लेकिन डीआईओएस की रिपोर्ट में 15 पक्के कमरे दिखाएं गए हैं। जाहिर सी बात है कि कम्प्यूटर तो 15 कमरों की क्षमता के अनुसार बच्चे आवंटित करेगा लेकिन वास्तविकता में केंद्र पर बैठने की जगह नहीं मिलेगी।
केस टू
अंकित विद्या निकेतन इंटर कॉलेज राम नगर नैनी में भी मनमाने तरीके से रिपोर्ट लगा दी गई। स्कूल में 20 कमरे भी नहीं है लेकिन 25 कमरे दिखा दिए गए। इस प्रकार की अनेकों गड़बड़ियां सिर्फ प्रयागराज में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में की गई हैं। यूपी बोर्ड की परीक्षा के लिए केंद्र निर्धारण की सूची पर गंभीर सवाल उठे हैं। यही कारण है कि शासन को नीति के अनुसार केंद्र निर्धारण सुनिश्चित करने के लिए जिलाधिकारियों को 5 फरवरी को दोबारा से पत्र जारी करना पड़ गया। ऐसा नहीं है कि केंद्र निर्धारण में अनियमितता या मनमानी के आरोप पहली बार लगे हैं।
यह सालों साल से चला आ रहा है। जिलों में तैनात अफसरों और बाबुओं के आगे केंद्र निर्धारण नीति की एक नहीं चलती। कहने को केंद्र बनाने की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन हो गई है लेकिन स्कूलों की सूचनाएं फीडिंग का काम तो स्कूलों के प्रबंधक प्रधानाचार्य और जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के बाबू ही कर रहे हैं। पसंदीदा प्राइवेट स्कूल को केंद्र बनाने के लिए गलत सूचनाएं अपलोड की जा रही हैं। पिछले सालों में भी इस प्रकार की अनियमितताएं सामने आईं थीं लेकिन आरोपी बाबू या अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई न होने के कारण मनमानी पर रोक नहीं लग पा रही। इस साल भी स्कूलों की भौगोलिक स्थिति और कमरों आदि की गलत सूचनाएं भरने की शिकायत मिली थी।
यूपी बोर्ड ने डीआईओएस को संशोधन का तीन बार अवसर दिया लेकिन उसके बाद 25 जनवरी को जो पहली सूची जारी हुई उसमें कई खामियां हैं। सवाल यह है कि स्कूलों की आधारभूत सूचनाओं और उपलब्ध सुविधाओं के भौतिक सत्यापन के लिए एसडीएम की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने मौके पर जाकर क्या देखा।