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BBC की पड़ताल :: प्रधानमंत्री आवास योजना में मिला सबसे बड़ा भ्रष्टाचार, असली लाभार्थी कोई और, सरकारी काग़ज़ पर नाम किसी और का

  • प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) में घपले के ठोस सबूत
  • सरकारी बाबुओं, जनप्रतिनिधियों और बैंककर्मियों की मिलीभगत से दिया जा रहा है अंजाम
  • जो मर गए हैं, उनके नाम पर भी लिए जा रहे हैं पैसे
  • दूसरों के नाम पर फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाकर निकाले जा रहे हैं पैसे
  • प्रधानमंत्री आवास योजना में असली लाभार्थी कोई और सरकारी काग़ज़ पर नाम किसी और का
  • गाँवों में उठ रही है जाँच की माँग लेकिन व्यवस्था के स्तर पर कोई सुनने को तैयार नहीं
  • प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बीपीएल परिवारों को तीन किस्तों में एक लाख 20 हज़ार रुपए घर बनाने के लिए मिलते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अप्रैल, 2016 को प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) लॉन्च किया था. इसके तहत 21 मार्च 2019 तक एक करोड़ घर बनाने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन कई जगह ये योजना ग़रीबों को घर देने से पहले सरकारी बाबुओं और जनप्रतिनिधियों को अमीर बना रही है.

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इसी साल मार्च महीने में कहा था कि प्रधानमंत्री ने 2022 तक सभी के लिए पक्का घर बनाने का लक्ष्य रखा है. काग़ज़ पर अगर मार्च, 2022 में यह लक्ष्य पूरा भी हो जाता है, तो इसकी असली कहानी उन ग़रीबों के मन में कही बैठी रहेगी, जिन्हें घर हक़ के रूप में नहीं बल्कि रिश्वत और अहसान के रूप में मिले.

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प्रधानमंत्री आवास योजना में व्यापक भ्रष्टाचार के संकेत हैं. भ्रष्टाचार कई स्तरों पर अंजाम दिया जा रहा है. सरकार को लगता है कि डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफ़िट ट्रांसफ़र के कारण भ्रष्टाचार कम हुआ है. डीबीटी के तहत सरकारी योजनाओं के पैसे ग़रीबों के बैंक अकाउंट में सीधे जाते हैं.

मोदी सरकार ने ग़रीबी रेखा से नीचे गुज़र-बसर करने वाले सभी लोगों को 2022 तक पक्का का घर देने का लक्ष्य रखा है

लेकिन बीबीसी हिन्दी की पड़ताल में पता चला कि बैंक अकाउंट खोलने में ही लोग धांधली कर रहे हैं. बैंककर्मियों की मिलीभगत से फ़र्ज़ी दस्तावेज़ देकर लोग दूसरों के नाम पर खाता खुलवा रहे हैं.

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पूरी योजना में जनप्रतिनिधियों, सरकारी बाबुओं और दलालों के बीच गहरी साँठगाँठ है. आधार नंबर को भ्रष्टाचार रोकने के लिए हथियार के तौर पर देखा गया, लेकिन यहाँ भी नाम और फ़ोटो में जमकर फेरबदल चल रहा है.

प्रधानमंत्री आवास योजना में भ्रष्टाचार को लेकर बिहार के भोजपुर में मिली कुछ शिकायतों के आधार पर बीबीसी ने पड़ताल शुरू की, तो पता चला कि यहाँ कुएं में ही भांग घोल दी गई है. कई पंचायत और गाँव में लोग परेशान हैं कि उनके नाम से पैसा जारी हो चुका है, लेकिन पैसा किसी और ने ले लिया है.

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ग़रीबों के नाम पर गाँव के दबंगों ने पैसे लिए हैं. दलितों की हक़मारी सबसे ज़्यादा दिखी. वैसे लोगों के नाम पर भी पैसे लिए गए हैं, जो ज़िंदा ही नहीं हैं. कई तो ऐसे लोग मिले, जिन्हें पता भी नहीं है कि उनके नाम पर एक लाख 20 हज़ार रुपए ले लिए गए हैं. कइयों को पता है कि उनका हक़ उनके गाँव के ही दबंगों ने मारा है, लेकिन वे डर से बोलने की स्थिति में नहीं हैं.

जाने-माने अर्थशास्त्री और एक्टिविस्ट ज्यां द्रेज़ कहते हैं कि प्रधानमंत्री आवास योजना में जितना भ्रष्टाचार बिहार में है, उतना कहीं नहीं है.

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वे कहते हैं, ”किसी भी सरकारी योजना में जितना भ्रष्टाचार बिहार में है, उतना कहीं नहीं है. भ्रष्टाचार बिहार की स्ट्रक्चरल बीमारी है. मामला केवल भोजपुर का नहीं है, बल्कि यह योजना ही भ्रष्टाचार में डूबी हुई है. बिहार के लोग सरकारी योजनाओं से मिलने वाले फ़ायदे को अपना हक़ नहीं अहसान के तौर पर लेते हैं. अगर वे अपना अधिकार मानते तो उन्हें रिश्वत देने की ज़रूरत नहीं पड़ती. लेकिन यह केवल लोगों के स्तर पर ही नहीं बल्कि योजना को डिलीवर करने की जिन पर ज़िम्मेदारी है, उन्हें भी यही लगता है कि मुफ़्त में पैसे क्या बाँटने हैं, इसे अपने पास भी रखा जा सकता है.”

जितना कुँवर इसी घर में रहती थीं और ये बीपीएल भी नहीं थीं लेकिन इनकी मौत के पैसा हड़पने के लिए इन्हें ज़िंदा कर दिया गया

प्रधानमंत्री आवास योजना में भ्रष्टाचार कैसे अंजाम दिया है जा रहा है, इसके लिए हमने चार केस स्टडी की है. ये तरीक़े व्यापक पैमाने पर पैसे बनाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं. पढ़िए, बीबीसी पड़ताल-

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जितना कुँवर को मरने के बाद ज़िंदा किया गया!

नलिन तिवारी नोएडा की एक आईटी कंपनी में काम करते हैं. कोविड महामारी के कारण लॉकडाउन लगा, तो कंपनी ने घर से काम करने के लिए कहा. नलिन दिल्ली में रहने के बजाय अपने होमटाउन बिहार के आरा आ गए और यहीं से काम करना शुरू किया. वे पिछले साल जुलाई महीने से ही आरा में हैं.

इसी साल फ़रवरी महीने में नलिन से उनकी माँ ने कहा कि घर का पैसा मिलने वाला है. उनकी माँ प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत मिलने वाले पैसे की बात कर रही थीं. नलिन तिवारी के कान खड़े हो गए.

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दरअसल, नलिन की बड़ी माँ यानी बड़ी चाची आरा ज़िले के जगदीशपुर ब्लॉक के देवराढ़ गाँव में रहती थीं. देवराढ़ नलिन का पैतृक गाँव है.

नलिन की बड़ी माँ का नाम जितना कुँवर था. 2019 में 19 दिसंबर को जितना कुँवर ने आख़िरी साँस ली थी. पति की मौत पहले ही हो गई थी. वो गाँव में ही अकेले रहती थीं. उनकी एक बेटी हैं लेकिन शादी के बाद उनका भी साथ छूट गया था. जिस घर में जितना कुँवर रहती थीं, वो ध्वस्त हो चुके अच्छे घर का अवशेष है.

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फर्जी बैंक अकाउंट को लेकर बैंक को भेजा गया ये पत्र

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नलिन तिवारी को पता चला कि उनकी बड़ी माँ भले दो साल पहले दुनिया छोड़ चुकी हैं, लेकिन बिहार की व्यवस्था ने उन्हें ज़िंदा रखा है. या यूँ कह सकते हैं कि जितना कुँवर की आत्मा गाँव के ही वशिष्ठ यादव की पत्नी छठो देवी में आ गई.

छठो देवी को गाँव के मुखिया महेश ठाकुर और पंचायत समिति की सदस्य ललिता के साथ आवास सहायिका दुर्गा मणि गुप्ता ने जितना कुँवर बना दिया. प्रधानमंत्री आवास योजना में लाभार्थियों की सूची आई, तो उसमें जितना कुँवर का भी नाम था. नलिन तिवारी कहते हैं कि सरकार मेरी बड़ी माँ के लिए स्वर्ग में घर बनाने को आतुर थी.

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छठो देवी को जितना कुँवर कैसे बनाया गया?

इसे जानना बहुत मुश्किल नहीं है. लेकिन ग्रामीण समाज के लिए आसान भी नहीं है. नलिन तिवारी आईटी कंपनी में काम करते हैं, इसलिए उन्होंने इंटरनेट पर जानना-समझना शुरू किया, तो पूरा फ़र्ज़ीवाड़ा खुलकर सामने आ गया.

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इस फ़र्ज़ीवाड़े को समझना है, तो प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण की वेबसाइट पर जाइए. प्रधानमंत्री आवास योजना में लाभार्थियों की सूची में जिनके नाम होते हैं, उनके रजिस्ट्रेशन नंबर भी होते हैं.

उसी रजिस्ट्रेशन नंबर को होम पेज के स्टेकहोल्डर में IAY/PMAYG Beneficiary सेक्शन सेलेक्ट कर क्लिक कीजिए. क्लिक करने पर एक बॉक्स आएगा. इस बॉक्स में लिखा होता है- इंटर रजिस्ट्रेशन नंबर.

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इसी बॉक्स में रजिस्ट्रेशन नंबर डालिए. रजिस्ट्रेशन नंबर डालने पर सारी जानकारी सामने आ जाती है. इसमें किस बैंक के अकाउंट में भुगतान किया गया है. कितना पैसा मिला है और किस डेट को पैसा ट्रांसफ़र किया गया है, ये जानकारी भी रहती है. जैसे जितना कुँवर के नाम से रजिस्ट्रेशन नंबर BH1012787 है.

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इसे अगर आप डालकर सर्च करेंगे, तो पता चलेगा कि 19/12/2020 को बैंक ऑफ बड़ौदा के अकाउंट में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिलने वाली एक लाख 20 हज़ार की रक़म की पहली किस्त के 40000 रुपए ट्रांसफर किए गए हैं. नलिन तिवारी के लिए यह चौंकाने वाला था.

रजिस्ट्रेशन नंबर डालने के बाद जो पन्ना खुलता है, उसे स्क्रॉल करते हुए नीचे आएँगे, तो घर के सामने लाभार्थी की तस्वीर भी होती है. यहाँ तस्वीर जितना कुँवर के बदले किसी और महिला की है. वो महिला मिट्टी के घर के सामने खड़ी है.

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उस महिला की दो फ़ोटो हैं, एक के पहले लिखा है कि ‘यहीं घर बनना है’ और एक के सामने लिखा है- पुराना घर. घर बन जाने के बाद भी नए घर के साथ इसमें फोटो लगती है लेकिन अभी एक ही किस्त मिली थी, इसलिए घर पूरा होने की सूचना अपडेट नहीं की गई है.

नलिन तिवारी के लिए भी इस महिला की पहचान मुश्किल थी. नलिन कभी गाँव में नहीं रहे. उन्होंने गाँव के लोगों को यह तस्वीर भेजी तो पता चला कि ये छठो देवी हैं.

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नलिन तिवारी ने इसकी शिकायत बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार में की. लोक निवारण ने इसकी जानकारी जगदीशपुर ब्लॉक के बीडीओ राजेश कुमार से मांगी. वहाँ से पता चला कि छठो देवी के आधार कार्ड पर जितना कुँवर नाम लिख दिया गया है. छठो देवी के आधार कार्ड पर ही जगदीशपुर में बैंक ऑफ बड़ौदा के सीएसपी से जितना कुँवर के नाम से खाता खोला गया था.

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सीएसपी मतलब कस्टमर सर्विस पॉइंट या फिर इन्हें बैंक मित्र के साथ बिज़नेस कॉरस्पॉन्डेंट भी कहा जाता है. यहाँ कोई बैंककर्मी नहीं होता है. इसमें बाहर के लोगों को आउटसोर्स किया जाता है और उन्हें ही अकाउंट खोलने की ज़िम्मेदारी दी जाती है.

ऐसा आरबीआई की सर्कुलर के तहत बैंक वाले करवा रहे हैं. ग्रामीण इलाक़ों में सीएसपी ब्रांच काफ़ी प्रचलन में हैं और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के ज़्यादातर काम यहीं से होते हैं.

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जितना कुँवर जब ज़िंदा थीं तब भी बैंक ऑफ बड़ौदा में उनका कोई अकाउंट नहीं था. उनका खाता यूको बैंक में था. जब इस मामले में बैंक ऑफ बड़ौदा के विजिलेंस डिपार्टमेंट से संपर्क किया, तो बता दिया गया कि अकाउंट को बैंक ने अपने नियंत्रण में ले लिया है.

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लेकिन फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों से खाता कैसे खुला इस पर कुछ भी नहीं बताया. सीएसपी ब्रांच को लेकर बैंक ऑफ बड़ौदा के एक मैनेजर ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि बैंक मित्र जो नए अकाउंट खोलते हैं, उनके दस्तावेज़ों को वेरिफ़ाई करने में जमकर कोताही हो रही है और इसी का नतीजा है कि फ़र्ज़ी खाते खोले जा रहे हैं.

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छठो देवी क्या कहती हैं?

छठो देवी से जब पूछा कि आपने मृत व्यक्ति का पैसा क्यों लिया? इस पर छठो देवी ने कहा, ”हमरा कुछ पता नइखे. जइसे-जइसे हमरा के करावल गइल, हम उहे कइले बानी (मुझे कुछ भी पता नहीं है, जैसा मुझे करने के लिए कहा गया, मैंने बस वही किया) .” छठो देवी के बेटे फागू यादव से पूछा तो उन्होंने भी कुछ नहीं बताया.

पूरा परिवार पूछताछ से डर गया था. फागू यादव को अपना मोबाइल नंबर दे दिया था कि जब आपको कुछ बताना हो तो फ़ोन करके बताइएगा. फागू यादव का पिछले हफ़्ते शनिवार को फ़ोन आया और उन्होंने बताया कि पंचायत समिति सदस्य ललिता देवी के देवर रमेश बैठा और शिवपुर पंचायत के मुखिया महेश ठाकुर ने सब कराया है.

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देवराढ़ गाँव शिवपुर पंचायत के अंतर्गत ही आता है. फागू यादव ने बताया कि उन्हें 40 हज़ार में से 20 हज़ार रुपए ही मिले थे, बाक़ी के रुपए मुखिया और रमेश बैठा ने ले लिए

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मुखिया महेश ठाकुर से पूछा, तो उनका जवाब दिलचस्प था. ठाकुर ने कहा, ”ये काग़ज़ देखिए. डॉक्टरों ने बताया है कि मैं लीवर कैंसर से पीड़ित हूँ. एक साल से ज़्यादा ज़िंदा नहीं रह पाऊँगा. आप ये सब रिपोर्ट छापेंगे तो चुनाव जीतने में दिक़्क़त होगी. विरोधियों को हथियार मिल जाएगा. एक बार और चुनाव जीत जाने दीजिए.”

एक तरफ़ महेश ठाकुर कह रहे हैं कि वो एक साल ही ज़िंदा रह पाएँगे, लेकिन दूसरी तरफ़ मुखिया के पाँच साल का कार्यकाल फिर से हासिल करने को बेताब हैं.

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जिस व्यक्ति का प्रधानमंत्री आवास योजना में नाम आता है, उसकी पहचान और दस्तावेज़ों के वेरिफ़िकेशन की ज़िम्मेदारी आवास सहायक या सहायिका की होती है. शिवपुर पंचायत में दुर्गा मणि गुप्ता आवास सहायिका हैं. उनसे पूछा कि मृत महिला को आपने ज़िंदा कैसे कर दिया? दुर्गा मणि गुप्ता लगातार पानी पीती रहीं. कुछ ही देर में चेहरे से पसीना टपकने लगा. वो कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थीं.

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लेकिन किसी तरह उन्होंने ख़ुद को संभालते हुए कहा, ”सर, आधार कार्ड पर फ़ोटो जितना कुँवर की ही थी. मैंने मुखिया और पंचायत समिति से पूछा तो उन्होंने भी यही कहा कि जितना कुँवर यही हैं. मैंने भी मान लिया कि छठो देवी ही जितना कुँवर हैं.”

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रमेश बैठा इन आरोपों से इनकार करते हैं. उनसे मिलने के लिए कहा तो हर दिन टाइम देकर ग़ायब होते रहे. एक बार कहा कि आरा में केंद्रीय विद्यालय के गेट पर आइए लेकिन नहीं आए. रमेश बैठा पंचायत समिति सदस्य नहीं हैं, लेकिन वो पंचायत समिति का काम क्यों करते हैं? इस पर बैठा ने कुछ नहीं कहा. गाँव में पता चला कि ललिता देवी पटना में लॉन्ड्री चलाती हैं और उनके देवर रमेश बैठा पंचायत समिति का काम करते हैं.

जो ज़िंदा हैं उनके साथ भी फ़र्ज़ीवाड़ा

प्रधानमंत्री आवास योजना में घपला केवल मृत व्यक्तियों के नाम पर ही नहीं हो रहा है, बल्कि जो ज़िंदा हैं, उनके नाम पर भी पैसा हड़प लिया जा रहा है. जितना कुँवर के नाम आने के बाद बीबीसी ने देवराढ़ गाँव में ही पड़ताल शुरू की और ऐसे कई मामले मिले.

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इसी गाँव के किशोर सिंह ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे हैं. वो कोलकाता में काम करते हैं. उनके परिवार ने बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों की लिस्ट में किशोर सिंह का नाम है लेकिन पैसा नहीं मिला.

किशोर सिंह की रजिस्ट्रेशन आईडी BH6049413 प्रधानमंत्री आवास योजना की वेबसाइट पर डालकर सर्च किया, तो पता चला कि एक लाख 20 हज़ार रुपए दिए जा चुके हैं. लेकिन ये रुपए मिले किसे? किशोर सिंह के नाम पर पैसे का घपला हुआ है, ये जानकारी पीएमएवाईजी के वेबसाइट से ही पता चल जाती है.

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एक लाख 20 हज़ार की रक़म 40-40 हज़ार की तीन किस्तों में दी जाती है. किशोर सिंह के मामले में भी ऐसा ही हुआ है.

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पहली और दूसरी किस्त पिछले साल अगस्त और दिसंबर में जारी हुई और तीसरी किस्त इसी साल आठ जनवरी को. PMAYG की वेबसाइट के अनुसार एक लाख 20 हज़ार की रक़म किशोर सिंह के यूको बैंक के खाते में ट्रांसफ़र की गई है, लेकिन सच यह है कि यूको बैंक में किशोर सिंह ने कोई खाता खुलवाया ही नहीं था.

लेकिन बिना खाता खुलवाए किसी व्यक्ति के नाम से बैंक में कोई खाता कैसे खुलवा ले रहा है? यहाँ भी वही फ़र्ज़ीवाड़ा हुआ है. PMAYG की वेबसाइट पर इस रजिस्ट्रेशन आईडी BH6049413 से सर्च करने पर जो जानकारी सामने आती है, उसके हिसाब से किशोर सिंह का पक्का घर बन गया है.

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PMAYG की वेबसाइट पर किशोर सिंह की आईडी वाले पन्ने पर पिछले साल 15 मई को एक व्यक्ति के साथ पुराने घर की तस्वीर पोस्ट की गई. लेकिन इसमें न तो वो व्यक्ति किशोर सिंह हैं और न ही घर उनका है. इस व्यक्ति के बारे में तहक़ीक़ात की तो पता चला कि देवराढ़ गाँव के ही वीरबहादुर सिंह यादव हैं और घर भी उन्हीं का है.

पिछले साल 29 सितंबर को एक और फ़ोटो अपलोड की गई. इसमें घर बनाने के लिए खड़े किए गए प्लिन्थ के साथ एक व्यक्ति की फोटो अपलोड की गई. यह व्यक्ति भी कोई तीसरा है. न तो किशोर सिंह और न ही वीर बहादुर सिंह यादव.

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इस व्यक्ति के बारे में तहक़ीक़ात की तो सुरेश यादव के रूप में पहचान हुई. इस साल आठ जनवरी को नए घर के साथ एक व्यक्ति की फ़ोटो अपलोड की गई थी. ये कोई चौथा आदमी निकला.

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चौथे व्यक्ति की शिनाख्त शुरू की तो पता चला कि ये देवराढ़ गाँव के ही पैक्स अध्यक्ष के भाई संजय सिंह यादव हैं. PMAYG की वेबसाइट पर पारदर्शिता के लिए फोटो डाली जाती है ताकि चीज़ें पता चले लेकिन घर और व्यक्ति दोनों की फ़ोटो में फ़र्ज़ीवाड़ा किया जा रहा है.

लेकिन तीन अलग-अलग व्यक्तियों की तस्वीर से और कन्फ़्यूजन बढ़ गया कि पैसे किसे मिले. इसे पता करना मुश्किल काम था. PMAYG की वेबसाइट से ही पता चला कि पैसे यूको बैंक में किशोर सिंह नाम के खाते में ट्रांसफ़र किए गए हैं.

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यूको बैंक के जगदीशपुर शाखा से पता किया तो जानकारी मिली कि किशोर सिंह के नाम से एक खाता है लेकिन जिस आधार कार्ड से ये खाता खुलवाया गया है, वो सुरेश यादव का है. सुरेश यादव के आधार पर ही नाम बदलकर किशोर सिंह कर दिया गया था. मतलब खाता किशोर सिंह के नाम से लेकिन पैसा सुरेश यादव के अकाउंट में गया.

किशोर सिंह का परिवार देवराढ़ गाँव में ही रहता है. उनके भाई प्रमोद सिंह ने कहा कि किशोर ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं. वो बिस्तर से उठ भी नहीं पाते हैं. संजय सिंह ने कहा कि वे सुरेश यादव से कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि दबंग लोग हैं.

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उन्होंने कहा कि वे ब्लॉक में जाकर इसकी शिकायत ज़रूर करेंगे. प्रमोद सिंह ने कहा कि उनके भाई भी पक्का घर का सपना संजोए दुनिया छोड़ देंगे लेकिन ग़रीबों के हक़ मारने वालों पर कोई असर नहीं होने वाला है.

हमने सुरेश यादव से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया. संजय सिंह ने भी यही कहा कि मुखिया, पंचायत समिति और सीएसपी ब्रांच वाले मिलकर खा रहे हैं.

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नोट- अभी और पड़ताल की खबर अभी बाकी है, कल फिर ठोस सबूत के साथ हकीकत का पर्दाफाश

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