लेखक: पूनम कौशल
नई दिल्ली । हेलिकॉप्टर हादसे में भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की अचानक हुई मौत ने देश को अवाक कर दिया। वायुसेना की तरफ से हादसे की जानकारी देते हुए सिर्फ इतना ही बताया गया कि जांच की जा रही है। रावत की मौत किन परिस्थितियों में हुई, उसको लेकर अभी कुछ भी साफ नहीं है। ऐसे में सोशल मीडिया पर कई तरह की चर्चाओं और आशंकाओं की बाढ़ आ गई। इस हादसे की तुलना पुराने हादसों से की जाने लगी। चीन, पाकिस्तान और अमेरिका जैसे देशों और हथियार लॉबी को इसके पीछे जिम्मेदार बताया जाने लगा।
उनकी मौत और उसके पीछे का पूरा सच जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन जिन जियो-पॉलिटिकल परिस्थितियों और सुरक्षा हालात में उनकी मौत हुई है, लोगों के जेहन में सवाल उठने लाजिमी हैं।
जनरल रावत एक सुरक्षित और भरोसेमंद हेलिकॉप्टर में उड़ान भर रहे थे। वे भारत के शीर्ष सुरक्षा अधिकारी थे और एक तय प्रोटोकॉल और कंटिंजेंसी प्लान (आपात स्थिति के लिए योजना) के तहत ही यात्रा करते थे। ऐसे में हेलिकॉप्टर हादसे में उनकी मौत के बाद पहला सवाल लोगों के जेहन में आया- क्या ये हादसा है, क्या इसके पीछे कोई बाहरी ताकत है?
उंगलियां पाकिस्तान की तरफ उठीं। जनरल रावत ने सर्जिकल स्ट्राइक करके पाकिस्तान की सिक्योरिटी एजेंसीज को चोट पहुंचाईं थीं। सवाल तैरने लगा कि कहीं इसके पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI तो नहीं। यही नहीं, श्रीलंका के लगभग खत्म हो चुके आतंकवादी संगठन LTTE के स्लीपर सेल का नाम भी एक्सपर्ट्स ने लिया।
जनरल रावत की मौत की तुलना जनवरी 2020 में ताइवान के सेना प्रमुख जनरल शेन यी मिंग की मौत से भी की गई। जनरल मिंग अपने 13 साथियों के साथ हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए थे। उनकी मौत के समय भी हादसे के पीछे चीन के होने का सवाल उठा था। अब जनरल रावत की मौत के बाद लोग सोशल मीडिया पर जनरल शिंग की मौत का हवाला देते हुए आशंका जाहिर कर रहे हैं कि ‘चीन अपने दुश्मन देशों के शीर्ष मिलिट्री कमांडर का सफाया कर रहा है।’
यही नहीं जनरल रावत की मौत ऐसे समय हुई है जब कुछ दिन पहले ही दुनिया के शक्तिशाली नेता और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत का दौरा किया है। इस यात्रा से भारत रूस रक्षा सहयोग को बल मिला है। भारत ने अमेरिका के विरोध को दरकिनार कर रूस से एडवांस मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 भी खरीदा है। कुछ लोगों ने आशंका जाहिर की है कि जनरल रावत की मौत के पीछे हथियार लॉबी या ऐसी ताकतें हो सकती हैं जो भारत-रूस को दूर करना चाहती हैं।
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत के रक्षा विश्लेषक ब्रह्मा चेल्लानी का एक ट्वीट शेयर करते हुए लिखा है, ‘ये विचार ऐसा है जैसे क्रैश के पीछे अमेरिका की भूमिका पर संदेह करना क्योंकि भारत और रूस एस-400 की डिलीवरी पर आगे बढ़ रहे हैं और अमेरिका इसका पुरजोर विरोध कर रहा है।’
ब्रह्म चेल्लानी ने अपने ट्वीट में कहा, ‘जनरल रावत की मौत और 2020 में हेलिकॉप्टर हादसे में कई समानताएं हैं। इस क्रैश में ताइवान के सेना प्रमुख जनरल शेन यी मिंग और सात अन्य जनरलों की मौत हो गई थी। इन दोनों ही हेलिकॉप्टर हादसों में चीन के आक्रामक रवैये का विरोध कर रहे अहम लोगों की मौत हो गई।’
कुछ लोग जनरल रावत की मौत को साइबर वॉरफेयर से भी जोड़ कर देख रहे हैं। आशंका जाहिर की जा रही है कि जनरल रावत के हेलिकॉप्टर को साइबर हमले का निशाना बनाया गया होगा।
पहली बार नहीं हुआ है इस तरह का हादसा
Mi-17 सीरीज के एडवांस हेलिकॉप्टर के क्रैश होने ने कई सवाल खड़े किए हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि ये हेलिकॉप्टर क्रैश ही नहीं होता है। पिछले महीने ही अजरबैजान का Mi-17 मिलिट्री हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ और 14 लोग मारे गए। साल 2019 में इंडोनेशिया का एक Mi-17 हेलिकॉप्टर हादसे का शिकार हो गया था जिसमें चार सैनिकों की मौत हो गई थी और पांच घायल हो गए थे। भारत में 2010 से अब तक 8 Mi-17 हेलिकॉप्टर हादसे का शिकार हो चुके हैं। इन Mi-17 हादसों में (कन्नूर हादसे को छोड़कर) 42 लोगों की मौत हो चुकी है।
फरवरी 2019 में बडगाम से उड़ा Mi-17 दस मिनट बाद ही क्रैश हो गया था। बाद में पता चला कि इसे भारत के ही एरियल डिफेंस सिस्टम ने मार गिराया था। इसमें सवार सभी 6 सैनिक मारे गए थे। इससे पहले 3 अप्रैल 2018 को केदरानाथ में लैंडिंग के वक्त Mi-17 क्रैश हो गया था। हेलिकॉप्टर में सवार सभी छह लोग सुरक्षित थे।
6 अक्तूबर 2017 को अरुणाचल के तवांग में ऊंचाई पर हुए Mi-17 हादसे में 7 भारतीय सैनिक मारे गए थे। वहीं 25 जून 2013 को केदारनाथ में आई बाढ़ के दौरान बचाव अभियान का हिस्सा रहा Mi-17 क्रैश हो गया था। इस हादसे में 8 लोग मारे गए थे।
30 अगस्त 2012 को गुजरात के सेमांत गांव में दो Mi-17 हेलिकॉप्टर आपस में टकरा गए थे। इस हादसे में 9 लोगों की मौत हुई थी। वहीं 19 नवंबर 2010 को तवांग में भारतीय वायुसेना का Mi-17 क्रैश हुआ था, इसमें भी सभी 12 लोगों की मौत हो गई थी।
फिर लोगों के मन में सवाल क्यों?।
अगर वैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो कॉन्स्पिरेसी थ्योरी की एक वजह ये होती है कि लोगों के पास हादसों से जुड़े पूरे फैक्ट्स नहीं होते। जो जानकारी उनके सामने होती है, उसी के आधार पर वो धारणा बनाते हैं और उसी दिशा में सोचने लगते हैं।
जैसे जनरल बिपिन रावत की मौत के बाद लोगों के जेहन में पहला सवाल यही आया कि इतना उन्नत हेलिकॉप्टर हादसे का शिकार कैसे हो गया? क्या इसके पीछे कोई साजिश तो नहीं है। चीन या पाकिस्तान ने तो भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए ऐसा नहीं किया है
वहीं मनौविज्ञान के एकस्पर्ट्स मानते हैं कि इसके पीछे फियर साइकोसिस और सर्वाइवल इंस्टिंक्ट भी काम करता है। दिल्ली के मैक्स अस्पताल में मेंटल हेल्थ एंड बिहेवयिरल साइंसेज के प्रमुख डॉ. समीर मल्होत्रा कहते हैं, ‘जब भी कभी हमारी सिक्योरिटी को किसी भी तरह का खतरा होता है, हम असुरक्षित महसूस करते हैं। हर इंसान में बचने की और जीने की एक चाह होती है। हम दिन भर जिंदा रहने की कोशिश भी करते हैं। इसे सर्वाइवल इंस्टिंक्ट कहते हैं।
जब इस पर कोई सवाल उठता है तो हम डरने लगते हैं, असुरक्षित महसूस करते हैं। इस असुरक्षा के चलते दिमाग में डोपेमीन नाम का केमिकल बढ़ने लगता है। हमारे दिमाग में ऐसे कई एरियाज हैं जहां डोपेमीन का बढ़ना देखा गया है। जब ऐसा होता है तो हम शक करने लगते हैं। ज्यादा सतर्क भी हो जाते हैं।’
वहीं मेंटल हेल्थ पर काम कर रहीं और हेल्थी माइंड की संस्थापक डॉ. मलीहा हाशम साबले कहती हैं कि जब कोई बड़ा हादसा होता है तो उसके पीछे के कारण तलाशने के लिए हमारा दिमाग कॉन्स्पिरेसी थ्योरी गढ़ लेता है। वो मानती हैं कि कई बार लोग सांटिफिक एविडेंस होने के बावजूद कांस्पीरेसी थ्योरी गढ़ लेते हैं।
मलीहा कहती हैं, ‘ऐसा नहीं होता है कि सिर्फ बड़े हादसे में ही कॉन्स्पिरेसी थ्योरी बनती हैं। हम मुद्दे पर भी इन्हें बनाते हैं। जैसे बहुत सारे लोग साइंटिफिक एविडेंस होने के बावजूद ये मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन वास्तव में नहीं है। हाल ही में कोविड महामारी के दौरान वैक्सीन को लेकर भी कॉन्स्पिरेसी थ्योरी आई हैं। यानी, परिस्थिति कुछ भी हो, कुछ ना कुछ कॉन्स्पिरेसी थ्योरी गढ़ ही ली जाती है।’
जाती है।’
इसके पीछे के मनोवैज्ञानिक कारणों को समझाते हुए मलीहा कहती हैं, ‘हाल ही में जो रिसर्च हुई हैं उनसे तीन साइकोलॉजिकल मोटिव पाए गए हैं। जिसके अधार पर कॉन्स्पिरेसी थ्योरी गढ़ी जाती है।
1. सोशल मोटिव : सोशल मोटिव अक्सर ऐसे होते हैं कि लोगों को खुद के बारे में अच्छा फील करना है। वो चाहते हैं कि वो किसी भी ग्रुप में हैं या कहीं हैं तो उन्हें वहां अच्छा लगे। जब हम किसी से किसी टॉपिक पर बात करते हैं तो ये दिखाने की कोशिश करते हैं कि हम दूसरे से ज्यादा जानते हैं। ऐसा हम दूसरे से अधिक जानकार साबित करने के लिए करते हैं। हम ये साबित करने में लग जाते हैं कि जो हम कह रहे हैं वो सही है। हम ऐसे दावें करते हैं जो फैक्ट पर आधारित नहीं होते। इससे भी कॉन्स्पिरेसी थ्योरी बन जाती हैं।
2.एग्सिसटेंशियल मोटिव या सर्वाइवियल मोटिव : यानी जहां मैं हूं वहां मैं सुरक्षित महसूस करूं। जब एग्सिसटेंशियल मोटिव होता है तो व्यक्ति ये महसूस करना चाहता है कि वो पॉवर में है। यदि उसकी पॉवर थ्रेटन होती है तो वो इनसिक्योर फील करने लगता है। जब इस तरह के हादसे होते हैं तो कई बार लोगों के पास पूरी जानकारी नहीं होती है। फैक्ट्स के अभाव में वो पॉवरलैस फील करते हैं। ऐसी मनोस्थिति में वो कॉन्स्पिरेसी थ्योरी गढ़ने में लग जाते हैं। ये थ्योरी उन्हें संतुष्ट करती है।
3. एपिस्टिमिक मोटिव : इसका मतलब है कि किसी भी परिस्थिति में हमारे पास जानकारी होनी चाहिए। हमें ये लगता है कि हमें पता होना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ है। हम किसी ना किसी तरह से जानकारी हासिल करना चाहते हैं। ऐसे बड़ी घटनाओं के दौरान अक्सर ये नहीं हो पाता है कि सही फैक्ट्स लोगों तक तुरंत पहुंचे, लेकिन क्योंकि हम ये जानकारी चाहते हैं, सच तक पहुंचना चाहते हैं, तो फैक्ट्स के ना होने की स्थिति में हम कॉन्स्पिरेसी थ्योरी गढ़ लेते हैं।
इन सवालों की एक वैज्ञानिक वजह बताते हुए मल्होत्रा कहते हैं, ‘इस क्रैश के पीछे विजिबिलिटी एक कारण थी, लेकिन जनरल रावत एक बेहद अहम पद पर थे। वे जानते थे कि नेशनल सिक्योरिटी के लिए उनकी क्या अहमियत है। ऐसे में ये नहीं कहा जा सकता है कि इन चीजों को नजरअंदाज करके वे हेलिकॉप्टर में चढ़े होंगे।’
इन सब के बीच यह भी तय है कि इस घटना की पूरी तहकीकात जरूर होगी और पूरा सच सामने आएगा। जब तक ये सच सामने नहीं आएगा तब तक लोगों के जेहन में सवाल उठते रहेंगे।