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उतर प्रदेशलखनऊ

भारतीय श्रमिकों के शोषण की अंतहीन कथा:: रैलियां न बैरी जहजिया न बैरी, पइसवै बैरी ना पिया के ले गइल विदेसवा, पइसवै बैरी ना।।

  • 116 बरस बाद रामखेलावन की चौथी पीढ़ी डेविड और पत्नी लीना अमेरिका से अपनी जड़ों की तलाश में आए आज़मगढ़।
  • 1907 में गिरमिटिया मजदूर बन कलकत्ता से मारीशस गये थे रामखेलावन

@डा अरविन्द सिंह

औपनिवेशिक काल में भारतीय श्रमिकों के शोषण की अंतहीन कथा और माटी से विरह की व्यथा कहता भोजपुरी का यह गीत, आज एक बार फिर अतीत से वर्तमान में प्रवेश करते हुए आजमगढ़ जिले के मंडहा गांव में अपनी जड़ें तलाशते पहुंचा।
गिरमिटिया मजदूरों के शोषण और माटी से तड़प की व्यथा कोई एक दिन की कथा नहीं है, बल्कि यह औपनिवेशिक शोषण की पूरी की पूरी गाथा है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी अंचल और बिहार से मजदूरों को गिरमिटिया मजदूर बनाकर
कलकत्ता से पानी की जहाजों में बैठाकर मारीशस, सूरीनाम त्रिनिदाद, आदि देशों के टापूओं पर खेती करने के लिए भेजा गया। चूंकि उन्हें एग्रीमेंट करके भेजा जाता था, जिसमें उनके नाम, पिता का नाम और पता होता था। उसे एग्रीमेंटिया मजदूर कहा जाता था, समय की रेखा पर भोजपुरी में वही एग्रीमेंटिया शब्द, बदलते-बदलते गिरमिटिया हो गया।
आजमगढ़ के रौनापार थाना क्षेत्र के मंडहा गांव से 21 जुलाई 1906 में रामखेलावन मौर्या भी परदेस कमाने कलकत्ता गयें। घर पर उनके भाई पल्टन खेती-बाड़ी करने के लिए रह गयें। तब देश में भी परदेस बनते रहे हैं। औपनिवेशिक काल के उसी दौर में बरस 1907 में
एक दिन रामखेलावन, कलकत्ता से पानी की उसी जहाज में बैठ गयें, जो भारतीय मजदूरों के एक जत्थे को गिरमिटिया बनाकर मारीशस के टापूओं पर ले जा रही थी।
रात-दिन की लगातार यात्रा के बाद वह जहाज मारीशस पहुंची।
रामखेलावन आजमगढ़ से कलकत्ता और फिर कलकत्ता से मारीशस गरीबी के पहाड़ को काटने पहुंचें। अपनी श्रमशक्ति से पहाड़ों को काटकर खेती की जमीन बनाएं, और खेती के बल पर जीवन यापन करने लगें। अपनी माटी को छोड़ वहीं परदेश में बस गयें। घर पर लोग इंतजार करते ही रह गएं। देखते-ही देखते रामखेलावन ने परदेश में ही शादी कर लिया। आज उनकी चौथी पीढ़ी यूएसए में बस गई है। डेविड और लीना दोनों पति पत्नी हैं और रामखेलावन की चौथी पीढ़ी हैं। अमेरिका में इस भारतवंशी का बिजनेस है। डेविड एक दिन अपनी पत्नी लीना के साथ अपने भारतवंशी जड़ों की तलाश में मारीशस के रिकार्ड रुम पहुंच गए और वहां से जहां उन्हें अपने पूर्वज रामखेलावन का विवरण मिला,तो मालूम चला कि वे आजमगढ़ के रौनापार क्षेत्र के मंडहा गांव के थे। 10अप्रैल को दोनों पति-पत्नी उन्हीं रिकार्डस और आजमगढ़ के एक चिकित्सक जो अमेरिका में रहते हैं के द्वारा मिली सूचनाओं के आधार पर अपनी जड़ों की तलाश में आजमगढ़ पहुंचें। शाम के करीब 6बजे एडीएम प्रशासन के दफ्तर में दोनों एक गाइड के साथ पहुंचे। एडीएम प्रशासन ने सहृदयता दिखाते हुए, पहले एसडीएम सगड़ी राजीव रत्न सिंह और तहसीलदार से उस गांव का पता लगाया, बाद में रौनापार थाना के दरोगा को मंडहा गांव भेज कर ग्राम प्रधान से बात किया। प्रधान ने जब गांव के बुजुर्गों से तहकीकात किया तो मालूम चला कि रामखेलावन, पल्टन के भाई थे। जो अंग्रेजी शासन काल के दौरान 1906 में कलकत्ता कमाने गयें थें।
आजमगढ़ शहर के एक होटल में ठहरे उक्त भारतवंशी अपनी जड़ों की तलाश में आजमगढ़ के कलेक्ट्रेट रिकार्ड रुम से पुराने राजस्व रिकार्ड निकालने में सफलता पायी। जोतबंदी, आकार पत्र-41 और 45 के सहारे वे अपनी खोज में सफल हुए, 12 अप्रैल को वे उन रिकार्ड की मदद से अपनी पूर्वजों के गांव मंडहा पहुंचेंगे।
(साथ में सौरभ उपाध्याय)
क्रमशः

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