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लेखक के विचार

राम राज्य…बा…और का बा..: भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले मलिक पर छापे पड़ गए आखिर क्यों?

(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

अब ये विरोधी ये क्या है, ये क्या है, क्या कर रहे हैं? और क्या है, राम राज्य है। वही राम राज्य, जिसका 22 जनवरी को अयोध्या में मोदी जी ने उद्घाटन किया है। क्या कहा? राम राज्य चल पड़ा है, तो सत्यपाल मलिक के ठिकानों पर सीबीआइ के छापे क्यों पड़ रहे हैं? राम राज्य चल निकला है, इसीलिए सत्यपाल मलिक के ठिकानों पर छापे पड़ रहे हैं। राम राज्य में भी छापे नहीं पड़ेंगे, तो सत्यपाल मलिक के ठिकानों पर कब पड़ेंगे — रावण राज में!

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सीबीआइ, ईडी, आइटी वगैरह कौन हैं? सब निमित्त मात्र हैं, राम राज्य लाने के। राम राज्य है, तो सबके लिए समदर्शिता है, समता का भाव है। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर। बेशक, सत्यपाल मलिक ने भ्रष्टाचार नहीं किया। खुद तो नहीं ही किया, भ्रष्टाचार होने भी नहीं दिया। सचमुच न खाया, न खाने दिया। यानी मोदी जी के सच्चे अनुयाई निकले। फिर भी उनके ठिकानों पर सीबीआइ के छापे पड़ गए। जो भ्रष्टाचार की जुगाड़ लगा रहे थे, उनके बदले में भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले मलिक पर छापे पड़ गए। आखिर क्यों? क्योंकि राम राज्य है। भ्रष्टाचारी पर छापे तो किसी ऐरे-गैरे के राज में भी पड़ जाएंगे। अकेले भ्रष्टाचारी पर छापे पड़े, तो राम राज्य क्या हुआ? आखिर, समदर्शिता भी तो होनी चाहिए। बस समदर्शिता के चक्कर में सत्यपाल मलिक पर छापे पड़ रहे हैं। मोदी जी के पक्के अनुयाई होने के बाद भी, बल्कि इसीलिए भ्रष्टों से पहले छापे पड़ रहे हैं। राम राज्य वाला धोबी बनकर कोई यह आरोप न लगा दे कि मोदी जी ने अपने अनुयाई को बचा लिया और सिर्फ भ्रष्टाचारियों के पीछे सरकारी एजेंसियों को लगा दिया। आखिर, भ्रष्टाचार करने वाला और भ्रष्टाचार का शोर मचाने वाला, दोनों ही मोदी राज पर भ्रष्टाचार की कालिख लगाने के दोषी हैं। और मोदी जी का अपना है, तो भ्रष्टाचार करने वाले से पहले सजा, भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार का शोर मचाने वाले मलिक को।

राम राज्य है, सो विरोधियों के लिए और जब्ती वगैरह के और भी कई स्यापे हैं। कांग्रेस के बैंक खाते जब्त हो रहे हैं, तो किसान आंदोलन से जुड़े लोगों के सोशल मीडिया खाते। और जो वो मस्कवा ने एक्स वाले खाते जब्त करने का शोर मचा दिया; उसकी वही सजा जो घंटी बजाने वाले सत्यपाल मलिक की। गलत घंटी क्यों बजायी?

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(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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