(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
आखिर, ये किसान चाहते क्या हैं? सरकार इनकी मिन्नतें करे, चिरौरियां करे, तब ये वापस घर जाएंगे! नहीं तो बेचारे मोदी जी की सरकार ने तो अपनी तरफ से इन्हें मनाने में कोई कसर छोड़ी नहीं है। जब से किसानों ने अपना दिल्ली कूच शुरू किया है, तब से चार-चार बार तो मोदी जी की सरकार के तीन-तीन मंत्री किसानों के प्रतिनिधियों से बातचीत ही कर चुके हैं। और बातचीत भी छोटी-मोटी नहीं, हर बार कई-कई घंटे लंबी बातचीत। और अब फिर बातचीत करने के लिए तैयार हैं। और अब फिर क्या, किसान नेता तैयारी दिखाएं, तो किसानों के लिए इस सरकार के दिल में तो इतना दर्द है कि उसके मंत्रिगण अनंतकाल तक बातचीत करने से पीछे हटने वाले नहीं हैं। अगर जरूरत हुई तो मोदी जी अलग से एक ‘वार्ता’ मंत्रालय ही बना देंगे, पर बातचीत से पीछे नहीं हटेंगे। बस किसान, अपनी मांगें माने जाने की जिद नहीं करें। वैसे मांगों की जिद भी करते रहें, तो भी चलेगा। सरकार भी उनकी मांगें नहीं मानने पर जमी ही है, बस इसकी वजह से बातचीत नहीं रुकनी चाहिए। मांगों का क्या है, मांगें तो आती-जाती रहती हैं, बस बातचीत चलती रहनी चाहिए।
फिर सरकार सिर्फ बातचीत ही थोड़े ही कर रही है। यह क्यों भूल गए कि हरियाणा में मोदी जी की ही डबल इंजन वाली सरकार ने किसानों पर फिलहाल राष्ट्रीय सुरक्षा कानून उर्फ एनएसए नहीं लगाने का फैसला लिया है। बेशक, पहले खट्टर साहब की सरकार ने किसान प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एनएसए लगाने का फैसला लिया था। लेकिन, एनएसए लगाने की तो छोड़ ही दो, अब तो उसने बाकायदा इसका एलान भी कर दिया कि एनएसए नहीं लगाया जाएगा। एनएसए नहीं, यानी किसान चाहे किसान हों या नहीं हों, एंटीनेशनल नहीं। एंटीनेशनल नहीं, तो खालिस्तानी भी नहीं। भारत उर्फ इंडिया को छोडक़र, किसी धर्म पर आधारित राष्ट्र की मांग भी करेे और एंटीनेशनल भी नहीं कहलाए, ऐसी खास सुविधा तो सिर्फ ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग करने वालों को ही है। यानी एनएसए भी नहीं, एंटीनेशनल का ठप्पा भी नहीं, ऊपर से अंतहीन बातचीत भी, और क्या चाहते हैं किसान! बस मांगों को छोडक़र, उन्हें सरकार सब कुछ दे तो रही है।
अब किसानों को भी चाहिए कि जरा बड़ा दिल दिखाएं। अपनी मांगों को चाहे नहीं भी भूलें, पर कम-से-कम बार्डर पर पुलिस के गोली-गोलों की अपनी शिकायतों को भूल जाएं। किसानों को भी यह शोभा थोड़े ही देता है कि यहां-वहां आंसू गैस के गोलों की, बंदूक के छर्रों की, गोलियों की, शिकायतें करते फिरें और बेकार देश को बदनाम करें। कितने घायल हुए, कितनों की आंखों की रौशनी गयी, कितने इस दुनिया से ही विदा हो गए और कैसे, इन छोटी-छोटी चीजों की गिनती रखने का फायदा? बड़े-बड़े देशों में ऐसी छोटी-छोटी चीजें तो होती ही रहती हैं। पिछली बार के मुकद्दमे हटाने की मांग इस बार हो रही है, इस बार के मुकद्दमे हटाने की मांग फिर कभी सही! किसान यह क्यों भूल जाते हैं कि आज देश में ऐसी सरकार है, जो किसानों का अन्नदाता कहकर सम्मान कर रही है। सिर्फ आज के किसानों का नहीं, किसानों की पिछड़ी पीढ़ियों का भी सम्मान कर रही है — चौ. चरण सिंह से लेकर, एमएस स्वामीनाथन तक को ‘‘भारत रत्न’’ देकर। मान का तो पान भी सारी मांगों से बड़ा होता है, यहां तो दो-दो भारत रत्न मिल रहे हैं। और जिनकी पदवी ही दाता की हो, उन किसानों को इतना लालच शोभा थोड़े ही देता है।
फिर अब तो यूपी में पेपर लीक के चक्कर में, सिपाही भर्ती की परीक्षा भी कैंसिल हो गयी है। यानी सरकार धोती-कुर्ते वाले किसान पर भी मेहरबान है और वर्दी पहनना चाह रहे जवान पर भी; अब और किस बात का आंदोलन। किसानों होश में आओ, मोदी जी की तीसरी पारी पक्की कराओ।
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)