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संतकबीरनगर

आशा कार्यकर्ता की सलाह पर कराई जांच, तो गर्भाशय में क्षय रोग की हुई पुष्‍ट‍ि 

  • समय से इलाज न होने पर बाँझपन का बढ़ सकता है खतरा
  • इलाज से ठीक होने के बाद मां बन सकती है पीडि़त महिला 

संतकबीरनगर । जिले के खलीलाबाद क्षेत्र के एक गांव की 25 वर्षीया सीमा ( बदला हुआ नाम ) की शादी के चार साल हो गए थे। वह गर्भधारण नहीं कर पा रही थीं। निजी चिकित्‍सालयों में उन्‍होने इलाज के नाम पर दो लाख रुपए से अधिक खर्च कर दिया। इसके बावजूद कोई लाभ नहीं हुआ। फिर उन्‍होने अपनी परेशानी गांव की आशा कार्यकर्ता किरन से साझा की । किरन की सलाह पर वह जिला चिकित्‍सालय गयीं तो वहां उनकी जांच हुई तो उन्‍हें गर्भाशय की टीबी की पुष्टि हुई।

आशा कार्यकर्ता किरन बताती हैं कि गृह भ्रमण पर निकली बातचीत के दौरान महिला ने अपनी समस्‍या बताई। इसके बाद मैने उन्‍हें गर्भाशय की टीबी के बारे में बताया तथा जांच कराने को कहा। वह मेरे साथ जिला अस्‍पताल गईं और वहां पर उनका अल्‍ट्रासाउंड तथा अन्‍य जांच हुई तो पता चला कि उन्‍हें गर्भाशय में टीबी थी। नौ माह तक महिला का इलाज जिला क्षय रोग हास्पिटल से चला। अब इसके सकारात्‍मक परिणाम सामने आ रहे हैं । जिला क्षय रोग अस्‍पताल के चिकित्‍सक डॉ विशाल यादव का कहना है कि तीन माह और दवा चलेगी तो वह पूरी तरह से टीबी से मुक्‍त हो जाएंगी।

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जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ एस डी ओझा का कहना है कि आशा कार्यकर्ता की सजगता से सीमा के गर्भाशय में क्षय रोग की पहचान हो गयी। टीबी लाइलाज बीमारी नहीं है। समय से जाँच और उपचार से यह पूरी तरह से ठीक हो सकती है। यह बाल और नाख़ून को छोड़कर शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। इनमें से ही एक गर्भाशय की टीबी भी है, जिसमें टीबी के बैक्टीरिया सीधा गर्भाशय पर हमला करते हैं, जिससे महिलाओं को गर्भ धारण करने में दिक्कतें आती हैं। महिलाओं में गर्भाशय की टीबी होने पर ट्यूब में पानी भर जाता है जो गर्भ धारण नहीं होने देता है। इसके साथ ही गर्भाशय की सबसे अंदरूनी परत कमज़ोर हो जाती है, जिसकी वजह से एम्ब्रीओ (भ्रूण) ठीक तरीके से विकसित नहीं हो पाता। गर्भाशय की टीबी के लक्षणों की पहचान समय पर न होने से महिलाएं बांझपन का शिकार भी हो जाती हैं । इससे घबराएं नहीं, समय पर लक्षणों की पहचान कर टीबी की जाँच करायें , साथ ही सम्पूर्ण उपचार लें। टीबी के इलाज से गांठ खत्म होने पर बांझपन सही हो जाता है।

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राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के जिला समन्वयक अमित आनन्‍द ने बताया कि जिले में गर्भाशय की टीबी के कुल 7 मरीज़ थे, जिसमें 5 ठीक हो चुके हैं 2 मरीजों का उपचार चल रहा है। उन्होंने कहा कि मरीज़ को उपचार के दौरान सही पोषण के लिए हर माह 500 रूपये सीधे बैंक खाते में दिए जाते हैं ।

 सीमा बताती हैं कि समय से जांच के बाद मेरा इलाज शुरु हुआ । परिवार के लोगों ने भी कभी कोई भेदभाव नहीं किया। सभी के सहयोग से ही इलाज संभव हो पाया । वह पिछले नौ माह से दवा ले रही हैं। चिकित्‍सक ने भी उन्हें बताया कि वह ठीक होकर गर्भधारण कर सकती हैं। सीमा बताती है कि उन्हें पहले इस बात की चिन्‍ता होती थी, लेकिन अब उन्‍हें अपने चिकित्‍सक पर विश्‍वास है।

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टीबी ठीक होने के बाद मां बन सकती है महिला-डॉ शशि सिंह

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जिला संयुक्‍त चिकित्‍सालय की स्‍त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ शशि सिंह बताती हैं कि किसी महिला की गर्भाशय की टीबी अगर इलाज के बाद ठीक हो जाती है । ऐसी महिला का इलाज पूरा हो जाने के बाद उसको गर्भधारण के लिए कुछ दवाएं दी जाती हैं। इसके बाद वह गर्भधारण कर सकती है। हर महीने ऐसी महिलाओं को बुलाया जाता है तथा उन्‍हें उचित परामर्श दिया जाता है ताकि वह मानसिक रुप से परेशान न रहें।

यह लक्षण दिखें तो जरुर कराएं जांच 

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जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ एस डी ओझा कहते हैं कि आमतौर पर जिन महिलाओं में अनियमित माहवारी के लक्षण दिखते हैं- जैसे- माहवारी का न होना (एमेनोरिया), अत्यधिक रक्तस्राव (मेनोरेजिया), अनियमित माहवारी (ओलिगोमेनोरिया), योनि स्राव, पेडू में दर्द और बांझपन उन्हें जननांग की टीबी हो सकती है। टीबी से पीड़ित लगभग 50 से 75 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में लक्षण दिखाई नहीं देते हैं और कुछ लक्षण जैसे सांसें तेज़ चलनाऔर थकान, गर्भावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों के समान होने के कारण इसकी पहचान नहीं हो पाती। इसलिए ऐसे लक्षण नजर आयें तो स्त्री रोग विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करें |

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