उतर प्रदेश

गाजर घास,फसलों के साथ ही मनुष्यों और पशुओं के लिए भी होती है घातक::जानिए इससे मुक्ति और बचाव के उपाय

प्रतापगढ़। जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने बताया है कि गाज घास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) जिसे आम तौर पर कांग्रेस घास, सफेदी टोपी, असाड़ी गाजर, चटक चांदनी आदि नामों से जाना जाता है, एक विदेशी अक्रामक खरपतवार है। भारत में पहली बार 1950 के दश में दृष्टिगोचर होने के बाद यह विदेशी खरपतवार रेलवे टै्रक, सड़कों के किनारे, बंजर भूमि, उद्यान आदि सहित लगभग 350 लाख हेक्टेयर फसली और गैर फसली क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है। यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है जिसकी लम्बाई 1.5 से 2 मीटर तक होती है। यह मुख्यतः बीजों से फैलता है। इसमें एक पौधे से लगभग 5000 से 25000 बीज प्रति पौधा पैदा करने की क्षमता रहती है। इनके बीजों का प्रकीर्णन हवा द्वारा होता है जिससे इनके संख्या में बढ़ोत्तरी तेजी से होती है। पार्थेनियम पिछले कई वर्षो से खाद्यान फसलों, सब्जियों एवं उद्यानों में प्रकोप के साथ-साथ मनुष्य की त्वचा सम्बन्धी बीमारियों, एग्जिमा, एलर्जी, बुखार तथा दमा जैसी बीमारियों का प्रमुख कारण है। कृषि विभाग उ0प्र0 द्वारा दिनांक 16 से 22 अगस्त 2023 तक गाजर घास नियंत्रण जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है।

उन्होने बताया है कि कृषकों को गाजर घास के दुष्प्रभाव एवं नियंत्रण के बारे जानकारी रखें। वर्षा ऋतु में गाजर घास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट बनाना चाहिये। वर्षा आधारित क्षेत्रों में शीघ्र बढ़ने वाली फसलें जैसे ढैंचा, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि की फसलें लेनी चाहिये। अक्टूबर-नवम्बर में अकृषित क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक पौधे जैसे चकौड़ा के बीज एकत्रित कर उन्हें फरवरी-मार्च में छिड़क देना चाहिये। यह वनस्पतियां गाजर घास की वृद्धि एवं विकास को रोकती है। घर के आस-पास, बगीचे-उद्यान एवं संरक्षित क्षेत्रों में गेंदे के पौधे उगाकर गाजर घास के फैलाव एवं वृद्धि को रोका जा सकता है। रासायनिक नियंत्रण हेतु ग्लाईफोसेट (1.0 से 1.5 प्रतिशत) अथवा मैट्रीब्यूजिन (0.3 से 0.5 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिये। जैविक नियंत्रण हेतु मैक्सिकन बीटल (जाइगोग्रामा बाइक्लोराटा) नामक कीट को वर्षा ऋतु में गाजर घास का पर छोड़ना चाहिये। अपने परिसर को गाजर घास से मुक्त करने के लिये सभी सम्भव प्रयास करने चाहिये।

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