उत्तराखंड में मौजूदा राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपना इस्तीफा भेज दिया है। उत्तराखंड की राज्यपाल के तौर पर वो तीन साल पूरे कर चुकी हैं। दो दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात के बाद से ही बेबी रानी मौर्य के इस्तीफा देने की चर्चाएं चल ही थीं। माना जा रहा है कि उन्हें उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा कोई बड़ी जिम्मेदारी देने के मूड़ में है। तभी उनसे इस्तीफा लिया गया।
बेबी रानी मौर्य ने 1990 के दशक की शुरुआत में बीजेपी की सदस्य के तौर पर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। उनके पति प्रदीप कुमार मौर्य पंजाब नेशनल बैंक अधिकारी रहे हैं। 1995 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर आगरा नगर निगम का चुनाव लड़कर जीत हासिल की और महापौर बनीं। वह आगरा की महापौर बनने वाली पहली महिला थीं। 2000 तक इस पद पर काबिज रहीं। इस दौरान वह खासी चर्चाओं में रही थीं।
1997 में उनको भाजपा की अनुसूचित जाति (एससी) शाखा की पदाधिकारी नियुक्त किया गया था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तब इस एससी विंग के अध्यक्ष थे। 2001 में उन्हें उत्तर प्रदेश सामाजिक कल्याण बोर्ड का सदस्य बनाया गया। उन्होंने 2005 तक आयोग की सदस्य के रूप में कार्य किया। बीजेपी ने 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एत्मादपुर सीट से उनको टिकट दिया। हालांकि, इस चुनाव में वह हार गईं।
2018 में, उन्हें बाल अधिकार संरक्षण के राज्य आयोग का सदस्य बनाया गया था। 2018 में उनको उत्तराखंड की राज्यपाल नियुक्त किया गया। तीन साल पहले उत्तराखंड में राज्यपाल की कमान संभालने वालीं आगरा निवासी बेबी रानी मौर्य प्रदेश की दूसरी महिला राज्यपाल थीं। उनसे पहले मारग्रेट अल्वा प्रदेश की राज्यपाल रह चुकी थीं। मौर्य से पहले सूबे के राज्यपाल कृष्ण कांत पॉल थे। वो भी तीन साल पद पर रहे थे।
गौरतलब है कि यूपी चुनाव बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बनते दिख रहे हैं। उसके सहयोगी रहे छोटी पार्टियों के नेताओं के सुर बदलने से बीजेपी को डर है कि कहीं एससी-एसटी वोटबैंक में सेंध न लग जाए। सूत्रों का कहना है कि इस तबके के वोटरों को साधने के लिए ही बेबी रानी को वापस यूपी लाया जा रहा है। उन्हें भाजपा को मजबूत करने का दायित्व दिया जाएगा।